बिल गेट्स बोले, जलवायु परिवर्तन से खेती को बचाने के लिए और निवेश की जरूरत
गेट्स ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से समूचा कृषि क्षेत्र प्रभावित होगा। किसान परेशान हैं। फसलों की उत्पादकता पर विपरीत असर पड़ने लगा है। खेती पर जटिल असर दिखेगा जिसमें सबसे ज्यादा दुनिया के 60 फीसद से अधिक छोटे किसान परेशान होंगे।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से कृषि क्षेत्र में गंभीर चुनौतियां खड़ी होने लगी हैं। इसमें भी दुनिया के लघु किसानों की मुश्किलें और बढ़ी हैं। उनके बच्चों में कुपोषण की समस्या पैदा हुई है, जिससे उनमें बौनापन बढ़ रहा है। अमेरिकी अरबपति बिल गेट्स ने इन चुनौतियों का जिक्र करते हुए कहा कि सटीक आंकड़ों से कृषि क्षेत्र पर पड़ने वाले जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में मदद मिलेगी। खेती को बचाने के लिए और निवेश की जरूरत है। गेट्स यहां सोमवार को कृषि सांख्यिकी पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बोल रहे थे।
उद्घाटन समारोह में बिल गेट्स ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से समूचा कृषि क्षेत्र प्रभावित होगा। किसान परेशान हैं। फसलों की उत्पादकता पर विपरीत असर पड़ने लगा है। खेती पर जटिल असर दिखेगा, जिसमें सबसे ज्यादा दुनिया के 60 फीसद से अधिक छोटे किसान परेशान होंगे। भुखमरी और कुपोषण के खिलाफ चल रही लड़ाई की राह कमजोर होगी। ऐसे में कृषि सांख्यिकी के सहारे सटीक आंकड़े जुटाने की जरूरत है, जो इसके प्रभाव को कम कर सकता है।
सम्मेलन में दुनिया के एक सौ से अधिक देशों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं। इसमें कृषि संबंधी आंकड़े जुटाने के अत्याधुनिक तरीके के बारे में विचार-विमर्श किया जाएगा। यह सम्मेलन अगले तीन दिन और चलेगा। गरीबी और कुपोषण के चलते दुनिया के नौ करोड़ किसानों के बच्चे बौने कद के रह जाते हैं। भारत में हरितक्रांति की प्रशंसा करते हुए गेट्स ने कहा कि फसलों की उत्पादकता के लिए उन्नत बीजों पर दोगुना निवेश की आवश्यकता है। छोटे किसानों की आजीविका के लिए पशुधन व डेयरी सबसे मुफीद साबित हो सकती है। इससे उनकी आमदनी में 20 फीसद तक का इजाफा किया जा सकता है। लेकिन कृषि नीति बनाने के लिए सही व सटीक सांख्यिकी की जरूरत होती है। स्वायल (मिट्टी) के पोषक तत्वों के बारे में किसानों को सही समय पर जानकारी मिल जाये तो भी उत्पादकता बढ़ाना आसान है। आंध्र प्रदेश और उड़ीसा का हवाला देते हुए गेट्स ने कहा कि यहां की मिट्टी में जिंक की बहुत कमी है, जिसकी जानकारी के साथ किसानों को जिंक मुहैया करा दिया जाए तो बात बन सकती है। स्वायल मैपिंग के साथ उसका विश्लेषण कर आंकड़े तैयार किये जा सकते हैं।
कृषि सांख्यिकी के इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भारत में सांख्यिकी का इतिहास गिनाया। वैदिक व महाकाव्य काल से लेकर वर्तमान कृषि सांख्यिकी प्रणाली का ब्यौरा देते हुए दुनिया में सबसे मजबूत बताया। सांख्यिकी में संभाव्यता के सिद्धांत के बारे में कौटिल्य के अर्थशास्त्र का भी जिक्र किया। कृषि की उत्पादकता और पैदावार के बारे में प्रचलित कटाई सिस्टम को उचित व सटीक करार दिया। तोमर ने किसानों की आमदनी को दोगुना करने के सात मंत्र भी गिनाये, जिनमें फसल व पशुधन उत्पादकता, लागत में सुधार, सघन खेती, हाईवैल्यू फसलों के विविधीकरण, मूल्यवर्धित करने और खेती के गैर कृषि कारोबार को जोड़ना शामिल है।
सांख्यिकी एंव प्रोग्राम कार्यान्वयन मंत्रालय के सचिव प्रवीण श्रीवास्तव ने कहा कि जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी 17 फीसद है, जबकि 50 फीसद रोजगार यहां मिलता है। कृषि क्षेत्र में आंकड़ा जुटाना एक बड़ी चुनौती है। जलवायु परिवर्तन से खेती पर पड़ने वाले असर का आकलन बहुत जरूरी है। वैज्ञानिक तरीके से आंकड़ा एकत्रित करने में निवेश की आवश्यकता है।