अच्छे रहे 75 साल, स्वर्णिम होंगे अगले 5 साल भी : एआई, आईओटी और नैनो टेक्नोलॉजी से खेतों में उगाएंगे 'हरा सोना'

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक (कृषि विस्तार) डॉ. अशोक कुमार सिंह बताते हैं कि जब देश आजाद हुआ तो खाद्यान्न उत्पादन 50 मिलियन टन था जो आज बढ़कर 308 मिलियन टन हो गया है। हम खाद्यान्न में आत्मनिर्भर है। हम दूध मछली और बागवानी में भी आत्मनिर्भर हैं।

By Vineet SharanEdited By: Publish:Thu, 19 Aug 2021 08:52 AM (IST) Updated:Thu, 19 Aug 2021 09:39 AM (IST)
अच्छे रहे 75 साल, स्वर्णिम होंगे अगले 5 साल भी : एआई, आईओटी और नैनो टेक्नोलॉजी से खेतों में उगाएंगे 'हरा सोना'
कई स्टार्टअप ने कृषि सेक्टर में काम शुरू किया है। वे कृषि को इनोवेशन और एआई से जोड़ रहे हैं।

नई दिल्ली, विनीत शरण। हरा सोना सबसे कीमती होता है। भारत इसकी कीमत जानता है क्योंकि आजादी के वक्त हम मुश्किल से देश की आबादी का पेट भरने लायक अनाज उगा पाते थे। तब भारत की आबादी 34 करोड़ थी। आज आबादी 130 करोड़ है। और हम खा भी रहे हैं और निर्यात कर दुनिया को खिला भी रहे हैं। यह संभव हुआ पिछले 75 साल में आई हरित क्रांति, श्वेत क्रांति, नीली क्रांति, कृषि मशीनरी, कृषि वैज्ञानिकों और प्रगतिशील किसान के दम पर। जिसने देश को अनाज का कटोरा बना दिया। तो कृषि सेक्टर के चार दिग्गजों भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक (कृषि विस्तार) डॉ. अशोक कुमार सिंह, योजना आयोग के पूर्व सदस्य एनसी सक्सेना, पूर्व मुख्य तकनीकी सलाहकार एवं परियोजना प्रबंधक, विश्व खाद्य संगठन, (संयुक्त राष्ट्र संघ) डॉ. राम चेत चौधरी और एग्रीकल्चर इकोनामिस्ट दुर्गेश शर्मा के साथ इस सेक्टर की हरियाली से भरी हुई विकास यात्रा को देखते हैं। साथ ही जानते हैं कि अगले पांच साल कैसे कृषि बेहतर होगी।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक (कृषि विस्तार) डॉ. अशोक कुमार सिंह बताते हैं कि जब देश आजाद हुआ तो खाद्यान्न उत्पादन 50 मिलियन टन था जो आज बढ़कर 308 मिलियन टन हो गया है। हम खाद्यान्न में आत्मनिर्भर है। हम दूध, मछली और बागवानी में भी आत्मनिर्भर हैं। केवल एक क्षेत्र तिलहन का है जिसमें थोड़ी कमी है लेकिन सरकार इसे सुधारने के लिए काम कर रही है।

अगले पांच साल में इन 5 बदलाव पर काम होगा

1.भंडारण और प्रसंस्करण पर देंगे जोर

डॉ. अशोक कुमार सिंह कहते हैं कि अगले पांच सालों में हमें भंडारण और प्रसंस्करण पर काम करना होगा ताकि सब्जी-फल और अन्य फसलों की बर्बादी कम हो। हमें फसलों की विविधता बढ़ानी होगी, जिससे लोग लाभ वाली फसलें उगाएं। वहीं बागवानी को आगे बढ़ाना होगा। जलवायु परिवर्तन के हिसाब से खेती में बदलाव लाएं। इस पर हम काम कर रहे हैं।

2. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का होगा इस्तेमाल और 100 गुना बढ़ेगा एग्रीटेक

देश में कई स्टार्टअप ने कृषि सेक्टर में काम करना शुरू किया है। वे कृषि को इनोवेशन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) जैसी तकनीक से जोड़ रहे हैं। ये एप कृषि श्रम से लेकर फिनटेक और डेटा एनालिटिक्स तक की सुविधा देते हैं। जैसे-हैदराबाद स्थित नेबुला कृषि उत्पादों के गुणवत्ता परीक्षण को अनुकूलित करने के लिए एआई का उपयोग करता है। उसका सॉफ्टवेयर MATT, केवल एक मिनट में अनाज, अनाज और दालों का तेजी से गुणवत्ता विश्लेषण करने के लिए AI और इमेज प्रोसेसिंग का उपयोग करता है। इसके अलावा Eruvaka के इंटरनेट ऑफ थिंग्स और एआई एप्लिकेशन का भी इस्तेमाल खेती में हो रहा है। प्रीडिक्शन एल्गोरिदम से स्मार्ट फार्मिंग सलूशन तैयार कर रहे हैं। Inc42 के एक विश्लेषण के अनुसार, 2025 तक, एग्रीटेक का बाजार 24 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। वर्तमान में, केवल एक प्रतिशत (204 मिलियन अमेरिकी डॉलर) है।

3. बायोटेक्नोलॉजी और नैनो टेक्नोलॉजी

नीति आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक बायोटेक्नोलॉजी और ब्रीडिंग के इस्तेमाल से रोग प्रतिरोधी, जलवायु अनुकूल, अधिक पौष्टिक और स्वादिष्ट फसल किस्मों को विकसित किया जाएगा। वर्टिकल फार्मिंग और शहरी खेती को बढ़ावा दिया जाएगा। वहीं बंजर रेगिस्तान और समुद्री जल जैसी जगहों में भी उत्पादन के नए क्षेत्रों खोजने के लिए दीर्घकालिक प्रयास भी होंगे। वहीं नैनो टेक्नोलॉजी से निकट भविष्य में फूड क्वालिटी को बेहतर किया जाएगा। इफको पहले ही नैनो-उर्वरक में सफल परीक्षण कर चुकी है।

(फोटो स्रोत-कृषि मंत्रालय फेसबुक पेज)

4. आर्गेनिक फार्मिंग से बढ़ेगी शुद्धता

डॉ. अशोक कुमार सिंह कहते हैं कि आर्गेनिक फार्मिंग पर जोर देना होगा क्योंकि अच्छे खाने के तरफ लोगों का रुझान बढ़ा है। हमारे कृषि वैज्ञानिक इसे किसानों के खेतों तक ले जाएंगे। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने काफी अच्छा काम किया है और बेहतर बीज और तकनीक तैयार करेंगे। डा. राम चेत चौधरी भी जैविक खेती पर जोर देते हैं। वह कहते हैं कि कृषि उत्पादन वृद्धि हुए है लेकिन हमने बहुत कुछ खोया है रासायनिक खेती से हमारी और धरती दोनों की सेहत खराब हुई है। अब हमें जैविक खेती की ओर बढ़ना होगा।

5. भविष्य में भी भारत में खाद्यान्न की दिक्कत नहीं होगी

यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक 2027 तक भारत चीन को पीछे छोड़ सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा और 148 करोड़ पहुंच सकती है। नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक अनुमान है कि इस आबादी के लिए 2028 में 119-120 मिलियन टन चावल, 110-111 मिलियन टन गेहूं, 27-29 मिलियन टन दाल की जरूरत होगी। कृषि विशेषज्ञों का दावा है कि देश का कृषि सेक्टर इन जरूरतों को पूरा करने लिए तैयार है।

एनसी सक्सेना के मुताबिक वर्तमान में जनसंख्या वृद्धि की दर 1.2-1.3 फीसद है जबकि खाद्यान उत्पादन की दर उससे ज्यादा 2 से 3 फीसद है। वहीं 2050 के जनसंख्या कम होना शुरू हो जाएगी। वहीं खेतों की उत्पादकता हमारे देश में दूसरे देशों जैसे चीन, थाईलैंड से कम है। इसलिए उत्पादकता बढ़ाने के लिए रासायनिक खाद का इस्तेमाल कम करके हरित खाद को बढ़ावा देना होगा। बिजली की जगह सोलर एनर्जी से पंप चलाने होंगे।

(फोटो स्रोत-कृषि मंत्रालय फेसबुक पेज)

आजादी के बाद कृषि के बड़े पड़ाव

1. 1947 और बाद के सालों में अनाज की भयंकर कमी

पूर्व मुख्य तकनीकी सलाहकार एवं परियोजना प्रबंधक, विश्व खाद्य संगठन, (संयुक्त राष्ट्र संघ) डा. राम चेत चौधरी बताते हैं कि जब आजादी मिली तो वह सिर्फ पांच साल के थे। उन्होंने देश को पिछले 75 सालों में बढ़ते देखा है, खासकर कृषि में। वह बताते हैं कि आजादी के बाद के कई सालों तक गांव जो पूरे देश को खिलाता है उसके पास खुद खाने को नहीं था। गांव में सरकारी राशन की दुकानों पर अनाज मिलता था। अमेरिका से आया हुआ सड़ा-अनाज।

2. 1952 में भूमि सुधार और आई 1960 के दशक में आई ग्राउंड वाटर तकनीक

1952 के बाद उत्तर प्रदेश, बिहार जमींदारी खत्म होने के बाद किसानों को फायदा मिला। 1970 के दशक में भूमि सुधार पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और केरल में हुए। वहीं 1960 के दशक के आखिरी सालों में ही देश में ही ग्राउंड वाटर तकनीक आ गई है।

3. 1966-67 की हरित क्रांति

एग्रीकल्चर इकोनॉमिस्ट दुर्गेश शर्मा बताते हैं कि हरित क्रांति नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर नारमन बोरलॉग ने शुरू की थी और भारत में हरित क्रांति की शुरुआत की थी कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन ने। इसमें बेहतर बीज और रासायनिक खाद के इस्तेमाल से 1968 में गेहूं में मैक्सिकन सीड से उत्पादन बढ़ा।

4. फिर आई श्वेत और नीली क्रांति

श्वेत या सफेद क्रांति को ऑपरेशन फ्लड के रूप में जाना जाता है। ऑपरेशन फ्लड कार्यक्रम 1970 में शुरू हुआ था। प्रथम चरण के दौरान ऑपरेशन फ्लड ने देश के 18 प्रमुख दुग्ध शेड़ों को देश के चार मुख्य महानगरों –दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई के उपभोक्ताओं के साथ जोड़ा और दूध का पाउडर बनाकर इसकी शुरुआत की। धीरे-धीरे यह योजना 18 से बढ़कर 136 हो गई। दूध 290 नगरों के बाजारों में उपलब्ध होने लगा। 1985 के अंत तक 43,000 आत्मनिर्भर ग्राम दूध सहकारी समितियों की व्यवस्था बन चुकी थी। घरेलू पाउडर उत्पादन जो योजना के पूर्व वर्ष में 22,000 टन था वह 1989 में बढ़ कर 1,40,000 टन हो गया।

उसी दौर में मछली उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए एक विशेष योजना चलाई गई थी, जिसे नीली क्रांति का नाम दिया गया। नीली क्रांति की वजह से भारत मछली उत्पादन में विश्व का दूसरे नंबर का देश है। पांचवी पंचवर्षीय योजना में भारत सरकार ने 1970 में नीली क्रांति को शामिल किया था। तभी से मछली उत्पादन में भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है।

(फोटो स्रोत-भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद फेसबुक पेज)

5. 1980 और 90 का दशक सिंचाई और तकनीक पर जोर

1980 के दशक में सिंचाई और तकनीक के दम पर धान का उत्पादन काफी बढ़ा। 1951 में भारत का सिंचाई कवर फसल क्षेत्र लगभग 22.6 मिलियन हेक्टेयर था, और 1995 के अंत में यह बढ़कर 90 मिलियन हेक्टेयर हो गया, जिसमें नहरें और भूजल कुओं का काफी योगदान रहा।

6. 2000 के बाद नॉन क्राप एग्रीकल्चर बढ़ा

योजना आयोग के पूर्व सदस्य एनसी सक्सेना कहते हैं कि पिछले 20 साल में सबसे ज्यादा प्रगति हुई है नॉन क्राप एग्रीकल्चर यानी ऐसी फसल जो खेत में नहीं उगती। जैसे दूध, पोल्ट्री, मछली पालन और फल उत्पादन। 21वीं सदी की शुरुआत के बाद से देश में ट्रैक्टर और अन्य उपकरणों का इस्तेमाल भी काफी बढ़ा है।

(फोटो स्रोत-भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद फेसबुक पेज)

इन चुनौतियों को पार करना होगा

योजना आयोग के पूर्व सदस्य एनसी सक्सेना कहते हैं कि प्रगति भी हुई है और समस्याएं भी हैं। पिछले 75 साल में भारत में जनसंख्या में 4 से साढ़े चार गुना वृद्धि हुई है। वहीं खाद्यान्न उत्पादन में लगभग साढ़े 5 गुना वृद्धि हुई है। पर लोगों के पास क्रय की क्षमता ज्यादा नहीं है इसलिए भूख और गोदाम में अनाज दोनों मौजूद हैं। ग्राउंड वाटर का नीचे जाना भी बड़ी समस्या है। पंजाब में अगर ज्यादा पानी खपत वाली फसलें उगाई गईं तो आने वाले कुछ सालों ने भूजल की काफी दिक्कत होगी। महाराष्ट्र में सूखाग्रस्त इलाकों में गन्ने की फसल उग रही है ये सही नहीं है। देखना पड़ेगा कि वातावरण के मुताबिक खेती कैसे करें। वहीं हमें कोल्ड स्टोरेज भी विकसित करने होंगे, जिससे किसानों की आय बढ़े। वहीं कोल्ड स्टोरेज के लिए ट्रक की व्यवस्था हो जिसमें सामान खराब न हो। वहीं कई नियंत्रण खत्म होना चाहिए, जिससे किसान आसानी से कोल्ड स्टोरेज खोल सकें। अभी कृषि भूमि को गैर कृषि भूमि में बदलाव के लिए इजाजत चाहिए। पुराने कानून खत्म होने चाहिए। हमें नई तकनीक पर ध्यान देना चाहिए। जैसे बांग्लादेश में पंप डीजल या बिजली से नहीं चलते हैं। वहां महिलाएं साइकिल की तरह पंप चलाकर खेत की सिंचाई करती हैं।

एग्रीकल्चर इकोनॉमिस्ट दु्र्गेश शर्मा कहते हैं कि पहले कृषि का जीडीपी में योगदान ज्यादा था लेकिन सर्विसेज और मैन्युफैक्चरिंग का योगदान बढ़ने के कारण जीडीपी में योगदान कम हुआ है। पर कोविड-19 में यही क्षेत्र है जिसने लोगों को राहत दी है। आने वाले समय में प्रयास किए किया जा रहा है कि किसानों को अच्छा मूल्य मिले और उपभोक्ताओं को भी फायदा हो। हमारे देश में आबादी बढ़ने के साथ हर चीज की मांग भी बढ़ रही लेकिन यह किसानों का प्रयास है कि खाद्यान्न उत्पादन लगातार बढ़ता रहे।

किसानों का देश

-44 फीसद देश की कामकाजी आबादी को कृषि में रोजगार मिला है

-66 फीसद लोग अब भी गांव में रहते हैं

-16.5 फीसद कृषि सेक्टर का योगदान है कृषि सेक्टर में

-140 मिलियन हेक्टेयर जमीन पर देश में खेती होती है

-48.7 फीसद खेतों में ही सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है

(इनपुट-विवेक तिवारी, मनीष कुमार और अनुराग मिश्र) 

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