बच्चों को बताना होगा कि स्क्रीन से दूरी भी है जरूरी, तभी बढ़ेगी क्रिएटिविटी

दोस्तो समय बिताने और जानकारी बढ़ाने का बहाना स्मार्टफोन तो कतई नहीं है। स्क्रीन पर लगातार बने रहने से जितना आप हासिल नहीं करते उससे ज्यादा अपना शारीरिक और मानसिक नुकसान कर बैठते हैं। स्क्रीन से बनाएं दूरी....तभी बढ़ेगी क्रिएटिविटी।

By Pooja SinghEdited By: Publish:Sun, 10 Oct 2021 11:23 AM (IST) Updated:Sun, 10 Oct 2021 11:23 AM (IST)
बच्चों को बताना होगा कि स्क्रीन से दूरी भी है जरूरी, तभी बढ़ेगी क्रिएटिविटी
बच्चों को बताना होगा कि स्क्रीन से दूरी भी है जरूरी, तभी बढ़ेगी क्रिएटिविटी

यशा माथुर, नई दिल्ली।  दोस्तो, समय बिताने और जानकारी बढ़ाने का बहाना स्मार्टफोन तो कतई नहीं है।

स्क्रीन पर लगातार बने रहने से जितना आप हासिल नहीं करते उससे ज्यादा अपना शारीरिक और मानसिक नुकसान कर बैठते हैं। इसलिए इससे जितना बच सकते हैं बचें। कोई नया आइडिया निकाल अन्य बच्चों के साथ मिलकर आउटडोर या इनडोर गतिविधियों में हिस्सा लें और करें स्क्रीन से बनाएं दूरी....

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अर्श करीब आठ साल का होगा। हाल ही में उसने इंस्टाग्राम पर कंपोस्ट खाद बनाने और जैविक खेती करने का तरीका बताया। कंपोस्ट बनाने के लिए क्या चाहिए, वह बहुत खुशी से बताता है। कभी वह अपनी मां एंटरप्रेन्योर कनिका गुप्ता शौरी के साथ रसोई में केक बनाने में मदद करता है तो कभी सिंक में भरे जूठे बर्तन धोना भी सीखता है। अर्श अपने परिवार के साथ दुबई में रहता है। उसकी मां कनिका अपनी रियल स्टेट कंपनी की फाउंडर व सीओओ हैं, ट्रैवलर हैं, फिटनेस और इंटीरियर डिजाइन में निपुण हैं।

मल्टीटास्कर, मामप्रेन्योर कनिका हर दम अपने दो बेटों के साथ इंस्टाग्राम पर वीडियो शेयर करती हैं जिसमें वे अपने दोनों बेटों के साथ कोई न कोई शारीरिक या मानसिक रुचिकर एक्टिविटी करती दिखती हैं। उनके संग मस्ती के साथ कोई रचनात्मक काम करते हुए उनके दोनों बेटे भी बहुत खुश रहते हैं। वे कभी भी अपने बच्चों को मोबाइल या टीवी के साथ नहीं दिखाती हैं। अपने काम और बच्चों की परवरिश में बेहतर तालमेल बिठाते हुए बच्चों को स्क्रीन से इतर गतिविधियों में शामिल रखती हैं। उनका मानना है कि बच्चों के साथ एक्टिविटी करने और उन्हें पूरा समय देकर नयी बातें बताने से उनका सर्वांगीण विकास होता है और वे कई तरह के क्रिएटिव काम सीखते हैं।

किताबों से खेलना लगता है मजेदार

इसी तरह से रात के आठ बजे के एक बेडरूम के दृश्य में मां आकांक्षा, पति अनमोल और चार साल के बेटे अवयुक्त के साथ नजर आती हैं। वे तीनों खाना खाकर थोड़ा बाहर घूम कर आए हैं और अब मां के हाथ में अमीश त्रिपाठी की राम सीरीज की किताब है, पिता हैरी पाटर पढ़ रहे हैं तो बच्चा भी किताब मांगता है और मां उसके लिए मंगाई कई किताबों में से एक निकालने के लिए कहती हैं। बेटा अपनी मनपसंद किताब में चित्र देखने लगता है और सबको पढ़ते देख टूटी-फूटी भाषा में कुछ-कुछ पढ़ने लगता है। बीच में बार-बार मां से पूछता है, मॉम यह क्या है? मां तसल्ली से उसे समझाती हैं। कभी वह पापा से प्रश्न पूछता है तो वह भी उसे विस्तार से बताते हैं। वह संतुष्ट होकर फिर अपनी किताब से कुछ समझने, कुछ जानने की कोशिश करने लगता है।

तीनों के सामने कोई स्क्रीन नहीं है क्योंकि साफ्टवेयर इंजीनियर माता-पिता दिन भर स्क्रीन पर काम करने से ऊब चुके हैं और बेटे को मोबाइल और टीवी के एक्सपोजर से बचाने के लिए किताबों में उलझाया है। बीच में नोक-झोंक और बच्चे के अबोध सवाल, सकारात्मक सी तरंगें बाहर निकल कर आती हैं कमरे से। मां आकांक्षा कहती हैं, 'मैं अवयुक्त को पढ़ने की आदत डालने को लेकर काफी गंभीर हूं। मैं बिल्कुल नहीं चाहती कि वह रात में मोबाइल देखते-देखते आंख बंद करें। और तो और, अगर कभी यह मोबाइल पर कार्टून वीडियोज देख लेता है तो उसका व्यवहार काफी चिड़चिड़ा सा हो जाता है, अन्यथा बेहद खुश रहता है और हर दम खेलता रहता है।'

क्या करें कोई मोबाइल नहीं छोड़ता

दूसरी तरफ, छुट्टी का दिन, फुरसत के क्षण और आम ड्राइंग रूम का दृश्य। मम्मी सोनाली वाट्सएप पर व्यस्त, पिता अवनीश टेलीग्राम पर सोसायटी की राजनीति पर चैटिंग में खोए हुए, चौदह साल का बेटा ईशान फुटबाल के मैच में मैनचेस्टर यूनाइटेड को जिताने में रत और पांच साल की बेटी बार्बी आध्या वीडियो गेम खेलने और इसमें मेकअप के नये प्रयोग करने में मस्त। न किसी को किसी से शिकायत न ही किसी को किसी से कोई परेशानी। स्क्रीन में आंखें गड़ी हैं और सबका मनपसंद शगल चल रहा है। किसी को किसी की दखलअंदाजी पसंद नहीं। कई घंटे भी निकल जाएंगे तो कोई कुछ बोलेगा नहीं। इसके बाद क्या होगा जब सबकी आंखें मोबाइल से हटेंगी तो कई काम छूट जाएंगे। सब एक-दूसरे पर चिल्लाएंगे, दोष देंगे। आखिर में बच्चे भी पैरेंट्स को ही दोषी मानेंगे। इतना सब कुछ होने पर भी अवनीश बच्चों व पत्नी से मोबाइल छुड़वाने में खुद को असहाय बताते हुए कहते हैं, 'सभी को इतनी आदत पड़ गई है कि मेरा पुराना फोन आद्या उठा लेती हैं, इनकी तो सहेलियों से चैट ही खत्म

नहीं होती। फिर मैं भी अपना मोबाइल देखने लगता हूं।' दरअसल बच्चे जब देखते हैं कि अधिकतर समय पैरंट्स मोबाइल में उलझे रहते हैं, तो उन्हें लगता है कि शायद मोबाइल मनोरंजन का सबसे बड़ा साधन है,इसलिए वे भी मोबाइल में खोने लगते हैं।

विकल्प अपनाना है जरूरी

दोस्तों, मोबाइल से दूर रहना आपके लिए बहुत जरूरी है। सभी यह जानते और मानते हैं कि आपको आनलाइन कक्षाओं और अन्य कई चीजों के लिए स्क्रीन का प्रयोग करना पड़ता है लेकिन जरूरत जितना ही इसका इस्तेमाल करें। क्योंकि यह आपके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है। इसके अलावा भी आपके पास बहुत से विकल्प हो सकते हैं।

आप गौर करके तो देखें, उनमें मन लगाकर तो देखें। अब आप खुद देखिए। छठी कक्षा में पढ़ने वाली अर्पिता श्री ने सब बच्चों को इकट्ठा कर घर में रामायण, महाभारत और कृष्णलीला जैसे मंचन कर डाले। उनका कहना है कि, ‘मेरी मम्मी प्रीति और उनकी दो बहनें यानी मेरी मौसियां एक मकान में रहते हैं। लाकडाउन में हम सब बच्चे घर में थे तो मेरे दिमाग में आया कि हम नाटक खेलते हैं। मैं सबसे बड़ी हूं तो मैंने ही डायलाग लिखे और उनको प्रिंट पकड़ा दिए। सबने अपने किरदार बहुत अच्छे से निभाए और हमें खूब मजा आया। हम इनकी रिहर्सल में ही व्यस्त रहते। हमें मोबाइल देखने या फिर कंप्यूटर पर आंखें गड़ाए रखने की जरूरत ही नहीं पड़ी।’ तो दोस्तो, आप भी मोबाइल की लत से दूर रहकर अपने पसंदीदा खेल अपने घर में खेल सकते हैं और अपनी रचनात्मकता दिखा सकते हैं। 

बाइट्स

ऐसे संवाद लिखे, जिसे बच्चे आसानी से बोल सकें

मैंने कुछ नया करने का सोचा। सब भाई-बहनों से बात की तो वे खुश हो गए। इसके बाद हमने कास्ट्यूम्स तैयार किए। मैंने राम, कृष्ण और सभी के डायलाग लिखे और हर बच्चे के लिए वाक्य ऐसे बनाए, जिसे वह बोल पाएं। क्योंकि छोटे बच्चे भी इसमें शामिल थे। मेरे साथ अपर्णा श्री, अर्णव निधि, भाव्या श्री, हिमांशु सहित कई बच्चों ने भाग लिया। मैं निर्देशक भी थी और मैंने ताड़का, शूर्पणखा, जनक, दशरथ, रावण की भूमिका की। भाव्या विश्वामित्र, कैकयी, हनुमान और विभीषण बनी। अर्णव निधि राम थे और हिमांशु लक्ष्मण। अर्पणा ने सीता, मंथरा, मेघनाथ के किरदार निभाए। यह सब हमने अपने आनलाइन क्लासेज के साथ किया। पढ़ाई से समय मिलता तो हम रिहर्सल करते और फिर शो भी करते हैं। मम्मी प्रीति ने भी हमें काफी मदद की और प्रोत्साहित किया।

अर्पिता श्री

बाल कलाकार

 

बेटे को ड्राइंग से मिलता है सुकून

मेरा बेटा हेमकर सिंह छठीं कक्षा में पढ़ता है। कोरोना काल में वैसे तो बच्चों को मोबाइल और लैपटाप पर पढ़ाया जाने लगा है लेकिन मेरा बेटा बहुत जल्दी इनसे बोर हो जाता है और कुछ अच्छा करने के लिए ड्राइंग करता है। अगर बच्चा किसी शौक को आगे बढ़ाता है तो वह मोबाइल और लैपटाप से दूर रहेगा। हम जब भी बुक फेयर जाते तो बच्चों को साथ लेकर जाते थे। बच्चे वहां से बहुत सी स्टेशनरी खरीदकर लाते। वहीं से बच्चों में रुचि पैदा हुई। हम खुशकिस्मत हैं कि हम बच्चे को ऐसा वातावरण दे पाए। आजकल बच्चे आनलाइन क्लास लेते हैं, पर इससे परेशान भी हो जाते हैं और कुछ अलग करना चाहते हैं। ऐसे में उन्हें क्रिएटिव काम से जोड़ा जा सकता

है। मेरा बेटा भी ड्राइंग व क्राफ्ट से सुकून महसूस कर सकता है। अगर हम अपने बच्चों के हुनर को परख कर एसे बढ़ावा दें, तो वह स्क्रीन से होने वाले नुकसान से भी बच जाएगा।

सावित्री सिंह

एसोसिएट प्रोफेसर, शिक्षा विभाग, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, दिल्ली

 

बाक्स १

ज्यादा स्क्रीन देखने के विपरीत प्रभाव

.सिर में दर्द

.आंखों में लाली आना, सूखापन और जलन होना

.नजर कमजोर हो सकती है। पहले से जिन्हें चश्मा लगा है उनका नंबर बढ़ सकता है।

.आत्मसंयम की कमी

.जिज्ञासा में कमी

.भावनात्मक अस्थिरता

.ध्यान केंद्रित न कर पाना

.आसानी से दोस्त नहीं बना पाना

बाक्स २

आप क्या करें ...

.माता-पिता, भाई-बहन के साथ ज्यादा समय बिताएं, इससे मोबाइल का इस्तेमाल

धीरे-धीरे बंद हो जाएगा।

.खाली समय में अपनी क्षमता के अनुसार घरेलू कामों में मम्मी का सहयोग करें।

इससे आप आत्मनिर्भर बनेंगे और व्यावहारिक चीजें भी सीखेंगे।

.शौक के हिसाब से पेंटिंग, डांस, म्यूजिक को तरजीह दें।

.प्रकृति को नजदीक से देखें

. आउटडोर गेम्स खेलें

.अपनी रचनात्मक क्षमता का विकास करें। यानी जो काम अच्छा लगता है और आप अच्छा

करते हैं तो उसे आगे बढ़ाएं।

बाक्स ३

फायदे क्या मिलेंगे

.दिमाग बेहतर काम करेगा

.वर्चुअल दुनिया की जगह वास्तविक समाज को पहचानेंगे

.अच्छी नींद आएगी

.दिमाग शांत रहेगा

.चिड़चिड़ापन दूर होगा

.तरोताजा रहेंगे

.नयी ऊर्जा मिलेगी

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