क्या लॉकडाउन के कारण आप भी नींद की समस्या के शिकार हुए हैं? जानें- AIIMS की स्टडी रिपोर्ट

कोरोना की वजह से लोगों की नींद बुरी तरह से प्रभावित हुई है और क्वालिटी नींद में कमी आई है। एम्स ऋषिकेश और 25 चिकित्सा संस्थानों के अध्ययन से इस बात का खुलासा हुआ है।

By Vineet SharanEdited By: Publish:Tue, 04 Aug 2020 04:58 PM (IST) Updated:Tue, 04 Aug 2020 06:11 PM (IST)
क्या लॉकडाउन के कारण आप भी नींद की समस्या के शिकार हुए हैं? जानें- AIIMS की स्टडी रिपोर्ट
क्या लॉकडाउन के कारण आप भी नींद की समस्या के शिकार हुए हैं? जानें- AIIMS की स्टडी रिपोर्ट

नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। कोरोना की वजह से लोगों की नींद बुरी तरह से प्रभावित हुई है और क्वालिटी नींद में कमी आई है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), ऋषिकेश और देश के अन्य 25 चिकित्सा संस्थानों के एक अध्ययन से इस बात का खुलासा हुआ है। यह अध्धयन लॉकडाउन के पहले और लॉकडाउन अवधि के बीच नींद की गुणवत्ता में आए बदलावों पर आधारित है। एम्स, ऋषिकेश में मनोचिकित्सा और न्यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ रवि गुप्ता ने इस अध्ययन का नेतृत्व किया है।

डॉ गुप्ता ने बताया कि यह विश्लेषण चार कैटेगरी में किया गया है- पहली कैटेगरी ऐसे लोगों की है, जिनकी खराब नींद पहले की तरह बनी हुई है, दूसरी कैटेगरी में वे लोग हैं, जिनकी दोनों स्थितियों में नींद बेहतर रही है, तीसरी कैटेगरी में आने वाले लोगों की नींद कोरोना अवधि में खराब हुई है और चौथी कैटेगरी में वे लोग हैं, जिनकी नींद में कोरोना काल में सुधार हुआ।

डॉ रवि गुप्ता ने बताया कि लॉकडाउन से देश के हर नागरिक को किसी न किसी स्तर पर परेशानी हुई है। हमने ये जानने की कोशिश की कि लोगों के स्लीपिंग पैटर्न में किस तरह का बदलाव आया। डॉ रवि गुप्ता ने बताया कि अध्ययन में प्रमुख बात ये सामने आई कि अनिद्रा से परेशान वयस्कों के प्रतिशत में कोई बदलाव नहीं आया है।

औसतन 10 प्रतिशत वयस्क अनिद्रा के शिकार होते हैं। यही नहीं, लोगों के सोने और जागने के समय में देरी हो गई। सीधे तौर पर कहें तो लोगों की स्लीपिंग क्वालिटी खराब हो गई। लोगों के बेड टाइम और जागने के समय में बदलाव के साथ रात को सोने का समय भी कम हो गया। गुप्ता कहते हैं कि हमने अध्ययन में पाया कि पहले 48.4 प्रतिशत लोग 11 बजे के बाद सो जाते थे। लॉकडाउन के बाद 65.2 प्रतिशत लोग 11 बजे के बाद सोने लगे। वहीं, पहले जहां 11 बजे के पहले 51.6 प्रतिशत लोग सो जाया करते थे, वह प्रतिशत अब घटकर 34.8 रह गया है।

रिपोर्ट के अनुसार, हेल्थ प्रोफेशनल को छोड़कर सभी पेशेवरों के साथ यह हो रहा है। नींद में आ रही कमी या स्लीपिंग पैटर्न में हुए बदलाव से लोग हताश हो रहे हैं। डॉ गुप्ता ने कहा कि अध्ययन में सामने आया कि सोने के बाद भी लोग तरोताजा नहीं हो रहे हैं। अध्ययन में यह भी सामने आया कि नींद नहीं पूरी होने की वजह से पहले जहां 26 फीसदी लोग हताश थे, यह प्रतिशत लॉकडाउन के बाद 48 हो गया। लॉकडाउन के पहले जहां नींद के कारण 19 फीसदी लोगों को बेचैनी की शिकायत थी, तो लॉकडाउन के बाद यह शिकायत 47 प्रतिशत लोगों को हो गई।

बिस्तर पर लेटने से देर से आती है नींद

डॉ रवि गुप्ता ने बताया कि अध्ययन में सामने आया कि जहां पहले 79.4 फीसदी लोगों को बिस्तर पर लेटने के आधे घंटे बाद नींद आ जाया करती थी, वहीं लॉकडाउन के बाद 56.6 प्रतिशत लोगों के साथ ऐसा होने लगा। इन सबके अलावा, पहले जहां 3.8 प्रतिशत लोग बिस्तर पर जाने के एक घंटे बाद सो जाते थे, लॉकडाउन के बाद 16.99 प्रतिशत लोग बेड पर जाने के एक घंटे के बाद भी सो नहीं पाते हैं।

दिन में ज्यादा सोने लगे हैं लोग

रिपोर्ट में सामने आया है कि लोगों की दोपहर की झपकी में भी इजाफा हुआ है। पहले जहां 31.1 प्रतिशत लोग दोपहर के समय एक घंटे से कम की नींद लेते हैं। लॉकडाउन शुरू होने के बाद 38 प्रतिशत लोग एक घंटे से कम की नींद दोपहर में लेने लगे हैं। वहीं, दोपहर के समय 60 मिनट से अधिक की नींद लेने वालों का प्रतिशत 9.2 से बढ़कर 25 प्रतिशत हो गया है।

आंकड़ों की जुबानी

रिपोर्ट में शामिल लोगों में 75.9 फीसदी लोग स्नातक हैं, जबकि 35.9 प्रतिशत हेल्थ वर्कर हैं।

47 फीसदी लोग घर से काम करते हैं तो 35.9 प्रतिशत लोग बाहर से काम करते हैं।

55.9 प्रतिशत लोग अपनी सुविधानुसार काम करते हैं, जबकि 16.4 प्रतिशत लोग बदलते शिफ्ट वर्क में काम करते हैं।

नौ फीसदी लोग निकोटिन यूजर थे, जबकि 10.8 प्रतिशत अल्कोहल का सेवन करते थे। 1.1 प्रतिशत लोग कैनिबिज का प्रयोग करते थे।

14 प्रतिशत लोगों ने माना कि लॉकडाउन की वजह से सब्सटेंस का प्रयोग कम हुआ। वहीं, 3.1 प्रतिशत लोगों ने माना कि लॉकडाउन की वजह से सब्सटेंस का इस्तेमाल बढ़ गया है। 

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