प्रशासनिक अफसर बने डॉक्टर: कोरोना संक्रमण को काबू करने में निभा रहे खास रोल
कोरोना संक्रमण की रफ्तार को कम करने को लेकर भारत की तारीफ दुनिया के कई देश कर रहे हैं। कोरोना से मृत्युदर दो फीसद से भी कम है।
जागरण न्यूज नेटवर्क, नई दिल्ली। कोरोना संक्रमण की रफ्तार को कम करने को लेकर भारत की तारीफ दुनिया के कई देश कर रहे हैं। कोरोना से मृत्युदर दो फीसद से भी कम है। यह सब हो रहा है कोरोना संक्रमण की रोकथाम में लगे प्रशासनिक अफसरों की जागरूकता के कारण। इन प्रशासनिक अफसरों में कई एमबीबीएस, एमडी डिग्री धारक हैं। वर्तमान में उनका विभाग और जिम्मेदारी भले ही अलग हो, लेकिन कोरोना काल में अपना 'धर्म' निभाने से बिल्कुल नहीं चूक रहे हैं।
प्रशासनिक कमान संग कोरोना मरीजों का रखा पूरा ध्यान
उरई (उप्र) के जिलाधिकारी डॉ.मन्नान अख्तर कोरोना संक्रमण के समय बड़ी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। प्रशासनिक कार्य के साथ ही जरूरत के वक्त वह चिकित्सक की भूमिका में भी आ जाते हैं। लॉकडाउन के वक्त दूसरे रोगों से पीडि़त कई मरीजों को बाहर से दवाएं भी मंगवा कर दीं। वह कहते हैं कि जिलाधिकारी के साथ वह एक चिकित्सक हैं और यह धर्म अच्छी तरह याद है।
कोरोना संक्रमित मरीजों के लिए यूज एंड थ्रो स्ट्रेचर बनाया
कानपुर के एसपी पश्चिम डॉ.अनिल कुमार एमबीबीएस करने के बाद सिविल सर्विसेज में चयनित हुए। उन्होंने संक्रमण के शुरुआती दिनों में जिला प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग के साथ मिलकर तमाम कार्य किए। संक्रमित मरीजों के लिए यूज एंड थ्रो स्ट्रेचर उन्होंने ही बनाया। शुरुआती दिनों में कम टेस्ट होने पर उन्होंने पूल टेस्टिंग का सुझाव दिया, जिस पर अमल के बाद टेस्टिंग की रफ्तार बढ़ाई गई।
कोरोना से खाकी को बचाए रहे कप्तान के नुस्खे
अमरोहा के वर्तमान पुलिस अधीक्षक डॉ. विपिन ताडा की एमबीबीएस करने के बाद उनकी तैनाती स्वास्थ्य महकमे में थी। डेढ़ साल तक प्रैक्टिस की। इस बीच उनका चयन लोक सेवा आयोग के जरिये भारतीय पुलिस सेवा में हो गया। कोरोना काल में मेडिकल की पढ़ाई उनके काम आई। मार्च में ही पीपीई किट वितरित करा दी। मेडिकल क्षेत्र की बेहतर जानकारी होने के कारण स्वास्थ्य महकमे के साथ भी अच्छा तालमेल बिठाया।
कोरेाना से संक्रमण की रोकथाम में चिकिसकीय शिक्षा ज्यादा काम आ रही
मथुरा के एसएसपी डॉ. गौरव ग्रोवर ने लुधियाना से 2010 में एमबीबीएस की शिक्षा ली। दो साल तक बठिंडा सीएचसी में मेडिकल अफसर रहे। इसके बाद 2013 में आइपीएस अफसर बने। डॉ. ग्रोवर बताते हैं कि कोरेाना से संक्रमण की रोकथाम में चिकिसकीय शिक्षा ज्यादा काम आ रही है।
कोरेाना की रोकथाम के लिए योजना बनाने में एमबीबीएस की पढ़ाई का मिला लाभ
मथुरा के मुख्य विकास अधिकारी डॉ. नितिन गौड़ भी 2008 में एमबीबीएस करने के बाद 2016 में आइएएस अफसर बने। वह बताते हैं कि कोरोना से जंग को नई-नई योजना बनाने में एमबीबीएस की पढ़ाई का भी बड़ा लाभ मिला।
कोविड के उप नोडल अधिकारी
फीरोदाबाद पुलिस में क्षेत्राधिकारी (सिटी) डॉ. अरुण कुमार सिंह 2006 से 2010 तक प्रयागराज में मेडिकल ऑॅफिसर के रूप में कार्यरत रहे। अब फीरोजाबाद में पुलिस क्षेत्राधिकारी सिटी पर तैनात हैं। प्रशासन ने उन्हें जिले में कोविड के उप नोडल अधिकारी बनाया है।
यह भी पीछे नहीं
झारखंड में कई एमबीबीएस आइएएस अधिकारी हैं जो कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं
झारखंड में भी कई ऐसे आइएएस अधिकारी हैं जो एमबीबीएस है और कोरोना के खिलाफ जंग में दो-दो हाथ कर रहे हैं। राज्य के स्वास्थ्य सचिव नितिन मदन कुलकर्णी, आपदा प्रबंधन सचिव अमिताभ कौशल, संयुक्त सचिव खाद्य आपूíत शांतनु अग्रहरि, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के प्रधान सचिव राजीव अरुण एक्का ऐसे आइएएस अधिकारी हैं जो एमबीबीएस डॉक्टर भी हैं। ये भी कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे। हजारीबाग के उपायुक्त भुवनेश प्रताप सिंह भी डॉक्टर हैं।
शुरुआती दौर में रेनकोट को पीपीई किट के रूप में इस्तेमाल करने की पहल
कोरोना संकट के शुरुआती दौर में यानी मार्च व अप्रैल पीपीई किट की भारी कमी थी। तब हजारीबाग के तत्कालीन उपायुक्त डॉ भुवनेश प्रताप सिंह ने रेनकोट को पीपीई किट के रूप में इस्तेमाल करने की पहल की थी। इसके बाद मास्क की कमी को दूर करने के लिए सखी मंडल की महिलाओं को जोड़ा और करीब 50,000 से भी ज्यादा मास्क इन महिलाओं के द्वारा तैयार किए गए थे। इन्होंने कोरोना के खिलाफ कारगर लड़ाई लड़ी। अभी हाल में इनका तबादला हो गया है।