Maharashtra: शिवसेना को नहीं भा रही अंटीलिया प्रकरण में एनआइए की जांच

Maharashtra शिवसेना मुखपत्र सामना के संपादकीय में कहा गया कि मुकेश अंबानी के घर के पास मिली कार व उसके मालिक मनसुख हिरेन की संदिग्ध परिस्थितियों में मिली लाश का मामला निश्चित तौर पर चिंताजनक है। विपक्ष ने इस मामले में कुछ सवाल खड़े किए हैं ये सच है।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Publish:Fri, 19 Mar 2021 08:46 PM (IST) Updated:Fri, 19 Mar 2021 08:46 PM (IST)
Maharashtra: शिवसेना को नहीं भा रही अंटीलिया प्रकरण में एनआइए की जांच
शिवसेना को नहीं भा रही अंटीलिया प्रकरण में एनआइए की जांच। फाइल फोटो

मुंबई, राज्य ब्यूरो। Maharashtra: एक ओर भाजपा ठाणे में हुई मनसुख हिरेन की संदिग्ध मौत मामले की जांच एनआइए से करवाने की मांग कर रही है, तो दूसरी ओर शिवसेना को अंटीलिया प्रकरण में भी एनआइए की जांच खटक रही है। उसे लगता है कि केंद्र सरकार ने एनआइए को यह जांच महाराष्ट्र सरकार को बदनाम करने के लिए सौंपी है। शिवसेना मुखपत्र सामना के संपादकीय में कहा गया कि मुकेश अंबानी के घर के आसपास मिली संदेहास्पद कार व उसके बाद कार के मालिक मनसुख हिरेन की संदिग्ध परिस्थितियों में मिली लाश का मामला निश्चित तौर पर चिंताजनक है। विपक्ष ने इस मामले में कुछ सवाल खड़े किए हैं, ये सच है। परंतु राज्य का आतंक निरोधी दस्ता इस मामले में हत्या का मामला दर्ज करके जांच कर रहा था, इसी दौरान ‘एनआइए’ ने आनन-फानन में जांच की कमान अपने हाथ में ले ली। महाराष्ट्र सरकार को किसी तरह से बदनाम कर सकें , इसके अलावा कोई और ‘नेक मकसद’ इसके पीछे नहीं हो सकता है। सामना का कहना है कि आतंकवाद से जुड़े मामलों की जांच एनआइए करती है। लेकिन किसी भी हाल में इसके पीछे आतंकवाद के तार न जुड़ने के बावजूद इस अपराध की जांच में ‘एनआइए’ का घुसना, ये क्या मामला है?

एनआइए द्वारा की गई पिछली कुछ जांचों पर सवाल उठाते हुए सामना लिखता है कि जिलेटिन की छड़ों की जांच करनेवाली ‘एनआइए’ ने उरी हमला, पठानकोट हमला व पुलवामा हमले में क्या जांच की, कौन सा सच उजागर किया, कितने गुनहगारों को गिरफ्तार किया ? ये भी रहस्य ही है। लेकिन मुंबई में 20 जिलेटिन की छड़ें ‘एनआइए’ के लिए बड़ी चुनौती ही सिद्ध होती नजर आ रही हैं। मुंबई के पुलिस आयुक्त पद से परमबीर सिंह को हटाए जाने को ‘दिल्ली लॉबी’ के गुस्से का परिणाम बताते हुए सामना लिखता है कि मुंबई पुलिस आयुक्त के पद से परमबीर सिंह को बदल दिया गया, इसका मतलब वे गुनहगार सिद्ध नहीं होते। पुलिस आयुक्त पद की कमान उन्होंने अत्यंत कठिन समय में संभाली थी। कोरोना संकट से लड़ने के लिए उन्होंने पुलिस में जोश निर्माण किया था। धारावी जैसे क्षेत्र में वे खुद जाते रहे। सुशांत सिंह राजपूत, कंगना रनोट जैसे प्रकरणों में उन्होंने पुलिस का मनोबल टूटने नहीं दिया। टीआरपी घोटाले की फाइल उन्हीं के समय में खोली गई। परमबीर सिंह पर दिल्ली की एक विशिष्ट लॉबी का गुस्सा इसी वजह से था। 

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