प्रत्यक्ष सुनवाई शुरू करने के उत्तराखंड हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दी गई अर्जी

याचिका में कहा गया है वर्चुअल अदालतों तक पहुंच और सूचना संचार एवं तकनीक का उपयोग कर वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से मुकदमों की सुनवाई संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) और (जी) के तहत हर वकील को मिला मौलिक अधिकार है।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Publish:Mon, 23 Aug 2021 11:57 PM (IST) Updated:Mon, 23 Aug 2021 11:57 PM (IST)
प्रत्यक्ष सुनवाई शुरू करने के उत्तराखंड हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दी गई अर्जी
याचिका में कहा गया है कि हाई कोर्ट का आदेश न्याय तक सबकी पहुंच के है खिलाफ

नई दिल्ली, प्रेट्र। उत्तराखंड हाई कोर्ट के 24 अगस्त से प्रत्यक्ष सुनवाई शुरू करने के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी गई है। कोरोना के कारण अदालत में प्रत्यक्ष सुनवाई मार्च से निलंबित थी। उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल ने 16 अगस्त को अधिसूचना जारी की, जिसमें मुकदमों की प्रत्यक्ष सुनवाई शुरू होने की स्थिति में लागू होने वाले विस्तृत दिशा-निर्देश दिए गए थे।

वकीलों की संस्था आल इंडिया ज्यूरिस्ट एसोसिएशन द्वारा दायर याचिका में अधिसूचना रद करने का भी अनुरोध किया गया है, क्योंकि इसमें कहा गया है कि वर्चुअल सुनवाई की कोई अर्जी अब स्वीकार नहीं की जाएगी।

याचिका में कहा गया है, वर्चुअल अदालतों तक पहुंच और सूचना, संचार एवं तकनीक का उपयोग कर वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से मुकदमों की सुनवाई, संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) और (जी) के तहत हर वकील को मिला मौलिक अधिकार है। याचिका में कहा गया है कि हाई कोर्ट का आदेश न्याय तक सबकी पहुंच के खिलाफ है, जिसे सुप्रीम कोर्ट की ई-समिति बढ़ावा दे रही है।

बिना विवेक के आदेश दे रहे इलाहाबाद और उत्तराखंड हाई कोर्ट: सुप्रीम कोर्ट

वहीं, दूसरे एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि इलाहाबाद और उत्तराखंड हाई कोर्ट दंडात्मक कार्रवाई नहीं करने या गिरफ्तारी से संरक्षण के लिए विवेक का इस्तेमाल किए बगैर ही एक के बाद एक आदेश पारित कर रहे हैं, जबकि शीर्ष अदालत ने पहले एक आदेश में उनसे सावधानी से इस अधिकार का इस्तेमाल करने को कहा था।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की पीठ ने कहा, हमने देखा है कि मैसर्स निहारिका, इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाम महाराष्ट्र राज्य के वाद को खारिज करने की याचिकाओं पर हमारे फैसले के बाद भी दो उच्च न्यायालय-इलाहाबाद और उत्तराखंड बिना विवेक के ये आदेश पारित कर रहे हैं।

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