शिक्षा के प्रसार के बीच संकुचित होता समाज, देना होगा विकृत सामाजिक व्‍यवस्‍था को सही मार्ग

देश भर में आनलाइन शिक्षा का सहारा लिया जा रहा है। ऐसे में बच्चों के बेहतर भविष्य को ध्यान में रखते हुए सभी प्रकार के स्कूलों को आफलाइन आरंभ करने की दिशा में आगे बढ़ने का समय आ गया है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 05 Aug 2021 10:58 AM (IST) Updated:Thu, 05 Aug 2021 10:58 AM (IST)
शिक्षा के प्रसार के बीच संकुचित होता समाज, देना होगा विकृत सामाजिक व्‍यवस्‍था को सही मार्ग
हमें शिक्षा व्यवस्था को ऐसा स्वरूप देना होगा जो हमारी विकृत होती सामाजिक व्यवस्था को सही रास्ते पर ला सके।

ज्योति रंजन पाठक। भारत में शिक्षा का इतिहास मानव समाज और सभ्यता के विकास के इतिहास का सहगामी रहा है। आज का समाज पहले के मुकाबले कहीं अधिक शिक्षित है, फिर भी आज समाज बहुत ही सिमटा हुआ दिखाई पड़ता है। लोग निजी तत्व का हवाला देकर एक दूसरे से दूरी बना रहे हैं, जिससे लोगों में अवसाद और अकेलापन व निराशा के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।

देश में आधुनिक शिक्षा व्यवस्था के कारण तमाम क्षेत्रों में दक्ष पेशेवर लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है, लेकिन हमें इस बारे में आत्ममंथन करना होगा कि क्या जिस शिक्षा व्यवस्था को हमने अपनाया है वह वास्तव में समाज के समग्र विकास में सहायक हो पा रही है या नहीं। शिक्षा के बूते पेशेवर जीवन में बेहद सफल होने के बावजूद आज अधिकांश लोग सामाजिक रूप से विकसित नहीं कहे जा सकते।

शायद यही कारण है कि लोगों में एकाकीपन और आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। शहरों व महानगरों में रहने वाले अधिकांश शिक्षित लोगों ने अपने आस-पड़ोस से अनभिज्ञ स्वयं को समाज से अलग कर लिया है। पढ़ा-लिखा होने का यह मतलब तो नहीं कि आप समाज से दूरी बना लें? हम अगर समाज में रहते हुए एक दूसरे से नहीं मिलेंगे, तो कहीं न कहीं हम अपनी मनुष्यता को खो देंगे।

हालांकि कोरोना जनित संक्रमण के कारण पिछले करीब डेढ़ वर्षो से आपस में मिलने-जुलने का सिलसिला समाज में पहले से थोड़ा कम अवश्य हो गया है, लेकिन डिजिटल उपकरणों ने वचरुअल तरीके से मिलने-जुलने की प्रक्रिया को निश्चित तौर पर बनाए रखा है। फिर भी आपसी रिश्ते की मजबूती के लिए इंसान का भौतिक रूप से आपस में मिलना-जुलना बेहद जरूरी है। लेकिन वर्तमान में परिस्थितियां कुछ ऐसी निर्मित हो रही हैं जो लोगों को अकेलापन की तरफ धकेल रही है।

आज इंसान अधिकांश समय अपने बारे में ही सोचता है। खुद को अहमियत देने की सोच अहंकार को भी जन्म देती है और अहंकार अक्सर लोगों के स्वभाव को अड़ियल बना देता है। इससे उसकी व्यावहारिक सोच प्रभावित होती है और उसकी सामाजिकता का दायरा सीमित हो जाता है। अहंकार ग्रस्त व्यक्ति के स्वभाव में ऐसा परिवर्तन देखने को मिलता है जो अपनी खामियों को नहीं देख पाता है और न तो वह अपनी आलोचना सुन पाता है।

शिक्षा के बढ़ते दायरे के बीच इंसान के सामाजिक दायरे का संकुचित होना एक अलग प्रकार की नई समस्या को जन्म दे रहा है। वैसे इंटरनेट मीडिया के वर्चस्व के बीच वर्चुअल तरीके से लोग सामाजिकता के दायरे को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। फ्रेंड सर्कल के नाम पर दोस्त बनाए जा रहे हैं। लाइक और कमेंट की आभासी प्रशंसा एक ऐसे काल्पनिक समाज का निर्माण कर रही है जिसका दुष्प्रभाव वास्तविक समाज में स्पष्ट देखने को मिल रहा है। ऐसे में हमें शिक्षा व्यवस्था को ऐसा स्वरूप देना होगा जो हमारी विकृत होती सामाजिक व्यवस्था को सही रास्ते पर ला सके।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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