Agriculture Reforms Bill 2020: कृषि सुधार असल में 21वीं सदी के भारत की जरूरत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सही कहा है कि देश में अब तक उपज और बिक्री के बीच में ताकतवर गिरोह पैदा हो गए थे। ये किसानों की मजबूरी का फायदा उठा रहे थे जबकि इस कानून के आने से किसान अपनी मर्जी और फसल दोनों के मालिक होंगे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Mon, 28 Sep 2020 09:29 AM (IST) Updated:Mon, 28 Sep 2020 09:49 AM (IST)
Agriculture Reforms Bill 2020: कृषि सुधार असल में 21वीं सदी के भारत की जरूरत
कृषि उपज का वास्तविक मुनाफा किसान की जगह कौन उठा रहा था।

 डॉ. दिलीप अग्निहोत्री। किसी भी लोकतंत्र में विपक्ष को विरोध का पूरा अधिकार है, किंतु यह तर्कसंगत होना चाहिए। अन्यथा इसका विपरीत प्रभाव होता है। ऐसी दशा में विपक्ष की छवि पर ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। पिछले छह वर्षो में ऐसे अनेक प्रकरण भी देखे गए। विपक्ष ने सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोला, सड़कों पर अराजक आंदोलन हुए, लेकिन सरकार पर इनका कोई प्रभाव नहीं हुआ।

मौजूदा कृषि विधेयकों का विरोध भी इसी दिशा में बढ़ रहा है, क्योकि विपक्ष पिछली व्यवस्था के लाभ बताने की स्थिति में नहीं है। अभी विपक्ष आंदोलन कर रहा है। भाषण और बयानबाजी चल रही है। किसानों के हित की दुहाई दी जा रही है, पर कोई यह नहीं बता रहा है कि अभी तक कायम व्यवस्था में किसानों को क्या लाभ मिल रहा था। यह भी नहीं बताया जा रहा है कि कितने प्रतिशत कृषि उत्पाद की खरीद मंडियों में होती थी। कोई यह नहीं बता रहा कि पिछली व्यवस्था में बिचौलियों की क्या भूमिका थी। कोई यह नहीं बता रहा है कि कृषि उपज का वास्तविक मुनाफा किसान की जगह कौन उठा रहा था। विपक्ष इन सबका जवाब देता तो स्थिति स्पष्ट होती, लेकिन लगता है कि उसका विरोध कल्पना आधारित है।

विपक्ष द्वारा कहा जा रहा है कि नए कृषि कानूनों से किसान बर्बाद हो जाएंगे, बड़ी कंपनियां उनके खेतों पर कब्जा कर लेंगी। यहां एक अन्य पहलू पर भी विचार करना होगा। कोई भी सरकार कितने प्रतिशत लोगों को सरकारी नौकरी दे सकती है। आज रोजगार के लिए आंदोलन करने वाले इसका जवाब दे सकते हैं। पांच या दस वर्ष के शासन में उन्होंने कितने लोगों को रोजगार दिए थे। देश के 97 प्रतिशत लोग तो निजी व्यापार, निजी कंपनियों में रोजगार एवं कृषि पर ही जीवनयापन कर रहे हैं। इन 97 प्रतिशत लोगों का भी ध्यान रखने की आवश्यकता है। इन कृषि विधेयकों का उद्देश्य यही है। इसमें कोई दोराय नहीं कि पुरानी व्यवस्था में अनेक कमियां थीं। उसमें किसानों पर ही बंधन थे, वही परेशान भी होते थे। उस व्यवस्था में वे लोग लाभ उठा रहे थे, जो किसान नहीं थे। वे किसानों की तरह मेहनत नहीं करते थे, उन्हें फसल पर मौसम की मार से कोई लेना-देना नहीं था।

ऐसे में कहने की जरूरत नहीं कि विपक्ष के इस आंदोलन से किसका लाभ हो सकता है। आंदोलन किसके बचाव के लिए चल रहा है। देखा जाए तो इसमें किसानों का हित नजरअंदाज किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सही कहा है कि देश में अब तक उपज और बिक्री के बीच में ताकतवर गिरोह पैदा हो गए थे। ये किसानों की मजबूरी का फायदा उठा रहे थे, जबकि इस कानून के आने से किसान अपनी मर्जी और फसल दोनों के मालिक होंगे। ऐसे में यही कहा जा सकता है कि संसद ने किसानों को अधिकार देने वाले ऐतिहासिक कानून बनाकर उचित ही किया है। ये कृषि सुधार असल में 21वीं सदी के भारत की जरूरत हैं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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