Benami deals in Amaravati : सुप्रीम कोर्ट ने कहा, बातचीत के विवरण के आधार पर नहीं कर सकते जांच

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इसकी जांच नहीं कर सकता कि आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस वी. ईश्वरैया और निचली अदालत के एक निलंबित मजिस्ट्रेट के बीच अमरावती जमीन घोटाला मामले में कथित बेनामी लेनदेन समेत विभिन्न मुद्दों को लेकर फोन पर क्या बातचीत हुई।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Publish:Mon, 22 Feb 2021 05:49 PM (IST) Updated:Mon, 22 Feb 2021 05:49 PM (IST)
Benami deals in Amaravati : सुप्रीम कोर्ट ने कहा, बातचीत के विवरण के आधार पर नहीं कर सकते जांच
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह जांच नहीं कर सकता कि अमरावती जमीन घोटाले में फोन पर क्या बातचीत हुई।

नई दिल्ली, पीटीआइ। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि वह इस बात की जांच नहीं कर सकता कि आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस वी. ईश्वरैया और निचली अदालत के एक निलंबित मजिस्ट्रेट के बीच अमरावती जमीन घोटाला मामले में कथित 'बेनामी' लेनदेन समेत विभिन्न मुद्दों को लेकर फोन पर क्या बातचीत हुई।

जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस आरएस रेड्डी की एक पीठ ने जस्टिस ईश्वरैया की उस याचिका पर भी फैसला सुरक्षित रखा जिसमें उन्होंने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगाने की मांग की थी जिसमें निलंबित जिला मुंसिफ मजिस्ट्रेट के साथ उनकी बातचीत की जांच के निर्देश दिए गए थे।

हाई कोर्ट ने कहा था कि फोन पर हुई उनकी बातचीत से न्यायपालिका के खिलाफ एक गंभीर साजिश कथित तौर पर उजागर हुई है। वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये हुई सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, 'यह अदालत इस बात की जांच नहीं कर सकती कि उनकी बातचीत की लिखित प्रतिलिपि में क्या है और क्या छूट गया। इस पर हाई कोर्ट को फैसला करने दीजिए।'

हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश की तरफ से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की जरूरत है क्योंकि पूर्व न्यायाधीश का पक्ष जाने बिना आरोप लगाए गए हैं। हाई कोर्ट के जांच के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी।

सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में जस्टिस (सेवानिवृत्त) ईश्वरैया ने कहा कि उन्होंने फोन पर बातचीत में निलंबित न्यायिक अधिकारी से बेनामी लेनदेन के बारे में जानकारी मांगी थी जो कथित तौर पर राज्य के नए राजधानी क्षेत्र में हुए भूमि सौदों में भ्रष्टाचार के आरोपों से संबंधित थी। इससे पहले शीर्ष अदालत ने 11 जनवरी को पूर्व न्यायाधीश को निर्देश दिया था कि वह निलंबित जिला मुंसिफ मजिस्ट्रेट के साथ अपनी बातचीत के संदर्भ में अपना रुख स्पष्ट करें। 

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