Quit India Movement: महात्मा गांधी के इस आंदोलन से हिल गई थी अंग्रेजी हुकूमत

भारत छोड़ो आंदोलन के शुरू होते ही गांधी नेहरू पटेल आजाद समेत कई बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। अंग्रेजी हुकूमत इतना डर गई थी कि उसने एक भी नेता को नहीं बख्शा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 08 Aug 2020 12:57 PM (IST) Updated:Sat, 08 Aug 2020 01:13 PM (IST)
Quit India Movement: महात्मा गांधी के इस आंदोलन से हिल गई थी अंग्रेजी हुकूमत
Quit India Movement: महात्मा गांधी के इस आंदोलन से हिल गई थी अंग्रेजी हुकूमत

नई दिल्ली। आज ही के दिन 1942 में महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता के लिए मुंबई (तब बंबई) से भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में इसका प्रस्ताव पारित हुआ। आंदोलन के लिए उन्होंने ‘करो या मरो’ का नारा दिया। इससे पूर्व अप्रैल 1942 में क्रिप्स मिशन असफल हो गया था। नौ अगस्त को सभी बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए गए। 1942 के अंत तक करीब 60 हजार लोगों को जेल भेजा गया और कई लोगों की मौत हुई। अगस्त 1942 से दिसंबर 1942 तक प्रदर्शनकारियों पर 538 राउंड गोलियां चलाई गईं।

गांधी जी का भाषण: मुंबई का ग्वालिया टैंक, जहां 'भारत छोड़ो' आंदोलन का ऐलान हुआ, वहां से दिए गए गांधी जी के भाषण का बिजली का सा असर हुआ था। उन्होंने कहा था, 'एक मंत्र है, छोटा-सा मंत्र। जो मैं आपको देता हूं। उसे आप अपने हृदय में अंकित कर सकते हैं और अपनी सांस द्वारा अभिव्यक्त कर सकते हैं। वह मंत्र है- करो या मरो। या तो हम भारत को आजाद कराएंगे या इस कोशिश में अपनी जान दे देंगे। अपनी गुलामी का स्थायित्व देखने के लिए हम जिंदा :- साल 1939 में पूरा विश्व दूसरे विश्वयुद्ध की चपेट में था। युद्ध के कारण तमाम वस्तुओं के दाम बेतहाशा बढ़ रहे थे और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भारतीय जनमानस में असंतोष बढ़ने लगा था। मार्च 1942 में क्रिप्स मिशन भारत आया, जिसमें युद्ध की समाप्ति के बाद भारत को औपनिवेशिक दर्जा देने की बात थी, पर प्रस्ताव में दिए गए आश्वासन भारतीय नेताओं को पसंद नहीं थे। उन्हें मिशन के प्रस्तावों से अपने छले जाने का अहसास हो रहा था। इन बातों से एक बड़े आंदोलन की जमीन तैयार होने लगी। इसलिए जब 8 अगस्त, 1942 को कांग्रेस के अधिवेशन में भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित किया गया, तब मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में लोगों ने पूरी तरह से इसका समर्थन किया। अगले दिन यानी 9 अगस्त की सुबह तक बड़े नेताओं की गिरफ्तारी 'ऑपरेशन जीरो ऑवर' के तहत कर ली गई। आंदोलन की अगुवाई छात्रों, मजदूरों और किसानों ने की। बहुत से क्षेत्रों में किसानों ने वैकल्पिक सरकार बनाई। बलिया शहर पर चित्तू पांडेय जैसे स्थानीय नेताओं के नेतृत्व में लोगों ने कब्जा कर लिया। उत्तर और मध्य बिहार के 80 प्रतिशत थानों पर जनता का राज हो गया। पूर्वी उत्तर प्रदेश के साथ-साथ बिहार में गया, भागलपुर, पूर्णिया और चंपारण में अंग्रेजों के खिलाफ स्वत: स्फूर्त विद्रोह हुआ। आंदोलन का एक भूमिगत संगठनात्मक ढांचा भी तैयार हो रहा था। आंदालेन की बागडोर अच्युत पटवर्धन, अरुणा आसफ अली, राममनोहर लेाहिया, सुचेता कृपलानी, छोटू भाई पुराणिक, बीजू पटनायक, आरपी गोयनका और बाद में जेल से भागने के बाद जयप्रकाश नारायण जैसे भारतीय नेताओं ने फरार रहते हुए भी संभाल ली थी। ब्रिटिश सरकार को इस जनविद्रोह को काबू करने में छह-सात हफ्ते लगे। विद्रोह थोड़े समय तक चला, पर यह तेज था। सरकार उसे दबा देने में सफल हुई, लेकिन 1857 के बाद इतना भयंकर विद्रोह दूसरी बार हुआ था, जिसमें अंग्रेजों का भारत से जाना तय हो गया।

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