बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट में तेजी लाने की कोशिशें तेज, बाधा दूर करने में जुटीं सरकारें

bullet train project जापान के महावाणिज्य दूत ने हाल ही में बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट के तहत बनाए जा रहे अहमदाबाद और साबरमती स्टेशनों का दौरा कर परियोजना की प्रगति की पड़ताल की।

By Sanjeev TiwariEdited By: Publish:Wed, 19 Jun 2019 10:36 PM (IST) Updated:Thu, 20 Jun 2019 12:08 AM (IST)
बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट में तेजी लाने की कोशिशें तेज, बाधा दूर करने में जुटीं सरकारें
बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट में तेजी लाने की कोशिशें तेज, बाधा दूर करने में जुटीं सरकारें

 जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। bullet train project दूसरी बार सत्ता में आने के साथ ही मोदी सरकार ने अहमदाबाद-मुंबई बुलेट ट्रेन परियोजना की बाधाएं दूर करने के उपाय शुरू कर दिए हैं। देश में आम चुनाव के कारण पिछले छह महीनों से परियोजना का काम काफी सुस्त हो गया था। हालांकि मोदी सरकार की सत्ता में पुन: वापसी के साथ ही जापान सरकार ने भी भारत पर परियोजना में तेजी लाने का दबाव बढ़ा दिया है। केंद्र सरकार भी परियोजना को 2023 की नियत तिथि से पहले पूरा करने की इच्छुक है।

इस सिलसिले में जापान के महावाणिज्य दूत ने हाल ही में बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट के तहत बनाए जा रहे अहमदाबाद और साबरमती स्टेशनों का दौरा कर परियोजना की प्रगति की पड़ताल की और अधिकारियों से अड़चनों का ब्यौरा लिया। यही नहीं, केंद्र की सलाह पर महाराष्ट्र सरकार ने भी परियोजना की भूमि अधिग्रहण संबंधी रुकावटों को दूर करने के प्रयास बढ़ा दिए हैं।

गुजरात में हो चुका है 60 फीसद से ज्यादा जमीन का अधिग्रहण
बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए जरूरी 825 एकड़ जमीन में से अब तक गुजरात में 60 फीसद से ज्यादा जमीन का अधिग्रहण हो चुका है। हालांकि किसानों के विरोध के चलते महाराष्ट्र में न के बराबर जमीन अधिग्रहीत हो सकी है। यहां पालघर के 73 गांवों और ठाणे के 22 गांवों की लगभग 350 हेक्टेयर भूमि के अधिग्रहण में कानूनी रुकावटें आड़े आ रही हैं।

सितंबर 2017 में हुआ था परियोजना का भूमिपूजन
अहमदाबाद-मुंबई परियोजना भारत की पहली हाईस्पीड रेल परियोजना है जिसका कार्यान्वयन जापान की मदद से किया जा रहा है। इसके तहत अहमदाबाद और मुंबई के बीच 320 किलोमीटर प्रति घंटे की अधिकतम रफ्तार वाली बुलेट ट्रेन चलाने के लिए 508 किलोमीटर लंबे हाईस्पीड कारीडोर के निर्माण का प्रयास किया जा रहा है। तकरीबन 1.10 लाख रुपये की लागत वाली इस परियोजना के लिए जापान ने 0.1 फीसद की नगण्य ब्याज दर पर 88 हजार करोड़ रुपये की राशि (81 फीसद) कर्ज के रूप में प्रदान करने का वादा किया है। शेष लागत रेलवे, गुजरात और महाराष्ट्र की सरकारों द्वारा वहन की जाएगी। परियोजना का भूमि पूजन सितंबर, 2017 में ही हो गया था।

किसान और पर्यावरणविद बने प्रोजेक्ट की राह में बाधा
परियोजना के लिए लगभग 3600 किसानों की जमीन ली जानी है, लेकिन ज्यादातर किसान मुआवजे की कम दर के कारण जमीन देने को तैयार नहीं हैं। वे बाजार दर पर मुआवजे की मांग कर रहे हैं। किसानों के अलावा पर्यावरणवादियों ने भी परियोजना के लिए मुश्किलें खड़ी कर रखी हैं। उन्होंने पर्यावरण सुरक्षा समिति के नाम से हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया हुआ है, जिसका फैसला जुलाई तक आने की संभावना है।

समिति को इस बात पर आपत्ति है कि परियोजना के लिए पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से मंजूरी क्यों नहीं ली गई है। यही नहीं, समिति ने जापान इंटरनेशनल कोआपरेशन एजेंसी (जीका) को भी पत्र लिखा है और उस रिपोर्ट की प्रति उपलब्ध कराने को कहा है, जिसे जीका के अधिकारियों ने गत दिसंबर- जनवरी में गुजरात और महाराष्ट्र का दौरा करने के बाद तैयार किया था।

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