अमृत महोत्सव: महाकाल की छाया में ये मंदिर भारत मां का, पढ़ें- इस गुप्त ठिकाने के बारे में

देश को अंग्रेजों के चंगुल से स्वाधीन करने की लड़ाई लड़ने वाले क्रांतिकारियों के लिए मध्य भारत स्थित प्राचीन नगरी उज्जैन में एक गुप्त ठिकाना ऐसा था जिसने क्रांति की ज्वाला को प्रज्ज्वलित रखने में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान दिया था।

By Nitin AroraEdited By: Publish:Sat, 04 Dec 2021 04:22 PM (IST) Updated:Sat, 04 Dec 2021 04:31 PM (IST)
अमृत महोत्सव: महाकाल की छाया में ये मंदिर भारत मां का, पढ़ें- इस गुप्त ठिकाने के बारे में
अमृत महोत्सव: महाकाल की छाया में वह मंदिर भारत मां का , पढ़ें- इस गुप्त ठिकाने के बारे में

ईश्वर शर्मा। चंद्रशेखर आजाद सरीखे कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का आश्रय स्थल था उज्जैन के पंडित सूर्यनारायण व्यास का घर ‘भारती भवन’। ईश्वर शर्मा बता रहे हैं कि छद्म नामों से साहित्य रचना व प्रकाशन कर युवाओं में जोश भरने वाले पंडित जी न सिर्फ स्वयं अंग्रेजों की पकड़ से दूर रहते थे बल्कि उनको चकमा देकर क्रांतिकारियों को बचाने में भी माहिर थे ...

देश को अंग्रेजों के चंगुल से स्वाधीन करने की लड़ाई लड़ने वाले क्रांतिकारियों के लिए मध्य भारत स्थित प्राचीन नगरी उज्जैन में एक गुप्त ठिकाना ऐसा था, जिसने क्रांति की ज्वाला को प्रज्ज्वलित रखने में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान दिया था। यह महान ज्योतिर्विद, लेखक, पत्रकार और स्वाधीनता सेनानी पंडित सूर्यनारायण व्यास का घर ‘भारती भवन’ था। उज्जैन स्थित ज्योर्तिलिंग महाकाल मंदिर से एकदम सटा हुआ सफेद रंग का वह घर ऊपर से तो शांति का टापू दिखता, किंतु उसमें भीतर ही भीतर क्रांति की ज्वाला धधकती रहती थी। देशभर के क्रांतिकारी यहां-वहां अंग्रेजों पर हमले करके छुपने के लिए उज्जैन आते और भारती भवन उनका गुप्त आश्रय बनता।

बौखला जाते थे अंग्रेज सिपाही

पंडित सूर्यनारायण व्यास उज्जैन निवासी ज्योतिष विद्या के प्रकांड विद्वान महर्षि नारायण व्यास व विदुषी रेणुदेवी के घर दो मार्च, 1902 (फाल्गुन कृष्ण, अष्टमी, संवत् 1959) को जन्मे थे। युवा हुए तो संस्कृत और हिंदी के गहन अध्ययन ने उन्हें विद्वान बना दिया। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की जीवनी का अनुवाद किया और इस जीवनी में लिखे देश की स्वतंत्रता के संघर्ष, आंसू और अंग्रेजों की दासता से मुक्ति के सपनों ने उन पर ऐसा असर डाला कि इसका अनुवाद करते-करते वे क्रांतिकारी बन गए। युवाओं में क्रांति की ज्वाला जगाने के लिए उन्होंने ‘प्रणवीर पुस्तकमाला’ की अनेक जब्त की जा चुकीं पुस्तकें नौजवानों को गुप्त रूप से बांटीं। वर्ष 1920-21 के काल से उन्होंने अनेक क्रांतिकारी रचनाओं का लेखन शुरू किया। अंग्रेजों को चकमा देने के लिए वे छद्म नामों से लिखते। उन्होंने खग, एक मध्य भारतीय, मालव-सुत, डा. चक्रधर शरण, डा. एकांत बिहारी, व्यासाचार्य, सूर्य-चंद्र, एक मध्य भारतीय आत्मा आदि छद्म नामों से लेख लिखे। इस रणनीति ने खूब काम किया क्योंकि कविता या लेख जिस नाम से छपते, उसकी खोज होने लगती, वास्तव में तो ऐसा लेखक होता ही नहीं था। इससे खोजबीन की प्रक्रिया में अंग्रेजों का बल और समय बर्बाद होता। इसी दौरान वर्ष 1930 में अजमेर में हुए सत्याग्रह में वे पिकेटिंग करने (पहरा देने) पहुंचे ताकि सत्याग्रही पकड़े न जा सकें। नेताजी सुभाषचंद्र बोस के आह्वान पर उन्होंने अजमेर में लगी अंग्रेज अधिकारी लार्ड मेयो की प्रतिमा तोड़ दी और उसका एक हाथ भारती भवन ले आए। इससे अंग्रेज क्रोधित हो उठे और पंडित जी को पकड़ने की कोशिशें तेज हो गईं, किंतु वे पकड़े न जा सके।

प्रच्छन्न वेश में पहुंचे आजाद

देश में चल रहे स्वातंत्र्य आंदोलन ने उन्हें इतना उद्वेलित किया कि उन्होंने क्रांतिकारियों की सहायता के लिए अपने घर भारती भवन को धर्मशाला बना दिया। महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद भी प्रच्छन्न वेश में यहां आते थे। काकोरी ट्रेन एक्शन मेंं शामिल रहे विश्वंभरदयाल शर्मा को जब अंग्रेजों ने खतरनाक व्यक्ति की सूची में रखा, तो वे गुप्त रूप से छह महीने तक भारती भवन में छुपकर रहे। इसी तरह अंग्रेजों की खुफिया पुलिस को छकाते हुए छैलबिहारी उर्फ छगनलाल भी यहां छुपे रहे। विश्वंभरदयाल व छैलबिहारी, चंद्रशेखर आजाद के भरोसेमंद थे। कई बार पंडित सूर्यनारायण व्यास स्वयं भूखे सो जाते किंतु क्रांतिकारियों को भोजन देने, क्रांति की अगली योजना समझाने व आम जनता को जागृत करने के लिए अपनी प्रिंटिंग प्रेस में रात-रातभर जागकर राष्ट्रयज्ञ कैलेंडर प्रकाशित करते। भगत सिंह की ‘मेरी कहानी’, वीर सावरकर की पुस्तक ‘अंडमान की गूंज’ सहित ‘प्रणवीर पुस्तकमाला’ का साहित्य वे क्रांतिकारियों को मुफ्त व गुप्त रूप से बांटते। इन वजहों से वे अंग्रेजों की नजर में खतरनाक राजनीतिज्ञ बन गए थे। शचींद्रनाथ सान्याल व भगत सिंह सहित असंख्य क्रांतिकारियों के मुकदमे लड़ने के लिए उन्होंने चंदा जुटाया, गुप्त रूप से पर्चे-पोस्टरों का प्रकाशन किया और बांटा। इन कारणों से वे 19 माह नजरबंद रहे और वर्ष 1942 व 1946 में इंडियन डिफेंस एक्ट के तहत जेल भेजकर उन्हें यातनाएं दी गईं।

चकमा देने में अव्वल

पंडित व्यास कितने कुशाग्र और चतुर थे, इसका एक उदाहरण श्रीकृष्ण सरल ने लिखा है। चंद्रशेखर आजाद के कहने पर क्रांतिकारी छैलबिहारी भारती भवन में छिपे थे। इसी दौरान विश्वंभरदयाल को अंग्रेजों ने पकड़ लिया तथा छैलबिहारी को पकड़ने के लिए भारती भवन को घेर लिया। तब पंडित सूर्यनारायण व्यास ने तुरंत ही छैलबिहारी को पंडे-पुजारियों द्वारा पहनी जाने वाली धोती पहनाई, गले में माला डाली, ललाट पर तिलक लगाया और घर के अंदर से महाकाल मंदिर में जाने वाली गुप्त सीढ़ियों से मंदिर में भेज दिया। इसके बाद पंडित व्यास ने घर का दरवाजा खोल दिया। पुलिस ने पूरा भारती भवन छान मारा, लेकिन छैलबिहारी नहीं मिले। अंग्रेज सैनिकों ने महाकाल मंदिर में भी खोजबीन की, लेकिन छैलबिहारी तो पूरे पंडित दिख रहे थे इसलिए अंग्रेज उन्हें पहचान नहीं पाए और खाली हाथ लौट गए। वर्ष 1942 में पंडित व्यास ने भारती भवन में 42 मीटर बैंड पर एक गुप्त रेडियो स्टेशन शुरू किया। इस स्टेशन से क्रांति के संदेश प्रसारित किए जाते और लोगों को अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने के लिए प्रेरित किया जाता। रेडियो का संचालन खर्चीला किंतु बहुत प्रभावी था क्योंकि इससे कम समय में ज्यादा से ज्यादा लोगों को क्रांति से जोड़ा जाने लगा था।

देश को समर्पित जीवन

स्वतंत्रता हासिल होने के बाद जब स्वतंत्रता सेनानियों की सूची बनी और ताम्रपत्र, पुरस्कार तथा पेंशन आदि देने की बारी आई, तो स्वाभिमानी पंडित जी ने उस सूची में अपना नाम दर्ज नहीं करवाया। उनका मानना था कि देश के लिए किए गए संघर्ष के बदले में पुरस्कार लेना देशभक्ति और स्वाभिमान का अपमान होगा। भारत के स्वाधीनता आंदोलन में क्रांति की ज्वाला प्रज्ज्वलित करने के बाद जब देश स्वतंत्र हुआ, तो पंडित सूर्यनारायण व्यास देश के गौरव निर्माण में जुट गए। उन्होंने हिंदी, हिंदू, हिंदुत्व के लिए समर्पित तमाम रचनाकर्म किए।

देश के लिए उनके योगदान को सम्मान देते हुए वर्ष 1958 में तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने पद्म भूषण अलंकरण दिया, किंतु अंग्रेजी को लगातार जारी रखने वाले विधेयक के विरोध में उन्होंने 1967 में यह सम्मान लौटा दिया। उन्होंने राजा विक्रमादित्य के नाम पर उज्जैन में विक्रम विश्वविद्यालय, विक्रम कीर्ति मंदिर व महाकवि कालिदास के नाम पर अखिल भारतीय कालिदास परिषद की स्थापना की। 22 जून, 1976 को क्रांतिकारी, संस्कृतिवेत्ता, ज्योतिर्विद, प्रखर देशभक्त और भारती भवन के लाल पंडित सूर्यनारायण व्यास का निधन हो गया।

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