काफी पुराना है असम-मिजोरम सीमा विवाद, हल करने की हुई कई कोशिशें लेकिन नहीं निकल पाया नतीजा
असम और मिजोरम का सीमा विवाद पुराना मसला है। अब तक इसे हल करने के लिए कई कोशिशें हुई हैं लेकिन खास नतीजा नहीं निकल पाया है। 2018 में हुई हिंसा के बाद पिछले साल अगस्त में फिर मामला उभरा था।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। असम और मिजोरम का सीमा विवाद पुराना मसला है। अब तक इसे हल करने के लिए कई कोशिशें हुई हैं, लेकिन खास नतीजा नहीं निकल पाया है। 2018 में हुई हिंसा के बाद पिछले साल अगस्त में फिर मामला उभरा था। इस साल फरवरी में हालात गड़बड़ाए थे लेकिन केंद्र के हस्तक्षेप से स्थिति संभल गई थी। आइए जानें इस विवाद को लेकर कुछ तथ्य...
डेढ़ सौ बरस पुरानी है जड़
इस विवाद की जड़ सीमांकन को लेकर 1875 और 1933 में आए दो अलग-अलग नोटिफिकेशन में है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, मिजोरम का मानना है कि सीमांकन 1875 के नोटिफिकेशन के आधार पर होना चाहिए। मिजो नेता इस तर्क के आधार पर 1933 के सीमांकन नोटिफिकेशन को खारिज करते हैं कि इसमें मिजो समाज से बात नहीं की गई। वहीं, असम सरकार 1933 के सीमांकन को मानती है और इसी में विवाद है।
दोनों ही राज्य लगाते रहे हैं एक दूसरे पर आरोप
मिजोरम के तीन जिले आइजल, कोलासिब और मामित की 164.6 किलोमीटर की सीमा असम के कछार, करीमगंज और हैलाकांडी जिलों से लगती हैं। मिजोरम का आरोप है कि असम ने इसके कोलासिब जिले के कुछ हिस्से पर कब्जा कर लिया है। वहीं, असम के अधिकारी कहते हैं कि मिजोरम ने उसके हैलाकांडी जिले में 10 किलोमीटर अंदर तक निर्माण किया हुआ है और केले आदि की खेती को बढ़ावा दिया है।
कुछ अन्य राज्यों के सीमा विवाद
थम नहीं रही हिंसा
सोमवार को असम और मिजोरम के बीच सीमा विवाद अचानक फिर भड़क गया। इसमें दोनों राज्यों की पुलिस के बीच फायरिंग में असम के पांच पुलिसकर्मियों की मौत हो गई जबकि 60 अन्य पुलिसकर्मी घायल हो गए। इस दौरान दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों में भी वाकयुद्ध छिड़ गया। पिछले कुछ हफ्तों में एक दूसरे के क्षेत्र पर अतिक्रमण के आरोप और झड़पों ने दोनों राज्यों के बीच तनाव बढ़ा दिया है। यह घटना ऐसे समय हुई है जब शनिवार को शाह ने आठ पूर्वोत्तर राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की थी और लंबित सीमा विवादों को सुलझाने की जरूरत पर बल दिया था।