प्राचीन भारतीय संस्कृति और कोरोना से बचाव, दोनों में है गहरा रिश्ता

प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के विभिन्न उपायों जैसे उचित भोजन शैली तथा नियमित योग और व्यायाम को भी कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए अत्यंत उपयोगी माना जा रहा है।

By Vineet SharanEdited By: Publish:Fri, 05 Jun 2020 07:10 PM (IST) Updated:Fri, 05 Jun 2020 07:10 PM (IST)
प्राचीन भारतीय संस्कृति और कोरोना से बचाव, दोनों में है गहरा रिश्ता
प्राचीन भारतीय संस्कृति और कोरोना से बचाव, दोनों में है गहरा रिश्ता

नई दिल्ली, जेएनएन। कोरोना की वैश्विक महामारी के इस संक्रमण दौर में संपूर्ण विश्व में त्राहि त्राहि मची हुई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं अन्य संगठनो ने कोरोना के संक्रमण से बचाव को ही कारगर उपाय माना है। इसके अतिरिक्त शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के विभिन्न उपायों जैसे उचित भोजन शैली तथा नियमित योग और व्यायाम को भी कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए अत्यंत उपयोगी माना जा रहा है।

लुधियाना के दयानंद मेडिकल कॉलेज एंड हास्पिटल के रिसर्च एंड डेवलेपमेंट डिपार्टमेंट के चेयरमैन डॉ गुरप्रीत सिंह वांदर और डॉ विवेक गुप्ता कहते हैं कि सरकार द्वारा लॉकडाउन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की घोषणा के साथ ही कोरोना संक्रमण से बचाव के उपायों का सख्ती से पालन करना हर नागरिक का कर्त्तव्य है। कोरोना संक्रमण से बचाव के संभावित उपाय हमारे देश की प्राचीन संस्कृति एवं जीवन शैली के अभिन्न अंग रहे हैं। प्राचीन ग्रंथों में नियमित जीवन शैली तथा स्वस्थ दिनचर्या का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है। हालांकि इस स्वस्थ जीवन शैली के जन जन तक प्रसार के लिए धार्मिक, सामाजिक एवं परंपरागत उपायों का सहारा लिया गया। संभवतः प्रामाणिक वैज्ञानिक आधार न होने के कारण और इनके मूलभूत आधार से विकृत होती इन प्रथाओं और साथ ही साथ चकाचौंध करती पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित हो कर धीरे धीरे हम इन स्वस्थ और उपयोगी परम्पराओं से विमुख होते चले गए।

डॉ गुरप्रीत सिंह वांदर और डॉ विवेक गुप्ता के मुताबिक पिछले कई दशकों से चिकित्सा विज्ञान का ध्यान गैर संक्रमण रोगों जैसे उच्च रक्त चाप, डायबेटीज़, दिल का दौरा, कैंसर के इलाज पर ज्यादा केंद्रित रहा। कोविड 19 या कोरोना की इस महामारी ने वैज्ञानिकों का ध्यान संक्रमण से फैलने वाली बिमारियों की तरफ पुनः आकर्षित किया है। इस महामारी ने चिकित्सा के पारम्परिक तौर तरीकों एवं रोकथाम के तरीकों में बदलाव के संकेत दिए हैं। संभवतः भविष्य में सस्ती और सर्व सुलभ चिकित्सा पद्धतियों और गैरपरंपरागत बचाव के उपाय कारगर साबित होंगे। अगर हम महामारी के इतिहास को देखें तो पिछली कई महामारियों ने अलग अलग समय में मानव जाती का संहार किया है। 1918 में स्पेनिश फ्लू से पूरे विश्व में करीब 5 करोड़ लोगों ने अपनी जान गवाईं थी, जिसमे सिर्फ भारत से ही 1.5 करोड़ लोग कल के गाल में समां गए थे। इन महामारियों के वक्त भी लॉक डाउन, आइसोलेशन और सोशल डिस्टेंसिंग ही बचाव के कारगर उपाय साबित हुए थे। आश्चर्यजनक बात ये है की विज्ञान की इतनी उन्नति के बावजूद आज भी यही उपाय प्रासंगिक हैं।

डॉ गुरप्रीत सिंह वांदर और डॉ विवेक गुप्ता के अनुसार अभिवादन कर शिष्टाचार प्रदर्शित करना सभ्य समाज का एक अभिन्न परंपरा है। भारतीय संस्कृति में हाथ जोड़ कर नमस्ते या प्रणाम करना शिष्टता का प्रतीक माना जाता है। पाश्चात्य सभ्यता के अनुरूप हाथ मिलाना, आलिंगन एवं चुम्बन एक दूसरे के प्रति आत्मीयता प्रकट करते हैं। परन्तु इन अभिवादन के तरीकों से कोरोना संक्रमण फैलने का खतरा लाजिमी है। जबकि नमस्ते या प्रणाम करते समय शिष्टाचार प्रदर्शन के साथ ही सामजिक दूरी बनाये रखना भी संभव है। यही वजह है कि आज कई पाश्चात्य देश हाथ जोड़ कर एक दूसरे का अभिवादन करने को तरजीह दे रहे हैं। 

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