आरोप निर्धारण से 'मुक्ति' का अनुरोध आरोपित का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट
उप्र के संतकबीरनगर के याचिकाकर्ता के मामले में सुप्रीम कोर्ट की यह अहम टिप्पणी सामने आइ। पीठ ने कहा कि संदिग्ध के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त आधार है या नहीं यह तय करने के लिए कोर्ट को साक्ष्यों की छानबीन करनी होगी।
नई दिल्ली, प्रेट्र। अदालतों को मामले के गुण-दोष के आधार पर विचार करने का निर्देश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आपराधिक मामले में आरोप तय किए जाने से 'मुक्त' करने का अनुरोध करना कानून के तहत आरोपी का मूल्यवान अधिकार है।
चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि यह काफी स्पष्ट रूप से तय है कि निचली अदालत आरोप मुक्ति अनुरोध वाली अर्जियों पर विचार करते हुए महज पोस्ट आफिस के तौर पर काम नहीं करेंगी।
पीठ ने कहा कि संदिग्ध के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त आधार है या नहीं यह तय करने के लिए कोर्ट को साक्ष्यों की छानबीन करनी होगी। कोर्ट को व्यापक संभावनाओं, पेश किए गए दस्तावेजों और साक्ष्यों के कुल प्रभाव और मामले में नजर आ रही बुनियादी कमियों को ध्यान में रखना होगा।
पीठ ने कहा कि इसी तरह, जरूरत महसूस होने पर कोर्ट अपने विवेक से उचित मामलों में आगे की जांच का आदेश भी दे सकती हैं।
सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश के निवासी संजय कुमार राय की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। उन्होंने एक आपराधिक पुनíवचार याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, संत कबीर नगर के आरोपों से मुक्त करने से संबंधित याचिका खारिज करने के फैसले बरकरार रखा था।
संजय कुमार राय संतकबीर नगर में कल्पना इंडेन सर्विस में साझीदार हैं। इस रसोई गैस एजेंसी में कथित कालाबाजारी को लेकर एक स्थानीय पत्रकार ने सूचना के अधिकार के तहत कुछ जानकारियां जुटाई थीं। राय ने उस पत्रकार से गालीगलौज कर दी जिस पर पुलिस ने आइपीसी की धारा 504 और 506 के तहत मामला दर्ज किया था।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस मामले में मेरिट के आधार पुनरीक्षण याचिका स्वीकार न करके न्यायिक त्रुटि कर दी। हाई कोर्ट को यह ध्यान रखना चाहिए कि किसी आरोपित का आरोप निर्धारण से मुक्ति मांगना उसका मूल्यवान अधिकार है।