लोकहित और सहिष्णुता ही धर्म की सच्ची भावना, युवाओं में स्वामी विवेकानंद के आदर्शों को भरने की जरूरत : मुख्य न्यायाधीश
देश के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने रविवार को कहा कि स्वामी विवेकानंद का विश्वास था कि धर्म की सच्ची भावना लोकहित और सहिष्णुता है। धर्म अंधविश्वासों और रुढ़ियों से ऊपर होना चाहिए। हमें नए भारत के निर्माण के लिए युवाओं में स्वामी जी के आदर्शों को भरना चाहिए।
हैदराबाद, पीटीआइ। देश के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने रविवार को कहा कि स्वामी विवेकानंद मानते थे कि धर्म की सच्ची भावना लोकहित और सहिष्णुता है। धर्म अंधविश्वासों और रुढ़ियों से ऊपर होना चाहिए। सहिष्णुता के सिद्धांतों के लिए पुनरुत्थानशील भारत के निर्माण के सपने को पूरा करने के लिए हमें युवाओं में स्वामी जी के आदर्शों को भरना चाहिए।
वह विवेकानंद इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन एक्सिलेंस हैदराबाद के 22वें स्थापना दिवस और स्वामी विवेकानंद के शिकागो में दिए गए ऐतिहासिक भाषण के 128 वर्ष पूरे होने के मौके पर आयोजित समारोह को संबोधित कर रहे थे। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषण में सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकार्यता के विचार को दुनिया के सामने रखा था।
उन्होंने कहा कि विवेकानंद जी ने राष्ट्रों और सभ्यताओं के सामने समाज में वर्ग संघर्ष से होने वाले खतरों का आकलन किया था। मौजूदा वक्त में आवश्यकता है कि स्वामी विवेकानंद के 1893 में बोले गए शब्दों पर गौर किया जाए। स्वामी विवेकानंद का मानना था कि धर्म की सच्ची भावना लोकहित और सहिष्णुता में समाहित है। लोगों को धार्मिक अंधविश्वासों और रुढ़ियों से ऊपर उठना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि लोकहित और सहिष्णुता के सिद्धांतों के माध्यम से नए भारत के सपने को पूरा करने के लिए आज के युवाओं में स्वामीजी के आदर्शों को भरना जरूरी है। स्वामी विवेकानंद का यह भी मानना था कि भारत के युवा हमारे अतीत को उज्ज्वल भविष्य से जोड़ने वाली कड़ी हैं।
सीजेआई ने आगे कहा कि यदि हमारे मन में दृढ़ यकीन है तो कुछ भी संभव है। मुख्य न्यायाधीश ने युवाओं को स्वास्थ्य रहने के लिए खेल गतिविधियों में भी सक्रिय रहने की सलाह दी। उन्होंने शिक्षण संस्थानों से अपील करते हुए कहा कि छात्रों में अधिकारों और निषेधों के बारे में जागरुकता लाने की दरकार है।