नक्सलियों के गढ़ में दिख रहा बड़ा बदलाव, काले झंडे जमींदोज; शान से फहराया जा रहा तिरंगा

सुकमा जिले के गोमपाड़ में अगस्त 2016 में पहली बार तिरंगा फहराया गया। फाइल फोटो

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 13 Aug 2020 09:18 AM (IST) Updated:Thu, 13 Aug 2020 09:18 AM (IST)
नक्सलियों के गढ़ में दिख रहा बड़ा बदलाव, काले झंडे जमींदोज; शान से फहराया जा रहा तिरंगा
नक्सलियों के गढ़ में दिख रहा बड़ा बदलाव, काले झंडे जमींदोज; शान से फहराया जा रहा तिरंगा

जगदलपुर, संतोष सिंह। बस्तर संभाग के सैकड़ों गांव जहां पहले नक्सलियों की तूती बोलती थी, वहां अब बदलाव नजर आने लगा है। छत्तीसगढ़ के बीजापुर, दंतेवाड़ा, सुकमा, बस्तर, कोंडागांव, नारायणपुर और कांकेर जिले के तमाम गांवों में ग्रामीण अब नक्सलियों के फरमान को धता बताकर राष्ट्रीय पर्वो पर तिरंगा फहराने लगे हैं। नक्सलियों के टूटते गढ़ में लाल आतंक के विरोध और देशभक्ति का सशक्त संबल बना राष्ट्रीय ध्वज किस तरह निर्णायक भूमिका निभा रहा है।

तिरंगा थामे ये भोले-भाले आदिवासी नक्सलवाद के खात्मे का मानो उद्घोष करते नजर आते हैं। बारीकी से समझने वाली बात है कि यह जमीनी बदलाव उस नक्सलवाद के सफाये का संकेत करता है, जो दशकों से नासूर था। न केवल इन आदिवासियों के लिए जिन्होंने हिंसा और पिछड़ेपन का दंश सहा, वरन देश के लिए भी नासूर था। बीते कुछ वर्षो से बदलाव की बयार ऐसी बही है कि अब कालिक और धुंध पूरी तरह छंटने को है। बस्तर संभाग के गांवों में और स्कूलों में भी अब राष्ट्रीय पर्वो पर ध्वजारोहण होने लगा है, जिसमें ग्रामीण बढ़चढ़ कर भागीदारी करते हैं। कुछ गांवों में तो प्रभातफेरी भी निकाली जाने लगी है।

वर्ष 2017 में बस्तर जिले के ओडिशा से लगे चांदामेटा और मुंडागढ़ में प्रतिबंधित संगठन सीपीआइ माओवादी ने स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा न फहराने की चेतावनी दी थी। बावजूद इसके, ग्रामीणों ने नक्सली धमकियों की परवाह न करते हुए राष्ट्रीय ध्वज फहराया। यह एक बानगी भर है कि देशभक्ति का जज्बा अब यहां किस तरह उफान पर है।

वहीं, सच यह भी है कि नक्सली घटनाओं को लेकर देश-दुनिया में सुर्खियों में रहने वाले बस्तर की हवाओं में बारूद की गंध घटती जा रही है। राष्ट्रीय पर्वो पर पहले अंदरूनी गांवों में तिरंगे के बजाय नक्सलियों का काला झंडा फहराया जाता था, लेकिन पिछले तीन-चार सालों में यह तस्वीर बदली है। ऐसे गांवों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है, जहां अब काले झंडे नहीं, शान के साथ तिरंगा फहराया जाता है। दंतेवाड़ा जिले के कटेकल्याण, कुआकोंडा, बीजापुर जिले के उसूर, भैरमगढ़, सुकमा जिले के कोंटा, छिंदगढ़, नारायणपुर जिले के ओरछा और कोंडागांव जिले के मर्दापाल इलाके के अनेक गांवों में अब राष्ट्रीय पर्वो पर नक्सली नारों की जगह देशभक्ति के तराने गूंजते हैं।

सुकमा जिले का गोमपाड़ अगस्त 2016 में पहली बार सुर्खियों में तब आया, जब यहां ग्रामीणों ने आजादी के बाद पहली बार तिरंगा फहराया था। इसके पहले इन गांवों में नक्सली काला झंडा फहराकर देश और सरकार के प्रति अपना विरोध दर्ज कराते थे, लोगों को भी बाध्य करते थे कि काला झंडा फहराएं। अब उन काले झंडों के साथ हिंसा का पर्याय नक्सलवाद भी जमींदोज होने को है। हाथों में तिरंगा थामे आदिवासी यही तो बताना चाहते हैं।

तिरंगा लेकर निकलते हैं जवान: बीजापुर जिले के बेदरे, फरसेगढ़, मनकेली, गोरना, मुनगा जैसे कई गांवों में नक्सली काला झंडा फहराकर राष्ट्रीय पर्व का बहिष्कार करते थे। सुकमा और नारायणपुर जिले में भी ऐसे ही हालात थे। फोर्स ने यहां पहुंचकर ग्रामीणों का हौसला बढ़ाया, तब उन्होंने तिरंगा फहराने की हिम्मत जुटाई। अब स्थिति यह है कि फोर्स के जवान राष्ट्रीय पर्वो पर बैग में तिरंगा लेकर निकलते हैं और गांव-गांव में उसे फहराते हुए आगे बढ़ते हैं। वहीं, ग्रामीण स्वयं भी तिरंगा थामकर हिंसा से आजादी का एलान करते हैं और जवानों को सलाम करते हैं।

बस्तर के आइजी सुंदरराज पी ने बताया कि नक्सली अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में बीते वर्षो में कहीं-कहीं काला झंडा फहराते रहे हैं। अब हालात वैसे नहीं रहे। अंदरूनी इलाकों में फोर्स की गश्त बढ़ी है। इससे ग्रामीणों का मनोबल बढ़ा है। राष्ट्रीय पर्वो को वे अब खुलकर मनाते हैं, जो उनके जज्बे को सामने ला रहा है।

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