अमृत महोत्सव: जब पोखरण से ‘बुद्धा इज स्‍माइलिंग’ एक कोड वर्ड के साथ भारत बन गया था 'न्यूक्लियर पावर'

दुनिया में आज गिनती के ही देश परमाणु शक्ति संपन्न हैं। भारत ने जब अपना पहला परमाणु परीक्षण 18 मई 1974 को किया तो पूरी दुनिया इस कामयाबी पर चकित रह गई थी। किसी को अंदाजा नहीं था कि भारत चुपचाप इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल कर लेगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 02 Dec 2021 01:21 PM (IST) Updated:Thu, 02 Dec 2021 03:09 PM (IST)
अमृत महोत्सव: जब पोखरण से ‘बुद्धा इज स्‍माइलिंग’ एक कोड वर्ड के साथ भारत बन गया था 'न्यूक्लियर पावर'
पढ़ें भारत ने कैसे इस क्षेत्र में खुद को स्वावलंबन की राह पर मजबूती से आगे बढ़ाया...

नई दिल्‍ली, फीचर डेस्क। 18 मई, 1974 का वह दिन भारत के लिए बड़ा ऐतिहासिक था। इसी दिन भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण कर पूरी दुनिया को चकित कर दिया था। इस आपरेशन का कोड नेम था- ‘स्माइलिंग बुद्धा’। यह परीक्षण देश को परमाणु शक्ति के क्षेत्र में स्वावलंबी बनाने की राह में पहला बड़ा कदम था। हालांकि पहले परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका ने भारत पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए थे। पोखरण की कामयाबी ने भारत को उन देशों की कतार में ला खड़ा किया, जो परमाणु शक्ति संपन्न थे। स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में अमृत महोत्सव शृंखला के तहत पढ़ें भारत ने कैसे इस क्षेत्र में खुद को स्वावलंबन की राह पर मजबूती से आगे बढ़ाया...

ऐसे बढ़ा देश का परमाणु कार्यक्रम: वैसे भारत के परमाणु कार्यक्रम की शुरुआत 1944 में ही हो गई थी, जब प्रख्यात विज्ञानी डा. होमी जहांगीर भाभा ने मुंबई में टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च की स्थापना की थी। भाभा ने देश में परमाणु हथियार के डिजाइन और विकास कार्यक्रम का समन्वय किया। इसके बाद परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) की स्थापना से देश के परमाणु कार्यक्रम को सही दिशा में आगे बढ़ाना सुनिश्चित हो गया। इस क्रम में वर्ष 1962 तक शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा के विकास के लिए बड़े पैमाने पर अनुसंधान रिएक्टरों की स्थापना की गई। हालांकि भारत-चीन युद्ध ने इस प्रगति को कुछ धीमा कर दिया था, मगर वर्ष 1966 में प्रधानमंत्री बनने के बाद इंदिरा गांधी ने परमाणु कार्यक्रम में नये सिरे से दिलचस्पी दिखाई।

पाकिस्तान से युद्ध के बाद इंदिरा गांधी ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बार्क) को परमाणु परीक्षण करने की मौखिक स्वीकृति दी। इस पूरे आपरेशन को काफी गुप्त रखा गया था, ताकि अमेरिका को अपने उपग्रहों के माध्यम से इसके बारे में पता न चल जाए। इस आपरेशन का सांकेतिक नाम ‘स्माइलिंग बुद्धा’ रखा गया था। इसका एक कारण यह भी था कि परीक्षण वाले दिन यानी 18 मई, 1974 भारत में बुद्ध पूर्णिमा (गौतम बुद्ध की जयंती) थी। खास बात यह है कि इसके बारे में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विश्वस्त करीबी सहयोगियों को ही पता था।

पोखरण-1 परमाणु परीक्षण: राजस्थान के पोखरण में परीक्षण स्थल पर ले जाने से पहले परमाणु बम से संबंधित सभी सामग्री को ट्रांबे में इकट्ठा किया गया। 18 मई, 1974 को परमाणु टेस्ट के लिए तैयारियां पूरी हो चुकी थीं। विस्फोट पर नजर रखने के लिए पांच किमी. की दूरी पर एक मचान भी बनाया गया था, जहां से आपरेशन से जुड़े विज्ञानी और सैन्य अधिकारी नजर बनाए हुए थे। सुबह 8.05 बजे सफल विस्फोट के बाद भारत परमाणु परीक्षण करने वाला दुनिया का छठा देश बन गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इतने गुप्त तरीके से देश के परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाया कि खुद उनके मंत्रिमंडल के सहयोगियों को भी इसकी भनक नहीं लगी थी। इस टाप सीक्रेट प्रोजेक्ट पर 75 वैज्ञानिक और इंजीनियरों की टीम ने 1967 से लेकर 1974 तक यानी सात साल तक लगातार मेहनत की। प्रोजेक्ट की कमान बार्क के तत्कालीन निदेशक डा. राजा रमन्ना के हाथ में थी।

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उस जगह पर भी गईं, जहां यह सफल परीक्षण किया गया था। इस पहले सफल परमाणु परीक्षण का देश की जनता ने जश्न मनाया। विज्ञानी होमी सेठना, राजा रमन्ना और डीआरडीओ के बसंती नागचौधुरी को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। अभियान में शामिल कुछ अन्य विज्ञानियों को पद्मश्री से नवाजा गया। पहले परमाणु परीक्षण में डा. एपीजे अब्दुल कलाम भी शामिल थे, जिन्होंने बाद में अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में 1998 में पोखरण-2 परमाणु परीक्षण का नेतृत्व किया था। पोखरण में दूसरे सफल परमाणु परीक्षण को ‘आपरेशन शक्ति’ नाम दिया गया।

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