क्लाइमेट चेंज से होने वाला आर्थिक नुकसान कोरोना महामारी की तुलना में दोगुना, फिर भी गंभीर नहीं विकसित देश
जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पेरिस समझौते के तहत विकसित देशों ने कार्बन उत्सर्जन कम करने की दिशा में अहम कदम उठाने की बात कही थी लेकिन ओईसीडी की रिपोर्ट में विकसित देशों के रवैये को लेकर निराशाजनक बात सामने आई है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटने के लिए 2015 में हुए पेरिस समझौते के तहत विकसित देशों ने कार्बन उत्सर्जन कम करने की दिशा में अहम कदम उठाने की बात कही थी। इसमें यह भी तय किया गया था कि अमीर देश जलवायु परिवर्तन के खतरे से बचने के लिए अन्य देशों को तकनीक और पैसा भी मुहैया कराएंगे। आर्गनाइजेशन फार इकोनामिक को-आपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) की हालिया रिपोर्ट में विकसित देशों के रवैये को लेकर निराशाजनक बात सामने आई है।
आर्थिक नुकसान महामारी से हुई क्षति से ज्यादा
आर्गनाइजेशन फार इकोनामिक को-आपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) की रिपोर्ट बताती है कि जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाला आर्थिक नुकसान कोरोना महामारी से होने वाले नुकसान की तुलना में दोगुना है लेकिन दुनिया इससे निपटने में उतनी गंभीरता नहीं दिखा रही है।
विकसित देश नहीं निभा रहे जिम्मेदारी
बड़ा है खतरा
एक अनुमान के मुताबिक सर्दी और गर्मी के कारण सालाना 50 लाख लोगों की मौत हो जाती है। यह दुनियाभर में असमय होने वाली मौतों के नौ फीसद से ज्यादा है। जलवायु परिवर्तन के कारण जिस तरह से मौसम में तेज बदलाव हो रहे हैं, उसे देखते हुए इससे जान गंवाने वालों की संख्या आने वाले वर्षो में और ज्यादा होने की आशंका है।
क्या कहते हैं आंकड़े
क्वाड और यूएनजीए होगी क्लाइमेट चेंज की समस्या पर बात
उल्लेखनीय है कि 24 सितंबर को वाशिंगटन में क्वाड शिखर सम्मेलन होने जा रहा है। इसके बाद न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा का 76वें सत्र के तहत एक उच्च स्तरीय बैठक भी होने वाली है। इन बैठकों में जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के मसले पर भी चर्चा होनी है। समाचार एजेंसी पीटीआइ के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में भारत पूरी ताकत से जलवायु परिवर्तन का मुद्दा उठाएगा। देखना होगा कि दोनों बैठकों में क्लाइमेट चेंज की चुनौतियों से निपटने को लेकर क्या रणनीति बनती है...