बीएचयू के विज्ञानियों ने बनाई नमी सोख लेने वाली जेली, उमस खत्म कर भरपूर आक्सीजन दें सकेंगी घर की दीवारें

बीएचयू की भौतिक विज्ञानी प्रो. नीलम श्रीवास्तव की अगुआई में शोध टीम ने स्टार्च (स्वाद व गंध रहित पाली सैकेराइड कार्बोहाइड्रेट) और नमक (सोडियम आयोडाइड पर क्लोरेट सोडियम क्लोराइड और मैग्नीशियम क्लोराइड में कोई एक) को घोलकर जेली तैयार की जो हवा में मौजूद नमी को सोख लेती है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Publish:Tue, 03 Aug 2021 06:14 PM (IST) Updated:Tue, 03 Aug 2021 07:29 PM (IST)
बीएचयू के विज्ञानियों ने बनाई नमी सोख लेने वाली जेली, उमस खत्म कर भरपूर आक्सीजन दें सकेंगी घर की दीवारें
हवा में मौजूद नमी सोख लेने वाली जेली

 हिमांशु अस्थाना, वाराणसी। ज्यादा समय नहीं गुजरा जब कोरोना की पहली और दूसरी लहर ने हमें अपने दफ्तरों और घरों का एयरकंडीशनर (एसी) बंद करने पर मजबूर कर दिया था। शुद्ध आक्सीजन का महत्व भी हमें तभी समझ में आया। ऐसे समय में काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के विज्ञानियों को एक ऐसी जेली (इलेक्ट्रोलाइट) बनाने में सफलता मिली है जो बिजली की बेहद कम खपत में न सिर्फ भीषण गर्मी और उमस से निजात दिलाएगी बल्कि कमरे में आक्सीजन की आपूर्ति भी बढ़ा देगी।

भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन कार्यरत टेक्नोलाजी इंफारमेशन फारकास्टिंग एंड एसेसमेंट काउंसिल ने बीती 22 जुलाई को इसके पेटेंट को मंजूरी दी है। भविष्य की इस टेक्नोलाजी के जमीन पर उतरने में अभी थोड़ा समय है, लेकिन बीएचयू ने पर्यावरण के लिए नुकसानदेह और अत्यधिक बिजली खर्च करने वाले एसी पर निर्भरता कम करने के साथ ही शुद्ध आक्सीजन सुनिश्चित कराने की राह तो दिखाई ही है।

 

चला स्टार्च और नमक के घोल का जादू

गर्मी के मौसम में हवा जितनी नम होती है, उमस उतनी ही अधिक बेचैन करने वाली होती है। बीएचयू के महिला महाविद्यालय की भौतिक विज्ञानी प्रो. नीलम श्रीवास्तव की अगुआई में शोध टीम ने स्टार्च (स्वाद व गंध रहित पाली सैकेराइड कार्बोहाइड्रेट) और नमक (सोडियम आयोडाइड पर क्लोरेट, सोडियम क्लोराइड और मैग्नीशियम क्लोराइड में कोई एक) को घोलकर जेली तैयार की जो हवा में मौजूद नमी को सोख लेती है। स्टार्च के प्रमुख स्रोत आलू, गेहूं, मक्का, अरारोट, ब्राउन राइस आदि होते हैं।

दीवार को सीलन से भी मिलेगी मुक्ति

प्रो. नीलम श्रीवास्तव ने पाया कि इलेक्ट्रोड (धातु प्लेट या छड़ जिससे इलेक्ट्रोलाइट में विद्युत धारा प्रवाहित होती है) और विद्युत प्रवाह के लिए 0.2 वोल्ट का उपकरण लगाने पर जेली में अवशोषित पानी हाइड्रोजन और आक्सीजन में टूट जाता है। इससे कमरे में आक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है और वातावरण शुष्क हो जाता है। उन्होंने बताया कि इलेक्ट्रोड लगी जेली को दीवार पर लगाने से कमरे में आक्सीजन की उपलब्धता बढऩे के साथ-साथ उमस से भी राहत मिलेगी। बारिश के मौसम में दीवारों पर लगने वाली सीलन से भी मुक्ति मिलेगी। इससे दीवार के पेंट को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा, लंबे समय तक टिकाऊ होगी और एसी की तुलना में बेहद सस्ती होगी।

रूटीन प्रयोग के दौरान सूझा यह विचार

लैब में रूटीन प्रयोग के दौरान ही एक दिन डा. नीलम के शोध छात्र मानिंद्र ने देखा कि उच्च आद्र्रता वाले डेसीकेटर (शीशे का पात्र) से निकालने के बाद जेली गीली हो गई है। वहीं, बाहर निकालने के बाद 24 घंटे में जेली सूख गई। डेसीकेटर से भी नमी खत्म हो गई। डा. नीलम ने पाया कि डेसीकेटर की नमी जेली में अवशोषित होकर आक्सीजन और हाइड्रोजन में परिवर्तित हो जा रही है। इसी फार्मूले पर आगे शोध किया गया। शोध टीम में डा. मानिंद्र कुमार, डा. तुहिना तिवारी, डा. माधवी यादव और डा. दीप्ति यादव शामिल हैं।

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