18 वर्षीय 'उदित सिंघल' कांच से बालू बना निकाल रहे पर्यावरण संकट का समाधान

पर्यावरण संरक्षण एवं सतत् विकास के क्षेत्र में कार्य करने वाले विश्वभर के 17 चुनिंदा युवाओं में से एक हैं दिल्ली के 18 वर्षीय उदित सिंघल जिन्हें हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ ने ‘यंग लीडर’ चुना है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 26 Sep 2020 12:35 PM (IST) Updated:Sat, 26 Sep 2020 12:35 PM (IST)
18 वर्षीय 'उदित सिंघल' कांच से बालू बना निकाल रहे पर्यावरण संकट का समाधान
पर्यावरण संरक्षण एवं सतत् विकास के क्षेत्र में कार्य करने वाले दिल्ली के 18 वर्षीय उदित सिंघल।

नई दिल्‍ली, अंशु सिंह। कांच से बालू बनाने के उपक्रम ‘ग्लासटुसैंड’ के संस्थापक उदित एक सोशल एंटरप्रेन्योर होने के साथ ही आर्टिस्ट एवं गोल्फ खिलाड़ी भी हैं। वे विश्व के सामने आने वाले पर्यावरणीय संकट का समाधान निकालने के साथ ही युवाओं को पर्यावरण संरक्षण एवं सतत विकास के तहत निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करने के लिए प्रेरित करने का प्रयास भी कर रहे हैं। उनकी सक्रिय भागीदारी को बढ़ाने के लिए कार्य करेंगे। दोस्तो, भारत में कचरा प्रबंधन आज भी एक बड़ी चुनौती है। उस पर से अगर कचरे में कांच भी मिला हुआ हो, तो उस कांच का अपघटन लाखों वर्ष तक नहीं होता और वह लोगों के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। इसका क्या समाधान हो सकता है?

2018 में 16 वर्षीय उदित के मन में भी यह सवाल बार-बार उठ रहा था। उन्होंने अपने घर में भी देखा था कि किस तरह कांच या शीशे की बोतलें इकट्ठा होती थीं। फिर कबाड़ी वाला उन्हें लेकर जाता था और वे यूं ही किसी डंपिंग ग्राउंड में डंप कर दी जाती थीं। वे बताते हैं,‘मुझे उत्सुकता हुई। मैंने रिसर्च किया, तो पता चला कि नए नियम-कानूनों के तहत दिल्ली में कांच की रीसाइक्लिंग कितनी मुश्किल हो गई है। रीसाइक्लिंग करने वाले लोगों की कमी से लेकर बोतलों को रखने की जगह का संकट है। ट्रांसपोर्टेशन का खर्च होता है, सो अलग। इस कारण कबाड़ी वाले कांच के कचरे को यूं ही लैंडफिल्स में डाल आते हैं। इसके बाद ही मैंने एक ऐसा मॉड्युलर इकोसिस्टम डेवलप करने का फैसला लिया, जिसमें कांच की बेकार बोतलों से बालू का निर्माण किया जा सके। जो इंडस्ट्री के लिए उपयोगी भी हो।’

उदित बताते हैं कि उन्हें न्यूजीलैंड की एक कंपनी की जानकारी मिली, जहां ऐसी मशीन बनती है, जो कांच की बोतल को पीसकर बालू बना देती है। उन्होंने न्यूजीलैंड सरकार से संपर्क किया, जिसके पश्चात भारत में न्यूजीलैंड की उच्चायुक्त ने मशीन आयात करने के लिए उन्हें अनुदान दिया और शुरू हो गया कांच से बालू बनाने का सिलसिला। बीते डेढ़ सालों में करीब आठ हजार कांच की बोतलों को क्रश कर बालू बनाया गया है। आज 65 से अधिक वॉलंटियर्स, 10 के करीब संस्थान (जहां कांच का कचरा निकलता है) एवं कुछेक विदेशी उच्चायोग (न्यूजीलैंड, हंगरी) हमारी मदद कर रहे हैं।

उदित के अनुसार, कांच से जो सिलिका युक्त बालू तैयार होता है, उसे कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में भेज दिया जाता है। वहां इससे ईंट व कंक्रीट तैयार किए जाते हैं। इसके अलावा, दक्षिण भारत के प्राचीन मंदिरों एवं ऐतिहासिक इमारतों के संरक्षण (हेरिटेज कंजर्वेशन) में इनका उपयोग किया जाता है। वे कहते हैं,‘सभी को मालूम है कि नदियों से कैसे बालू का उत्खन्न होता है, जिससे रिवर बेड खोखला हो रहा है। उस बालू की जगह इनका इस्तेमाल बढ़ने से हमारी नदियां भी सुरक्षित रह सकेंगी। इसके साथ ही गोल्फ बंकर्स के निर्माण में भी इस बालू का प्रयोग किया जा सकता है। इस पर फिलहाल परीक्षण चल रहा है।’

दिल्ली के चाणक्यपुरी स्थित ब्रिटिश स्कूल से 12वीं करने वाले उदित लंदन यूनिवर्सिटी के फ्रेशमैन हैं। कोविड के कारण वे लंदन नहीं जा सके। लेकिन उन्हें उम्मीद है कि वे जल्द ही कैंपस ज्वाइन कर सकेंगे। फिलहाल ऑनलाइन कक्षाएं अटेंड कर रहे हैं। इसके साथ ही इन्होंने एक ई-आर्ट गैलरी बनाई है, जहां उभरते हुए कलाकार अपनी कृतियों को प्रदर्शित कर सकते हैं। ये कोडिंग एवं वेबसाइट डेवलपमेंट में भी खासा रुचि रखते हैं। उदित का कहना है कि वे नहीं चाहते कि जो समस्या प्लास्टिक वेस्ट के कारण उत्पन्न हुई है, वही कांच के साथ भी हो। इसलिए उन्होंने युवाओं से अपील की है कि वे इस दिशा में अपना ज्यादा से ज्यादा योगदान करें। सामूहिक रूप से अपनी आवाज उठाएं। जब पर्यावरण सुरक्षित रहेगा, तभी हम सभी खुशहाल होंगे।

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