मुख्‍य न्यायाधीश जस्टिस बोबडे ने कहा- भारत का न्यायशास्त्र अरस्तु के सिद्धांतों से कमतर नहीं

सीजेआइ शरद अरविंद बोबडे ने बुधवार को कहा कि बीआर आंबेडकर ने देश की आधिकारिक भाषा के रूप में संस्कृत का प्रस्ताव किया था क्योंकि वह राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों को अच्छी तरह समझते थे और जानते थे कि लोग क्या चाहते हैं।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Wed, 14 Apr 2021 08:06 PM (IST) Updated:Wed, 14 Apr 2021 08:31 PM (IST)
मुख्‍य न्यायाधीश जस्टिस बोबडे ने कहा- भारत का न्यायशास्त्र अरस्तु के सिद्धांतों से कमतर नहीं
सीजेआइ एसए बोबडे ने कहा कि आंबेडकर ने देश की आधिकारिक भाषा के रूप में संस्कृत का प्रस्ताव किया था...

नागपुर, पीटीआइ। प्रधान न्यायाधीश (सीजेआइ) शरद अरविंद बोबडे ने बुधवार को कहा कि बीआर आंबेडकर ने देश की आधिकारिक भाषा के रूप में संस्कृत का प्रस्ताव किया था, क्योंकि वह राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों को अच्छी तरह समझते थे और जानते थे कि लोग क्या चाहते हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि प्रचीन भारतीय ग्रंथ न्यायशास्त्र किसी भी मायने में अरस्तु व फारसी तर्क प्रणाली से बिल्कुल भी कमतर नहीं है इसलिए इस बात की कोई वजह नहीं कि हमें इसे त्यागना या इसकी अनदेखी करनी चाहिए और अपने पूर्वजों की प्रतिभा का लाभ नहीं उठाना चाहिए।

प्रधान न्यायाधीश यहां महाराष्ट्र राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (एमएनएलयू) के अकादमिक भवन के उद्घाटन अवसर पर बोल रहे थे। इस वर्चुअल कार्यक्रम में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, केंद्रीय मंत्री व नागपुर से सांसद नितिन गडकरी और अन्य ने भी हिस्सा लिया।

डॉ. आंबेडकर को उनकी 130वीं जयंती पर याद करते हुए सीजेआइ ने कहा, 'सुबह मैं असमंजस में था कि मैं यह भाषण किस भाषा में दूं। आज (14 अप्रैल) डा. आंबेडकर की जयंती है, जो मुझे याद दिलाती है कि बोलने के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली भाषा और काम के दौरान इस्तेमाल की जाने भाषा के बीच संघर्ष काफी पुराना है।'

सीजेआइ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को इस बात के काफी प्रत्यावेदन मिलते हैं कि अधीनस्थ अदालतों की भाषा क्या होनी चाहिए, लेकिन मुझे लगता है कि इस विषय पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। डॉ. आंबेडकर ने इस पहलू का अनुमान लगा लिया था और उन्होंने प्रस्ताव किया था कि भारत सरकार की आधिकारिक भाषा संस्कृत होनी चाहिए।

जस्टिस बोबडे ने कहा, उन्हें याद नहीं है कि कुछ मौलवियों, पंडितों और पादरियों के हस्ताक्षर वाले उस प्रस्ताव को पेश (संविधान सभा में) किया गया था या नहीं। उन्होंने कहा, 'आंबेडकर की राय थी कि चूंकि तमिल उत्तर भारत में स्वीकार्य नहीं है, उसका वहां विरोध हो सकता है और इसी तरह हिंदी का दक्षिण भारत में विरोध होगा। लेकिन उत्तर या दक्षिण भारत में संस्कृत का विरोध होने की संभावना बेहद कम है, लिहाजा उन्होंने प्रस्ताव आगे बढ़ाया था, लेकिन वह सफल नहीं हुआ।'

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि आंबेडकर को न सिर्फ कानून की, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक मसलों की भी अच्छी जानकारी थी। वह जानते थे कि लोग खासकर देश के गरीब क्या चाहते थे। उन्हें इन सब पहलुओं की पूरी जानकारी थी और इसीलिए उन्होंने उक्त प्रस्ताव रखने का विचार किया था।

उन्होंने आगे कहा, 'लॉ स्कूल वह नर्सरी है जहां हमारे कानूनी पेशेवर और जज तैयार होते हैं। एमएनएलयू से कई लोगों के सपने साकार हुए हैं। एमएनएलयू का मकसद देशभर से चयनित छात्रों और शिक्षकों को राष्ट्रीय दृष्टिकोण प्रदान करना है। यहां कोई क्षेत्रीयता और संकीर्ण मानसिकता नहीं है और यही बात राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय को अन्य से अलग करती है।'

जस्टिस बोबडे ने कहा कि एमएनएलयू में दो विशिष्ट पाठ्यक्रम पढ़ाए जाते हैं, जिनमें से एक पाठ्यक्रम राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) की तर्ज पर जजों को तैयार करेगा, जहां न सिर्फ सैनिक, बल्कि अधिकारियों को भी तैयार किया जाता है और दूसरा पाठ्यक्रम न्यायशास्त्र है। बता दें कि जस्टिस बोबडे 23 अप्रैल को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।

chat bot
आपका साथी