महामारी के बीच स्टार्ट-अप का यूनिकार्न एक अरब डालर से अधिक बनना देश के युवाओं की बड़ी उपलब्धि
पिछले रविवार अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्टार्ट-अप की बात करते हुए भारत को इस क्षेत्र में दुनिया में अग्रणी बताया। महामारी के बीच भी हर दस दिन में एक स्टार्ट-अप का यूनिकार्न देश के युवाओं की बड़ी उपलब्धि है।
अरुण श्रीवास्तव। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा ‘मन की बात’ कार्यक्रम (रविवार 28 नवंबर को) में देश में तेजी से आगे आ रहे स्टार्ट-अप का प्रमुखता से उल्लेख करना अकारण नहीं है। उन्होंने खासतौर पर इनका जिक्र करते हुए इस बात पर भी जोर दिया कि पिछले दस महीनों में भारत में हर दस दिन में कोई न कोई स्टार्ट-अप यूनिकार्न (एक अरब डालर से अधिक मूल्य वाली कंपनी) बन रहा है। यह बड़ी बात है। उल्लेखनीय यह भी है कि भारतीय युवाओं ने यह उपलब्ध ऐसे समय में हासिल की है, जब पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था कोरोना के कारण लड़खड़ाई हुई है।
सबसे सुखद बात यह है कि ये स्टार्ट-अप सिर्फ कारोबार करने और मुनाफा कमाने के लिए सामने आए हैं, बल्कि इसके पीछे इनके संस्थापक युवाओं के वैश्विक और सामाजिक सरोकार भी हैं। देखा जाए, तो ज्यादातर स्टार्ट-अप को शुरू करने के पीछे उनके संस्थापकों द्वारा खुद समस्याओं से होकर गुजरना रहा है, जिसने उन्हें उन समस्याओं को दूर करने के उपाय सुझाने के लिए प्रेरित किया। उत्साही युवाओं ने समस्याओं को ही अवसर मानकर कुछ ही समय में बड़ा कारोबार खड़ा कर दिया। लोगों की मुश्किलें कम करने में मददगार होने के कारण ही ये कारोबार तेजी से आगे बढ़ सके।
बेरोजगारी का विकल्प : आमतौर पर भारत जैसी बड़ी आबादी वाले देश के लिए बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा रही है। लोकसभा या विधानसभा चुनावों के मद्देनजर राजनीतिक दल इसे जोरशोर से मुद्दा भी बनाते रहे हैं। यह अलग बात है कि चुनाव के बाद शायद ही कोई इसे लेकर बहुत गंभीर होता है या फिर किसी ठोस योजना के तहत कदम उठाता है। दरअसल, ज्यादातर लोगों को आज भी सरकारी नौकरियों की ही चाह होती है। यही कारण है कि केंद्र या राज्य के स्तर पर रिक्तियां आने की स्थिति में उपलब्ध पदों की तुलना में हजारों-लाखों उम्मीदवार आवेदन करते हैं। सीमित पद होने के कारण ज्यादातर युवा बेरोजगार ही रह जाते हैं। इस तरह से साल दर साल यह संख्या बढ़ती चली जाती है। जाहिर है कि सीमित पद और संसाधन होने के कारण हर किसी को सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती। ऐसे में राजनीतिक दलों के लिए यह विषय आसानी से मुद्दा बना लिया जाता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से प्रधानमंत्री ने युवाओं जिस तरह नौकरी के पीछे भागने के बजाय नौकरी देने वाला बनने के लिए प्रेरित करना शुरू किया है, उससे काफी हद तक तस्वीर बदलने लगी है। यही कारण है कि युवाओं में अपने इनोवेशन के बल पर नौकरी के बजाय स्टार्ट-अप शुरू करने की इच्छा बलवती हुई है। उन्होंने अपने संकल्प से अपने साथ-साथ अन्य युवाओं को भी स्वावलंबी बनाने की राह सफलतापूर्वक चुनी है।
बढ़ रहे रोजगार देने वाले : पिछले कुछ वर्षों में स्टार्ट-अप के रूप में एंटरप्रिन्योर की राह पकड़ने वाले युवाओं की संख्या तेजी से बढ़ी है। इसे हम सब देख रहे हैं। बेशक इसमें तकनीक की मदद से आनलाइन सेवाएं देने वालों की संख्या ही अधिक है, लेकिन यह बदलते वक्त की आवश्यकता भी है। पिछले साल मार्च के बाद पहली और दूसरी लहर के रूप कहर ढाने वाले कोरोना के चलते इस तरह की सेवाएं स्वाभाविक रूप से कई गुना अधिक तेजी से बढ़ी हैं। चाहे इंश्योरेंस सेक्टर हो या फिर ईकामर्स-ग्रोसरी, एजुकेशन, मेडिसिन, फैशल और फूड की होम डिलीवरी से जुड़ा कामकाज। इन सभी क्षेत्रों में काम शुरू करने वाली कंपनियों ने प्रतिस्पर्धी दरों पर गुणवत्तायुक्त सामान सुरक्षित तरीके से घरों तक पहुंचाकर लोगों के बीच अपनी जगह तेजी से बनाई है। कामकाज तेजी से बढ़ने का ही नतीजा है कि आज भारत में 70 से अधिक स्टार्ट-अप यूनिकार्न यानी एक अरब डालर से अधिक की कंपनी बन गए हैं। कंपनियों की तरक्की से विभिन्न क्षेत्रों में कौशल रखने वाले युवाओं के लिए रोजगार के आकर्षक मौके भी तेजी से बढ़े हैं। यह भी कहा जा सकता है कि काबिल युवाओं को अब किसी नौकरी के पीछे भागने की जरूरत नहीं होती, बल्कि नौकरियां उनके पीछे-पीछे चलती हैं। स्थिति यह है कि मजबूरी में कोई नौकरी ज्वाइन करने के बजाय अब उनके सामने अपनी पसंद की नौकरी चुनने के कई विकल्प होते हैं।
सरोकारों के साथ-साथ : ऐसा नहीं है कि आज के स्वावलंबी और स्वाभिमानी युवा सिर्फ पैसा बनाने के लिए स्टार्ट-अप शुरू कर रहे हैं, उन्हें अपने देश और समाज को उन्नत बनाने की भी उतनी ही चिंता रहती है। यही कारण है कि तमाम युवा परंपरागत कारोबार से हटकर अपने स्टार्ट-अप के लिए उन क्षेत्रों को चुन रहे हैं, जिससे समाज की मुश्किलें दूर होने के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूत हो सके। पहले जरूरत की दवाएं खोजने के लिए लोगों को बाजार के चक्कर काटने पड़ते थे, जबकि आज अपने मोबाइल के जरिए कुछ ही देर में घर बैठे उनके पास जरूरत की दवाएं पहुंच जाती हैं और वह भी आकर्षक छूट के साथ। इसी तरह शहर या शहर से बाहर जाने के लिए लोगों को सार्वजनिक साधनों पर निर्भर रहना पड़ता था या फिर निजी टैक्सी वालों की मनमानी सहनी पड़ती थी। अब देश के तकरीबन हर शहर में चौबीसों घंटे प्रतिस्पर्धी दरों पर साधन उपलब्ध हो जाते हैं। यही हाल घर बैठे किराना के सामान या ताजा फल-सब्जी उपलब्ध होने का भी है।
बढ़ाएं अपनी काबिलियत : यदि आप भी अपने पसंदीदा क्षेत्र में आकर्षक पैकेज पर नौकरी पाने की चाहत रखते हैं, तो सिर्फ सरकारी नौकरियों की बाट जोहने या फिर डिग्री के भरोसे काम पाने की कोशिश के बजाय अपनी रुचि के क्षेत्र को जान-समझकर उससे संबंधित कौशल से खुद को निखारने का भरसक प्रयास करें। यही नहीं, आफलाइन या आनलाइन कोर्स के जरिए स्किल सीखने के बाद उसे नियमित आधार पर अपडेट भी करते रहें, ताकि आपको न सिर्फ आसानी से नौकरी मिल सके, बल्कि आपको नियमित रूप से तरक्की भी मिलती रहे।