राम के लिए कई पीढ़ियों से वस्त्र तैयार कर रहा अली का परिवार
मंदिर के पुजारी रविशंकर दास वैष्णव बताते हैं कि चंदन नदी में भगवान श्रीराम के वनवासी वेशभूषा वाली प्रतिमा मिली थी।
बालाघाट, जेएनएन। मध्य प्रदेश के बालाघाट में करीब 600 वर्ष पुराने मंदिर में स्थापित भगवान राम, सीता और लक्ष्मण की प्रतिमाओं के लिए मुस्लिम परिवार कई वर्षो से वस्त्र तैयार कर रहा है। गौरतलब कि हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन से यहां सात दिनों तक चलने वाला मेला लगता है। मंगलवार की रात देशी घी के 108 टिपुर (दीपक) जलने के साथ ही कार्तिक पूर्णिमा पर्व का आगाज होगा। परंपरानुसार मंगलवार की अलसुबह से ही पकवान बनाकर भगवान राम को भोग लगाया जाएगा।
वर्तमान में भगवान राम के वस्त्र आशिक अली (55) तैयार करते हैं। आशिक अली ने बताया कि उनसे पहले उनके दादा हबीब शाह भगवान के कपड़े तैयार करते थे। उनके देहांत के बाद इसकी जिम्मेदारी उनके पिता अहमद अली ने उठा ली। उन्होंने 60 वर्षो तक वस्त्र तैयार किए और अव वह स्वयं लगभग 34 वर्षो से वस्त्र बना रहे हैं। इसका खर्च भी वह खुद वहन करते हैं।
मंदिर के पुजारी रविशंकर दास वैष्णव बताते हैं कि चंदन नदी में भगवान श्रीराम के वनवासी वेशभूषा वाली प्रतिमा मिली थी। इसे नीम के पेड़ के नीचे रख दिया गया था। इसके बाद नदी तट पर करीब 600 वर्षो पूर्व महाराष्ट्र राज्य के भंडारा जिले के तत्कालीन राजा मराठा भोसले ने मंदिर का एक किले के रूप में वैज्ञानिक ढंग से निर्माण करवाया था। मंदिर में ऐसे झरोखे बनाए गए हैं कि सूर्योदय के दौरान पहली किरण भगवान राम के चरणों पर पड़ती है। भारत के प्राचीन इतिहास में इस मंदिर के निर्माण का उल्लेख है। 1877 में तत्कालीन तहसीलदार शिवराज सिंह चौहान ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।
भगवान राम, सीता और लक्ष्मण की तस्वीरें वनवास के समय का जीवंत बोध कराती हैं। वनवास के दौरान रहन-सहन, ऋषि आश्रम का जीवन और शबरी को दर्शन दिए जाने से संबंधित दृश्य लुभावने लगते हैं। ये तस्वीरें स्वत: ही श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचती हैं। श्रीराम मंदिर ट्रस्ट के पुजारी रविशंकर दास वैष्णव ने कहा,हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन से सात दिन-रात मेला लगता है। यहां मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्यों के श्रद्धालु साल भर आते हैं। मंदिर में विराजित भगवान राम, माता सीता व लक्ष्मण के लिए अली परिवार द्वारा वस्त्र तैयार किए जाते हैं।