Bombay High Court की सख्‍ती, कार्यस्‍थल में महिलाओं के यौन उत्‍पीड़न को लेकर जारी की गाइडलाइन

बॉम्‍बे हाइकोर्ट (Bombay High Court) ने कार्यस्‍थल में यौन उत्‍पीड़न का शिकार होने वाली महिलाओं के मामलों की सुनवाई को लेकर कड़े नियम पारित किए हैं। जस्टिस जीएक पटेल ने ऐसे मामलों को लेकर आरोपी और पीड़ित दोनों पक्षों के हित की रक्षा कर आदेश पारित किया। x

By Babita KashyapEdited By: Publish:Tue, 28 Sep 2021 09:26 AM (IST) Updated:Tue, 28 Sep 2021 09:27 AM (IST)
Bombay High Court की सख्‍ती, कार्यस्‍थल में महिलाओं के यौन उत्‍पीड़न को लेकर जारी की गाइडलाइन
बॉम्‍बे हाइकोर्ट ने महिलाओं के कार्यस्‍थल में होने वाले यौन उत्‍पीड़न को लेकर कड़े निर्देश जारी किए हैं।

मुंबई, एएनआइ। बॉम्‍बे हाइकोर्ट ने महिलाओं के कार्यस्‍थल में होने वाले यौन उत्‍पीड़न अधिनियम और नियमों के अंतर्गत होने वाले मामलों की सुनवाई और इन मामलों रिकार्डिंग को लेकर कड़े निर्देश जारी किए हैं। कोर्ट के आदेश के अनुसार, आदेश के कागजों में पार्टियों का नाम नहीं लिखा जाएगा। ऐसे मामलों को कैमरे में या न्‍यायाधीश की कक्षों में ही सुना जाएगा इसके लिए किसी भी तरह की मीडिया रिपोर्टिंग नहीं की जाएगी। इन मामलों पर पूर्व अनुमोदन के बिना फैसलों पर अनुमति दी जाएगी।

हाइकोर्ट में जस्टिस जीएक पटेल ने ऐसे मामलों को लेकर आरोपी और पीड़ित दोनों पक्षों के हित की रक्षा कर आदेश पारित किया। कोर्ट का कहना है कि आदेश पारित करने से लेकर रिपोर्ट को अपलोड करने और कार्यस्‍थल में महिलाओं के साथ हुई यौन उत्पीड़न की घटनाओं पर रिपोर्ट करने से जुड़े दिशा-निर्देश हाइकोर्ट में तैयार हुए पहले ऐसे मानदंडों में से एक हैं।

न्यायमूर्ति गौतम पटेल की पीठ ने शुक्रवार को पारित एक विस्तृत आदेश में कहा कि कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ हुआ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम (पीओएसएच अधिनियम), 2013 के अुनसार इन सभी पर कार्यवाही केवल कैमरा या जज के कक्षों में की जाएगी। ऐसे मामलों में कोर्ट में दिए गए आदेश अदालत की वेबसाइट पर अपलोड नहीं होंगे और साथ ही मीडिया भी अदालत की आज्ञा के बिना अधिनियम के तहत पारित फैसले पर रिपोर्ट नहीं करेगा।

ऐसे मामलों में दोनों पक्षों, वकीलों के साथ ही गवाहों को भी किसी भी आदेश या निर्णय की सामग्री का खुलासा करने से मना किया गया है। अदालत की अनुमति के बिना किसी भी तरह से ऐसी सामग्री को प्रकाशित करना आदेश का उल्‍लंघन माना जाएगा। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों के सभी रिकॉर्ड सीलबंद लिफाफों में सुरक्षित रखे जाएंगे और कोर्ट की अनुमति के बिना किसी भी व्यक्ति के साथ साझा नहीं किए जाएंगे।

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