बहादुरी दिखाने वाले 22 बच्चे होंगे राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित, जानें उनके पराक्रम के बारे में

इस वर्ष 22 बच्‍चों को राष्‍ट्रीय वीरता पुरस्‍कार दिया गया। इनमें 22 लड़कियां और 12 लड़के शामिल हैं।

By Arun Kumar SinghEdited By: Publish:Tue, 21 Jan 2020 08:14 PM (IST) Updated:Wed, 22 Jan 2020 01:18 AM (IST)
बहादुरी दिखाने वाले 22 बच्चे होंगे राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित, जानें उनके पराक्रम के बारे में
बहादुरी दिखाने वाले 22 बच्चे होंगे राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित, जानें उनके पराक्रम के बारे में

नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। भारतीय बाल कल्याण परिषद (आइसीसीडब्ल्यू) द्वारा बहादुर बच्चों को 62 साल से प्रतिवर्ष दिए जा रहे राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार विवादों में घिरने के बावजूद इस बार भी दिए जाएंगे। वर्ष 2019 के 22 बच्चों का चयन किया गया है। इनमें 10 लड़कियां हैं जबकि 12 लड़के। एक लड़के को यह पुरस्कार मरणोपरांत दिया जाएगा। हालांकि इन बच्चों को यह पुरस्कार कब और किसके हाथों दिए जाएंगे, इसे लेकर अभी कुछ स्पष्ट नहीं है।

तीन बच्‍चों को गहरे समुद्र में डूबने से बचाया

परिषद की आजीवन संरक्षक एवं पूर्व अध्यक्ष गीता सिद्धार्थ ने बच्चों की बहादुरी के किस्से बताए। केरल के रहने वाले 17 वर्षीय मोहम्मद मुहसिन ईसी ने अपने तीन दोस्तों को गहरे समुद्र में डूबने से बचाया लेकिन खुद समुद्र में डूब गया। उसका शव अगले दिन मिला। इस बहादुर बच्चे को मरणोपरांत अभिमन्यु अवार्ड से नवाजा जाएगा।

बस में आग लगने से 40 लोगों को बचाया

परिषद का सबसे बड़ा सम्मान भारत अवार्ड केरला के ही रहने वाले आदित्य के. को प्रदान किया जाएगा। आदित्य ने पर्यटकों से भरी एक बस मे आग लग जाने पर बहादुरी दिखाते हुए उस बस के शीशे तोड़ कर 40 से ज्यादा लोगों की जिंदगी बचाई। आदित्य उस बस में सवार था और आग लगने के बाद बस का ड्राइवर बस छोड़ कर भाग गया था और यात्री धुआं भरने की वजह से चीख पुकार करने लगे थे। ऐसे में आदित्य ने सूझबूझ दिखाते हुए बस के शीशे को तोड़ दिया जिससे यात्री बाहर निकल पाए। भारत पुरस्कार के तहत परिषद की ओर से 50 हजार रुपये की राशि प्रदान की जाती है। जबकि अभिमन्यु पुरस्कार के तहत 40 हजार रुपये।

मार्कंडेय अवार्ड उत्तराखंड के रहने वाली 10 वर्षीय राखी को मिलेगा, जबकि ध्रुव अवार्ड ओडिशा की रहने वाली पूर्णिमा गिरी और सबिता गिरी को प्रदान किया जाएगा। ओडिशा की ही रहने वाली 10 वर्षीय बदरा को प्रह्लाद अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा। जम्मू कश्मीर की रहने वाली 17 वर्षीय सरताज मोहीदीन मुगल को श्रवण अवार्ड प्रदान किया जाएगा। इन सभी पुरस्कारों के तहत 40 हजार रुपये की राशि प्रदान की जाती है।

सामान्‍य पुरस्‍कार में कई बच्‍चे शामिल

इसके अलावा सामान्य सम्मान के तहत प्रत्येक को 20-20 हजार रुपये की राशि प्रदान की जाती है। सामान्य पुरस्कार पाने वालों में मणिपुर की आठ वर्षीय लारेंबम याईखोंबा मंगांग, मिजोरम की पौने 17 वर्षीय लालियानसांगा, कर्नाटक की सवा 11 वर्षीय बेंकटेश, छत्तीसगढ के सवा नौ वर्ष के कांति पैकरा, जम्मू कश्मीर के साढे 18 वर्षीय मुदासिर अशरफ, कर्नाटक की 9 वर्षीय आरती किरण शेट, मिजोरम की 11 वर्षीय कैरोलिन मलसामतुआंगी, छत्तीसगढ की साढे 12 वर्षीय भामेरी निर्मलकर, मेघालय के पौने 11 वर्षीय एवरब्लूम के नोंगरम, हिमाचल प्रदेश के साढे 13 वर्षीय अलाईका, असम के पौने 11 वर्षीय कमल कृष्णा दास, केरला के सवा 13 वर्षीय फतह पीके, मिजोरम के पौने 13 वर्षीय बनलालरियातरेंगा , महाराष्ट्र के पौने 11 वर्षीय जेन सदावरते व 15 वर्षीय आकाश मच्छिंद्रा खिल्लारे शामिल हैं।

केंद्र सरकार ने इन पुरस्कारों से किया था अलग

मालूम हो कि 2018 तक परिषद द्वारा चुने गए बच्चों को यह पुरस्कार जहां प्रधानमंत्री के हाथों मिलता था। वहीं, इन्हें गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने का मौका भी मिलता था, लेकिन पिछले साल आइसीसीडब्ल्यू पर लगे वित्तीय गड़बड़ि‍यों के आरोपों के बाद केंद्र सरकार ने स्वयं को इन पुरस्कारों से अलग कर लिया। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय अलग से अपने पुरस्कार देता है। सरकारी स्तर पर अलगाव के बाद परिषद ने अपने पुरस्कारों के नाम भी बापू गयाधनी, संजय चोपड़ा, गीता चोपड़ा की बजाय मार्कंडेय, ध्रुव एवं प्रह्लाद अवार्ड कर दिया है।

राष्ट्रीय वीरता पुरस्कारों की शुरुआत भारतीय बाल कल्याण परिषद द्वारा 1957 में बच्चों के बहादुरी और मेधावी सेवा के उत्कृष्ट कार्यों के लिए पहचानने और दूसरों के लिए उदाहरण बनने और अनुकरण करने के लिए प्रेरित करने के लिए की गई थी। आईसीसीडब्‍ल्‍यू ने अब तक 1,004 बच्चों को पुरस्कार के साथ सम्मानित किया है, जिसमें 703 लड़के और 301 लड़कियां शामिल हैं। प्रत्येक पुरस्कार विजेता को एक पदक, एक प्रमाण पत्र और नकद मिलता है।

चयनित बच्चों को तब वित्तीय सहायता प्राप्त होती है, जब तक कि वे स्नातक पूरा नहीं कर लेते हैं। इंजीनियरिंग और चिकित्सा जैसे व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए चयन करने वालों को छात्रवृत्ति योजनाओं के माध्यम से वित्तीय सहायता मिलती है। 

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