IAS की तैयारी के लिए ट्यूशन-कोचिंग Vs सेल्फ स्टडी, जानें कैसे करें अपना सपना पूरा

एक सर्वे के अनुसार, ट्यूशन और कोचिंग पर स्टूडेंट्स की निर्भरता बढ़ती जा रही है। सक्षम होते हुए बहुत कम माता-पिता अपने बच्चों को खुद से पढ़ाने के लिए समय निकाल पाते हैं।

By Arti YadavEdited By: Publish:Mon, 26 Nov 2018 01:50 PM (IST) Updated:Mon, 26 Nov 2018 01:52 PM (IST)
IAS की तैयारी के लिए ट्यूशन-कोचिंग Vs सेल्फ स्टडी, जानें कैसे करें अपना सपना पूरा
IAS की तैयारी के लिए ट्यूशन-कोचिंग Vs सेल्फ स्टडी, जानें कैसे करें अपना सपना पूरा

नई दिल्ली, अरुण श्रीवास्तव। काउंसिलिंग के लिए मेरे पास नियमित रूप से ऐसे बहुत सारे ई-मेल आते हैं, जिनमें नौवीं-दसवीं से ग्यारहवीं-बारहवीं या फिर ग्रेजुएशन में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स द्वारा आइएएस बनने का सपना पूरा करने के लिए विस्तृत मार्गदर्शन की अपेक्षा की जाती है। मुझे लगता है कि इनमें से ज्यादातर स्टूडेंट्स सिर्फ रुतबा देखकर या फिर इस बारे में लगातार सुनकर आइएएस बनने का सपना देखने लगते हैं। ज्यादातर को संभवत: यह भी लगता है कि कोचिंग की सुविधा का लाभ उठाकर अपने इस सपने को आसानी से पूरा किया जा सकता है।

हाल में प्रकाशित एक सर्वे के अनुसार, ट्यूशन और कोचिंग पर स्टूडेंट्स की निर्भरता बढ़ती जा रही है। सक्षम होते हुए बहुत कम माता-पिता अपने बच्चों को खुद से पढ़ाने के लिए समय निकाल पाते हैं। दरअसल, उन्हें लगता है कि जब ट्यूशन और कोचिंग की सुविधा उपलब्ध है, तो वे खुद पढ़ाने की सरदर्दी क्यों लें।

हालांकि ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाना चाहते हैं और उसे अच्छी कोचिंग-शिक्षा दिलाने के लिए अधिक से अधिक पैसे कमाने का भी हर जतन करते हैं। इसके बावजूद अक्सर देखा जाता है कि नामी ट्यूटर से या कोचिंग में पढ़वाने के बावजूद उनके बच्चे को अपेक्षित कामयाबी नहीं मिल पाती। भीतर ही भीतर क्षुब्ध होने के बावजूद वे अपना गुस्सा जाहिर नहीं होने देते, क्योंकि उन्हें यह एहसास भी होता है कि संतान पर गुस्सा उतारने से उन्हें कुछ हासिल नहीं होने वाला। आखिरकार बढ़ती उम्र को देखते हुए उसे किसी तरह वैकल्पिक शिक्षा (ग्रेजुएशन, बीसीए, बीबीए, एमबीए, पीजीडीएम, बीएड आदि) दिलाकर उस पर ग्रेड बी, सी प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी का दबाव डालते हैं। इसमें भी कामयाब न हो पाने पर अंतत: प्राइवेट संस्थानों में ही नौकरी का विकल्प बचता है।

आइएएस अभ्यर्थियों की बढ़ती संख्या
अब से करीब 12-15 साल पहले तक सिविल सेवा परीक्षा के लिए आवेदन करने वाले अभ्यर्थियों की संख्या अधिक से अधिक ढाई-तीन लाख तक होती थी। पिछले करीब आठ-दस वर्षों में आवेदकों की संख्या में करीब चार से पांच गुना तक का इजाफा देखा गया है यानी आवेदकों की यह संख्या बढ़ते-बढ़ते करीब 12 से 13 लाख के बीच पहुंच गई है। हैरानी की बात यह है कि इस बीच अंतिम रूप से चयनित होने वाले अभ्यर्थियों की संख्या (रिक्तियों की संख्या के अनुपात में) कभी भी 1000-1100 से ऊपर नहीं गई है।

कई बार तो यह 600-700 तक सिमट जाती है। अभ्यर्थियों की संख्या बढ़ने के कई कारण हैं। पहला, पिछले दस वर्षों के दौरान नौकरियों, खासकर आइटी सेक्टर की नौकरियों की चकाचौंध में तेजी से गिरावट आई है। नौकरियों की संख्या भी घटी है और ऑफर किया जाने वाला पैकेज भी अपेक्षाकृत आकर्षक नहीं रह गया। दूसरा, दिल्ली, इलाहाबाद, पटना, लखनऊ, रांची जैसे शहरों के अलावा छोटे-छोटे शहरों में भी आइएएस बनाने का दावा करने वाली दुकानों (कोचिंग संस्थानों) में भी अप्रत्याशित तेजी आई है।

तीसरा, वेतन आयोग की सिफारिशों के बाद आइएएस, अध्यापक से लेकर केंद्र और राज्य सरकार की तमाम नौकरियों के पैकेज भी अपेक्षाकृत आकर्षक हो गए हैं। इसके अलावा, कॉरपोरेट सेक्टर की नौकरियों में पैसे भले ही मिल रहे हों, लेकिन वहां की मशीनी एकरस नौकरी से जल्द ही ज्यादातर युवाओं का मन ऊब जाता है। ज्यादा दिक्कत फ्रेशर्स के लिए है, जिन्हें न तो अपनी क्षमता का पता होता है और न ही लक्ष्य के बारे में। कोचिंग की तरफ ऐसे ही युवा भागते हैं। उन्हें लगता है कि नामी कोचिंग उन्हें उनकी मंजिल तक पहुंचा देगा। पर कई साल का समय और काफी पैसा बर्बाद करने के बाद ही उन्हें यह समझ में आ पाता है कि यह उनका भ्रम था। दरअसल, कोई भी कोचिंग तब तक बेड़ा पार नहीं लगवा सकती, जब तक आपमें खुद उसे पार करने की क्षमता न हो।

सेल्फ-स्टडी है ब्रह्मास्त्र
तमाम कोचिंग संस्थान भले ही यह दावा करते हों कि सिविल सेवा परीक्षा या किसी अन्य परीक्षा में टॉप करने वाला कैंडिडेट उन्हीं का छात्र रहा है, पर यह आधा-अधूरा सच होता है। टॉपर्स या फिर ज्यादातर कामयाब होने वाले अभ्यर्थी भले ही अपनी किसी एक कमी या कमजोरी को दूर करने के लिए कोचिंग की मदद लेते हों, पर अधिकतर अपने बलबूते ही कामयाबी की छलांग लगाते हैं। वह शुरू से ही कोचिंग का सहारा लेने की शायद कभी नहीं सोचते। ऐसे अभ्यर्थी पहले अपनी क्षमता-सामथ्र्य को आंकते हुए उसके मुताबिक लक्ष्य तय करते हैं और फिर उसके अनुसार समुचित रणनीति बनाते हुए मेहनत-लगन और ट्रिक के साथ कदम बढ़ाते हैं। अगर उन्हें अपने शुरुआती प्रयासों में कामयाबी नहीं मिल पाती, तो वे अपनी उस कमजोरी की तलाश करते हैं और उसे दूर करके फिर उसी उत्साह के साथ मंजिल की ओर बढ़ते हैं।

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