कृषि विज्ञानी मैनपाट में बिखेरेंगे चंदन की खुशबू, पूरी दुनिया में चंदन की मात्र 16 प्रजातियां
कृषि विज्ञानी डॉ. राहंगडाले ने बताया कि चंदन का पौधा अर्ध परजीवी होता है। इसलिए जिस किसान के खेत में चंदन के पौधे लगाए गए हैं वहां पौधों के अगल-बगल अरहर लगाए गए हैं ताकि चंदन को सहारा मिले और वह मजबूत हो सके।
अनंगपाल दीक्षित, अंबिकापुर। साल के घने वृक्षों से आच्छादित पर्यटन क्षेत्र मैनपाट में अब चंदन की खुशबू भी बिखरेगी। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ वूड साइंस एंड टेक्नोलॉजी बेंगलुरु की मदद से मैनपाट के कृषक कृष्णा ने डेढ़ एकड़ में चंदन के पौधे लगाए गए थे। यह प्रयोग सफल होने के बाद कृषि विज्ञानियों ने किसानों को सफेद चंदन के पौधारोपण से जोड़ने के लिए तीन एकड़ में चंदन की नर्सरी तैयार की है। चंदन का पेड़ दस साल में उपयोग के लायक तैयार होता है।
भारतीय संस्कृति व सभ्यता में चंदन का बड़ा महत्व है। ऐसा कोई घर नहीं है जहां चंदन की लकड़ी न हो। इसके अतिरिक्त चंदन से औषधि व सुगंधित इत्र बनाया जाता है, इसलिए इसकी मांग पूरे विश्व में है। उत्पादन कम होने से चंदन की लकड़ी की कीमत बहुत ज्यादा होती है। छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर से 75 किमी दूर स्थित मैनपाट की जलवायु चंदन के पौधे के लिए अनुकूल है। कृष्णा के खेत में लगे चंदन के पौधों का विकास अच्छा है। कृषि विज्ञानियों को इससे ही चंदन के पौधे लगाने की प्रेरणा मिली है, जिसको देखते हुए कृषि विज्ञान केंद्र मैनपाट के वरिष्ठ विज्ञानी व प्रभारी डॉ. संदीप शर्मा के मार्गदर्शन में डॉ. सीपी राहंगडाले द्वारा सफेद चंदन के पौधे लगवाए जा रहे हैं।
पूरी दुनिया में चंदन की मात्र 16 प्रजातियां: कृषि विज्ञानियों का कहना है विश्व में चंदन की 16 प्रजातियां हैं। इनमें सेंत्लम एल्बम प्रजातियां सबसे सुगंधित व औषधीय गुणों वाली है। इसके अलावा सफेद चंदन, सेंडल अबेयाद, श्रीखंड, सुखद संडालो प्रजाति का चंदन होता है। इसकी खेती सभी तरह की मिट्टी में हो सकती है, लेकिन रेतीली, चिकनी, लाल व काली दानेदार मिट्टी ज्यादा उपयुक्त होती है।
अर्ध परजीवी होता है इसलिए दिया अरहर का सहारा : कृषि विज्ञानी डॉ. राहंगडाले ने बताया कि चंदन का पौधा अर्ध परजीवी होता है। इसलिए जिस किसान के खेत में चंदन के पौधे लगाए गए हैं, वहां पौधों के अगल-बगल अरहर लगाए गए हैं ताकि चंदन को सहारा मिले और वह मजबूत हो सके।