आदिवासियों को करीब से जानने के लिए कलेक्टर की अनोखी शैली, गांवों और जंगलों के काट रहे चक्कर

गाड़ी से नहीं बल्कि पैदल ही जाने से मिल रही आदिवासियों की आत्मीयता कहने वाले कलेक्टर रजत समुदाय की जिंदगी को करीब से जानने के लिए इन दिनों गावों और जंगलों में घूम रहे हैं। उनकी यह अनोखी शैली आदिवासियों को आकर्षित कर रही है।

By Monika MinalEdited By: Publish:Wed, 28 Oct 2020 02:03 PM (IST) Updated:Wed, 28 Oct 2020 02:03 PM (IST)
आदिवासियों को करीब से जानने के लिए कलेक्टर की अनोखी शैली, गांवों और जंगलों के काट रहे चक्कर
बस्तर के गांवों और जंगलों में घूम रहे कलेक्टर रजत

विनोद सिंह, जगदलपुर। अनोखी शैली के कारण बस्तर में नवनियुक्त कलेक्टर इन दिनों सुर्खियां बटोर रहे हैं। दरअसल, वहां रहने वाले आदिवासियों के जीवन को करीब से जानने के लिए उन्होंने नया रास्ता अपनाया है। इसके लिए वे गाड़ियों के काफिले के साथ नहीं बल्कि पैदल या साइकिल से गांवों और जंगलों की दूरी नापते हुए ग्रामीणों के बीच पहुंच रहे हैं। 2012 बैच के आईएएस अफसर बस्तर कलेक्टर रजत बंसल के काम करने की अनोखी शैली यहां के आदिवासियों को लुभाने भी लगी है।

गांव में बिता रहे रात, ग्रामीणों के साथ करते हैं भोजन

बिना पूर्व सूचना के सुदूर अंचल के किसी भी आदिवासी बहुल गांव में देर शाम पहुंचकर आदिवासी परिवार के घर साथ में भोजन करना, पारिवारिक सदस्य के रूप में घर के सदस्यों से चर्चा करना, रात में खाट पर या फिर गांव वालों की ही तरह जमीन पर सोना और फिर सुबह उठकर गांव वालों से चर्चा करना, गांव में घूमकर समस्याओं को देखना, लोगों से चर्चा कर यह पता करना कि सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है या नहीं  और सबसे अंत में सरकारी मैदानी अमले तथा अधिकारियों को बुलाकर खुले में चौपाल लगाना, कुछ इसी तरह की दिनचर्या और कार्यशैली पर बंसल काम कर रहे हैं। 

कलेक्टर ने कहा- बनती है आत्मीयता 

कलेक्टर बंसल का कहना है कि आम आदमी की तरह गांव वालों के बीच उपस्थित होकर काम करने से ग्रामीण बेझिझक बातचीत करते है। अधिकारी बनकर ग्रामीणों के बीच जाएंगे तो वह आत्मीयता नहीं  जुड़ती जो सामान्य व्यक्ति के रूप में मौजूदगी से बनती है। बंसल का कहना है कि ग्रामीण विकास की जमीनी हकीकत और समस्याएं तथा ग्रामीण विकास की जरूरत समझने गांव में भी रात बिताना पड़ेगा। गौरतलब है कि रजत बंसल इसी साल मई में बस्तर कलेक्टर बनकर आए थे। आते ही जून नक्सल प्रभावित दरभा ब्लॉक के ग्राम कुटुमसर में रात गुजरी। इसके बाद वनांचल के बाजारों में घूमे। 

गांव में बिताई रात, चौपाल लगा ग्रामीणों की सुनी बात

सात जुलाई को संभाग के सबसे बड़े सिंचाई बांध सालेमेटा में रात बिताई और चौपाल लगाकर ग्रामीणों की बातें सुनी। हाल ही में नक्सल प्रभावित दरभा ब्लॉक के ग्राम पंचायत चिड़पाल के मांदरकोंटा में आदिवासी कवासी हिरमा के घर रात गुजारी। कलेक्टर बंसल के काम करने की इस शैली पर सर्व आदिवासी समाज के संभागीय अध्यक्ष दशरथ कश्यप का कहना है कि बस्तर में आदिवासियों के साथ दोस्त के रूप में जुड़कर काम करने के प्रयास की तारीफ की जानी चाहिए। अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। देखते है आगे क्या परिणाम मिलते हैं। कलेक्टर के साथ दूसरे अधिकारियों कर्मचारियों को भी कार्य के प्रति गंभीर होना होगा।

बंसल कर रहे नरोन्हा की यादें ताज़ा

रजत बंसल की कार्यशैली में बस्तर के दूसरे कलेक्टर आरसीवीपी नरोन्हा की झलक दिखती है। पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम का कहना है कि बस्तर के आदिवासियों के उत्थान और विकास के लिए जिस अधिकारी ने भी निस्वार्थ होकर काम किया उसे यहां की जनता ने सिर आंखों पर बिठाया। नरोन्हा की सादगी, कार्य के प्रति समर्पण से प्रभावित होकर उनके नाम पर बीजापुर जिले में नरोन्हापल्ली गांव बसा दिया गया। रजत बंसल मेहनत कर रहे हैं, आदिवासियों का रहन-सहन, उनकी कठिनाइयों, ग्रामीण समस्याओं को देखने समझने साईकिल, गाड़ी से यात्रा कर रहे हैं। शहर, गांव में पैदल भी घूम रहे हैं तो उम्मीद की जा सकती है कि इसका लाभ ग्रामीणों को मिलेगा। प्रशासन को जिम्मेदार बनाने विभिन्न विभागों और अफसरों के काम में भी कसावट लाना होगा। सरकारी शोषण को रोकना होगा।

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