Work From Home तैयारी नए दौर की, नई टेक्नोलॉजी के साथ स्किल अपग्रेडेशन

कोविड-19 के बाद देश की आइटी इंडस्ट्री के लगभग 90 फीसद एम्प्लॉयी इन दिनों वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं जिसके आगे भी जारी रहने की उम्मीद है। इससे कंपनियों के साथ-साथ सामाजिक बदलाव होता भी दिख रहा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Wed, 23 Sep 2020 10:57 AM (IST) Updated:Wed, 23 Sep 2020 11:49 AM (IST)
Work From Home तैयारी नए दौर की, नई टेक्नोलॉजी के साथ स्किल अपग्रेडेशन
देश की आइटी इंडस्ट्री के लगभग 90 फीसद एम्प्लॉयी इन दिनों वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं। फाइल फोटो

नई दिल्‍ली, अंशु सिंह। कार्यस्थल का चेहरा बदल रहा है। घर और ऑफिस का अंतर कम हो गया है। ‘वर्क फ्रॉम होम’ की तरह कुछ कंपनियों ने ‘वर्क फ्रॉम एनीवेयर’ मॉडल अपनाने की दिशा में भी कदम बढ़ा दिए गए हैं यानी अब स्टेशन छोड़ने की अनिवार्यता की बजाय उनके कर्मचारी कहीं से भी काम कर सकते हैं। इससे जहां कार्यस्थल की संस्कृति बदल रही है, वहीं सामाजिक बदलाव के भी संकेत मिलने लगे हैं। भविष्य में इस तरह के वर्किंग मॉडल को नियोक्ता एवं कर्मचारियों के लिए कैसे हितकारी बनाया जाए, इसके लिए उद्योग संगठन नैस्कॉम एक रिपोर्ट भी तैयार कर रहा है।

कोविड-19 के बाद से आइटी सेक्टर, सर्विस इंडस्ट्री और उद्योग जगत ने नए माहौल के अनुसार स्वयं को मजबूती से तैयार किया। आइटी इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास एवं टेक्नोलॉजी का समावेश कर वर्कफ्लो एवं टीम के साथ बेहतर समन्वय स्थापित किया, जिससे कर्मचारियों की उत्पादकता बढ़ने से लेकर कंपनियों के अपने खर्चों में कई स्तरों पर कमी आई है...।

गूगल पहली ग्लोबल टेक कंपनी थी जिसने घोषणा की थी कि उसके एंप्लॉयीज जुलाई 2021 तक ‘वर्क फ्रॉम होम’ करेंगे। कंपनी के सीईओ सुंदर पिचाई ने एक आंतरिक ईमेल के जरिये कर्मचारियों को सूचित किया था कि जो घर से अपनी भूमिका निभा सकते हैं, वे स्वेच्छा से 30 जून, 2021 तक ‘वर्क फ्रॉम होम’ कर सकते हैं। इतना ही नहीं,कंपनी ने जरूरी साधनों के लिए कर्मियों को हजार डॉलर के अतिरिक्त अलाउएंस देने की भी घोषणा की। फेसबुक ने भी इससे मिलता-जुलता फैसला किया। मार्क जुकरबर्ग की मानें, तो उनके आधे के करीब कर्मचारी 2030 तक ‘वर्क फ्रॉम होम’ कर सकते हैं, जबकि ट्विटर ने एक कदम और आगे बढ़ते हुए ‘फॉरेवर वर्क फ्रॉम होम’ का एलान कर दिया।

कर्मचारियों को भेजे गए मेल के अनुसार, महामारी की समाप्ति के बाद भी जो घर से काम कर सकते हैं, उन्हें ऐसा करने की आजादी होगी। इधऱ, भारत की बात करें,तो टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) के करीब 75 फीसद एंप्लॉयीज साल 2025 तक वर्क फ्रॉम होम कर सकते हैं। इनमें देश के लगभग साढ़ तीन लाख कर्मचारी शामिल हैं। कुछ इसी तरह, इंफोसिस ने भी अपने यहां के 33 से 50 फीसद कर्मचारियों को स्थायी रूप से ‘वर्क फ्रॉम होम’ करने का आदेश दिया है। कंपनी के अधिकारियों के अनुसार, वह फ्लेक्सिबल ‘वर्क फ्रॉम होम’ मॉडल लाने पर विचार कर रही है, जिसके तहत कर्मचारी स्थायी तौर पर अपने घर से काम कर सकेंगे। इन सबके अलावा, विप्रो,एचसीएल, टेक महिंद्रा समेत कई टेक्नोलॉजी कंपनियों ने इस वर्किंग मॉडल को अपना लिया है।

वर्क फ्रॉम होम के लिए नियमों में बदलाव

आज आइटी इंडस्ट्री का लगभग 90 फीसदी वर्कफोर्स वर्क फ्रॉम होम कर रहा है, जिसके आगे भी जारी रहने की संभावना है। ऐसे में करीब 191 बिलियन डॉलर के आइटी सेक्टर की ओर से सरकार द्वारा टैक्स, संचार एवं श्रम कानूनों में परिवर्तन करने की मांग तेज हो गई है। जानकारों के अनुसार, इस बाबत नैस्कॉम से एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने को कहा गया है, जो विभिन्न मंत्रालयों (संचार एवं श्रम) को सौंपा जाएगा। आइटी एवं वेब सॉल्यूशंस प्रोवाइड करने वाली ‘लॉजिकल कैनवास प्राइवेट लिमिटेड’ कंपनी के सीईओ विशाल पाल की मानें, तो आइटी सेक्टर एवं इससे जुड़ी कंपनियों के वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (वीपीएन) को होम इंफ्रास्ट्रक्चर से कनेक्ट करने की अनुमति नहीं है। ऐसे में केंद्रीय दूरसंचार विभाग से अदर सर्विस प्रोवाइडर्स (ओएसपी) लॉ में परिवर्तन करने की अपील की गई थी, जिसके बाद विभाग ने दिसंबर तक की रियायत दी है। इसे आगे भी जारी रखने की अपील की गई है। इसके अलावा, एसटीपीआइ एवं एसईजेड के नियमों में परिवर्तन करने को कहा गया है, ताकि बैक-ऑफिस कंपनियां वर्क फ्रॉम होम के लिए निर्धारित स्पेशल इकोनॉमिक जोन से इक्विपमेंट्स को स्थानांतरित करने में दिक्कत न हो।

ऑपरेशन से लेकर इंफ्रास्ट्रक्चर तक का खर्च हुआ कम : कोरोना काल में देश में शायद पहली बार इतने बड़े स्तर पर बैंकिंग, फाइनेंस,इंश्योरेंस, मीडिया एवं शिक्षा जगत ने सफलतापूर्वक वर्क फ्रॉम होम कल्चर को एडॉप्ट किया। वर्क फ्रॉम होम को लागू करने वाली कई कंपनियों का मानना है कि इससे बिजनेस ऑपरेशन में अनेक स्तरों पर आर्थिक बचत हुई है। पहले कर्मचारियों की सैलरी मद में होने वाले खर्चे का डेढ़ से दो गुना सिर्फ ऑफिस स्पेस के किराये में चला जाता था। ब्रांचेज या यूनिट्स को बंद करने से उस खर्चे में कटौती हुई है। इसके अलावा, बिजली, पानी, हाउसकीपिंग, कैफेटेरिया, ट्रांसपोर्टेशन,सिक्योरिटी अर्थात इंफ्रास्ट्रक्चर, मेंटिनेंस, ऑपरेशन एवं एडमिन के खर्च में भी कमी आई है।

Trueweight कंपनी की सह-संस्थापक एवं सीओओ मेघा मोर बताती हैं,‘पहले बिजनेस के सिलसिले में देश-विदेश के टूर पर जाना होता था। वर्चुअल मीटिंग्स होने से वह सब बंद हो चुके हैं। आने वाले कुछ वर्षों तक यही स्थिति बनी रहने की आशंका है। इसके अलावा, ऑफसाइट पार्टियां, एंप्लॉयीज के बोनस, इंक्रीमेंट व अन्य सहूलियतों (पर्क्स) आदि पर रोक लग गई है। वहीं, कर्मचारियों के नजरिए से देखें,तो लंबे समय तक वर्क फ्रॉम होम करने से उनके निजी खर्चों में कमी आएगी। वे अधिक बचत कर सकेंगे।’ हालांकि कई बड़ी कंपनियां कर्मचारियों को ऑफिस फर्नीचर से लेकर वाई-फाई आदि की सुविधा भी उपलब्ध करा रही हैं।

नई टेक्नोलॉजी के साथ स्किल अपग्रेडेशन

देश में आज भी कई कंपनियां या उद्यम हैं,जो टेक्नोलॉजी या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का अधिक उपयोग नहीं करती हैं, लेकिन कोरोना काल में उन्होंने भी खुद को अपग्रेड किया। कंपनी के साथ कर्मचारियों ने अपनी स्किल को तराशने और टेक्नोलॉजी को आत्मसात करने में संकोच नहीं किया। इसका सबसे प्रभावशाली उदाहरण सामने आया शिक्षा जगत से। शिक्षकों को अचानक ऑनलाइन क्लासेज लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। उन्होंने इस चुनौती को सहर्ष स्वीकार किया और टेक्नोलॉजी से खुद को अपग्रेड किया। 'द साहनी ग्रुप' के एमडी डॉ. अखिल साहनी मानते हैं कि आइटी,बीएफएसआइ या अन्य प्रोफेशनल सर्विस सेक्टर की जिन कंपनियों या संस्थानों ने पहले एंटरप्राइज सॉफ्टवेयर एवं कोलेबोरेशन सिस्टम के साथ काम किया था, उन्हें बीते महीनों में खास दिक्कत नहीं आई। लेकिन लघु एवं मध्यम उद्योग के कारोबारियों या वहां काम करने वालों के सामने दिक्कतें रहीं, जिसके लिए जरूरी है कि वे अपनी स्किल को अपग्रेड करें। जूम, गूगल मीट, माइक्रोसॉफ्ट टीम्स से फ्रेंडली होने के अलावा उन्हें प्रोजेक्ट मैनेजमेंट सॉफ्टवेयर, ऑनलाइन डॉक्यूमेंटेशन आदि की जानकारी रखनी होगी।

वैसे, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की भी कुछ कंपनियों ने अकाउंट्स, ह्यूमन रिसोर्स, फाइनेंस, सेल्स एवं मार्केटिंग की टीम को रिमोट वर्किंग की सुविधा दी है। मेघा मोर कहती हैं कि कोविड-19 एक मायने में दुनिया के लिए ‘चीफ डिजिटल ऑफिसर’ के रूप में सामने आया है। बीते पांच महीनों में कंपनियों ने तेजी से वर्चुअल टेक्नोलॉजी को एडॉप्ट किया है। हमें भी पहले विश्वास नहीं था कि हमारी डाइटिशियंस की सर्विस टीम वर्क फ्रॉम होम कर सकेगी। लेकिन आज सभी सफलता के साथ ऐसा कर पा रहे हैं। सर्विस डिलीवरी में कोई दिक्कत नहीं आ रही। इसी प्रकार, सेल्स टीम भी इनसाइड सेल्स मॉडल पर काम करने लगी है।

आर्थिक एवं सामाजिक मोर्चे पर फायदे-नुकसान इसमें दो मत नहीं कि वर्क फ्रॉम होम से कंपनी प्रबंधन एवं कर्मचारियों, दोनों को आर्थिक एवं सामाजिक स्तर पर फायदा हुआ है। कई कंपनियों द्वारा वर्क स्टेशन (नौकरी वाले शहर) पर रहने की अनिवार्यता खत्म होने से लोगों ने अपने मूल प्रदेशों का रुख कर लिया है। इससे मेट्रो शहर की भीड़ भी कुछ कम हो गई है। गुरुग्राम की एक निजी कंपनी में सीनियर फाइनेंस मैनेजर अतुल पंडित बताते हैं, ‘नोएडा से ऑफिस आने-जाने में रोजाना 2 से 3 घंटे लगते थे। उस समय की बचत होने से काम के प्रोडक्टिव ऑवर्स बढ़ गए हैं। परिवार संग अधिक समय बिताने का अवसर मिला है, सो अलग।’ अतुल के अनुसार, वर्क फ्रॉम होम शुरू होने के बाद से उनकी कंपनी पूरे प्रोसेस को ऑटोमेशन मोड पर ले आई। इससे पेपरलेस वर्क, ई-बिलिंग को बढ़ावा मिला।

वर्चुअल मीटिंग्स से कंपनी के शीर्ष अधिकारियों से संवाद बढ़ा। हालांकि रिमोट वर्किंग का दूसरा सच यह भी है कि काम के घंटे बढ़ने से लोगों का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। नोएडा की एक निजी कंपनी में सीनियर मैनेजर श्वेता शुक्ला के अनुसार,घर एवं ऑफिस के बीच का अंतर खत्म हो गया है। कई बार पूरे सप्ताह, वीकेंड्स पर और देर रात तक काम करना, ईमेल आदि भेजना पड़ता है। कलीग्स से लेकर बॉस कभी भी फोन कर लेते हैं। निजी समय जैसा कुछ रह नहीं गया है। छुट्टियां तो मानो खत्म ही हो गई हैं। लगातार काम का दबाव बने रहने और साथ ही साथ घर एवं बच्चों की जिम्मेदारी होने के कारण सेहत पर प्रतिकूल असर होने लगा है। मेघा कहती हैं कि कर्मचारियों की उत्पादकता एवं कार्यशैली को अनुशासित रखने के लिए अच्छा होगा कि कंपनियां अपने मॉनिटरिंग सिस्टम को मजबूत करें। काम के घंटे निर्धारित करें और केआरए के साथ आउटपुट को नए सिरे से परिभाषित करें, जिससे कि पारदर्शिता आए।

कानून में संशोधन से लेकर वर्किंग मॉडल पर हो रहा काम: नैस्कॉम की सीनियर वीपी एवं चीफ स्ट्रेटेजी ऑफिसर संगीता गुप्ता ने बताया कि सरकार ने इस समय वर्क फ्रॉम होम के लिए इंडस्ट्री को कई प्रकार की रियायतें दी हैं। लेकिन कंपनियां संशय में हैं कि यह भविष्य में किस हद तक कारगर हो सकेगा। हालांकि उन्हें मालूम है कि यह मॉडल लंबे समय तक कायम रहने वाला है। इसलिए वे ऐसे ‘हाइब्रिड’ या ‘ब्लेंडेड मॉडल’ के बारे में भी विचार कर रही हैं जिसमें कुछ प्रतिशत एम्प्लॉयीज कहीं से भी (घर, होम टाउन आदि) काम कर सकें। छोटे शहरों के करीब हॉट स्पॉट बनाने की भी चर्चा हो रही है, जिससे जरूरत पड़ने पर कर्मचारी वहां से काम कर सकें। उन्हें शहर आने की जरूरत न पड़े। लेकिन फिलहाल वर्क फ्रॉम होम के लिए श्रम कानून में कोई प्रावधान नहीं है। न ही वर्किंग ऑवर्स एवं शिफ्ट टाइम को लेकर स्पष्टता है। आने वाले समय में इस मॉडल के तहत वर्कफोर्स में भी बदलाव देखने को मिल सकता है। कुछ फुलटाइम, पार्टटाइम, अनुबंध के आधार पर भी कार्य करेंगे। इसके लिए निश्चित तौर पर संचार, श्रम, टैक्स के मौजूदा कानून में संशोधन की जरूरत होगी, जिससे कर्मचारियों के साथ नियोक्ताओं के हितों की रक्षा हो सके और कोविड-19 के बाद भी रिमोट वर्किंग को जारी रखा जा सके। हमारी अलग-अलग टीमें इन तमाम मुद्दों पर काम कर रही हैं।

कंपनियों का बढ़ा रुझान : जॉब्सफॉरहर की सीईओ नेहा बगारिया ने बताया कि पहले टेलीसेल्स, डाटा एंट्री, कंटेंट राइटिंग आदि के क्षेत्र में वर्क फ्रॉम होम के विकल्प अधिक थे। लेकिन अब सैप कंसल्टेंट, यूआइयूएक्स डिजाइनर्स, एप डेवलपर्स, अकाउंटेंट्स, टीचर्स के पास भी इसके विकल्प खुल गए हैं। अप्रैल से जुलाई महीने के बीच हमारे पोर्टल पर कंपनियों द्वारा वर्क फ्रॉम होम से संबंधित पोस्ट की जाने वाली वैकेंसीज में करीब 55 फीसद की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। इसका सबसे अधिक फायदा महिलाओं को हुआ है, जो करियर बनाने या दोबारा से वर्कफोर्स को ज्वाइन करने के बारे में सोच रही थीं। खासकर टियर 1 के अलावा टियर 2 एवं 3 सिटीज की स्किल्ड, क्वालिफाइड महिलाओं के सामने अब रोजगार के नए विकल्प सामने आए हैं।

 

टीम लीडर्स को निभानी होगी कोच की भूमिका : ‘द साहनी ग्रुप’ के प्रबंध निदेशक डॉ. अखिल साहनी ने बताया कि कॉरपोरेट वर्ल्ड या देसी कंपनियों के कई बिजनेस या टीम लीडर्स माइक्रो मैनेजर्स की तरह काम करते रहे हैं। वे टीम को अपने आसपास देखने के आदी हैं, ताकि उनके काम पर नजर रख सकें और समय-समय पर उन्हें जरूरी दिशा-निर्देश दे सकें। लेकिन बदली परिस्थितियों में उन्हें अपने माइंडसेट को बदलना होगा। गोल ओरिएंटेड अप्रोच रखकर काम करना होगा। टीम के सदस्यों को एक निर्धारित समय के अंदर अपना टारगेट पूरा करने के निर्देश देने होंगे। कर्मचारियों को कैसे काम करना है, ये बताने की बजाय जब वे एक कोच की भूमिका निभाएंगे, तो मुश्किल काम या टास्क भी आसान हो जाएगा। क्योंकि वर्क फ्रॉम होम के दौरान कर्मचारियों का अपने सहयोगियों से अधिक संवाद नहीं रहने से मुमकिन है कि वे थोड़े हतोत्साहित महसूस करें। ऐसे में टीम लीडर्स का फर्ज बनता है कि वे सहकर्मियों के मोटिवेशन लेवल को बढ़ाएं और उन्हें प्रेरित करें।

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