शिक्षा का पूर्ण व्यवसायीकरण व सरकार का पूर्ण नियंत्रण दोनों सही नहीं : दत्तात्रेय होसबाले

नई शिक्षा नीति को अनोखा श्रेष्ठ दस्तावेज बताते हुए RSSदत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि शायद ही किसी देश में इतने वृहद स्तर पर विचार-विमर्श के बाद ऐसी नीति तैयार हुई हो जिसमें लाखों लोग जुड़े रहे हों। उन्होंने नई शिक्षा नीति को अनोखा श्रेष्ठ दस्तावेज बताया

By Monika MinalEdited By: Publish:Fri, 22 Oct 2021 04:01 AM (IST) Updated:Fri, 22 Oct 2021 04:01 AM (IST)
शिक्षा का पूर्ण व्यवसायीकरण व सरकार का पूर्ण नियंत्रण दोनों सही नहीं : दत्तात्रेय होसबाले
शिक्षा का पूर्ण व्यवसायीकरण व सरकार का पूर्ण नियंत्रण दोनों सही नहीं : दत्तात्रेय होसबाले

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली।  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि शिक्षा का पूर्ण व्यवसायीकरण व सरकार का पूर्ण नियंत्रण दोनों सही नहीं है। उन्होंने कहा कि इसकी जगह शिक्षा में समाज की सहभागिता व सरकार की संतुलित भूमिका पर गंभीरतापूर्वक विचार हो। वह दिल्ली में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव व शिक्षाविद अतुल कोठारी की राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 व अटल बिहारी वाजपेयी शिक्षा संवाद समेत उनकी कुल चार पुस्तकों के विमोचन अवसर पर लोगों को संबोधित कर रहे थे।

नई शिक्षा नीति को 'अनोखा श्रेष्ठ दस्तावेज' बताते हुए उन्होंने कहा कि शायद ही किसी देश में इतने वृहद स्तर पर विचार-विमर्श के बाद ऐसी नीति तैयार हुई हो, जिसमें लाखों लोग जुड़े रहे हों। देश में इतनी विविधता के बावजूद सर्वसम्मति से एक 50-60 पृष्ठों की नीति तैयार हुई है। उन्होंने इसे भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति के साथ आधुनिक शिक्षा का बेहतर तालमेल बताते हुए कहा कि यह संस्कृति और विज्ञान का अद्भुत मेल है। इसके माध्यम से वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए ऐसे छात्र तैयार होंगे, जिसके अंदर भारतीय मूल्यों के साथ विश्व बंधुत्व की भावना हो और सद्गुणों से भरा और पर्यावरण हितैषी हो।

उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के शासन काल व आजादी के बाद भी शिक्षा व्यवस्था कई बंधनों में कैद थी, जिसे इस नई शिक्षा नीति ने आजादी दिलाई है। यह भारतीय ज्ञान, संस्कृति, परंपरा व विज्ञान का अनूठा संगम है। हालांकि, उन्होंने भारतीय भाषा में भी शिक्षा को लेकर विवाद की बनी स्थिति का भी सर्वमान्य रास्ता तलाशने पर जोर दिया है। उन्होंने मेडिकल और इंजनीनिय¨रग समेत अन्य व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के भारतीय (स्थानीय) भाषा में पढ़ाने की नई व्यवस्था का जिक्र करते हुए कहा कि इस पर भी विवाद हो रहा है कि राज्यों के बाहर दूसरी भाषा में पढ़ने में उन्हें दिक्कत आएगी। यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जिस पर कोर्ट ने कहा कि भाषा चुनने का अधिकार अभिभावक और स्कूल का है। इसे सरकार की ओर से नहीं थोपा जा सकता है।

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