Maharashtra: बुजुर्ग ने नौजवान के लिए छोड़ दिया अस्पताल का बेड, कहा-मैंने अपनी जिंदगी जी ली

Corona Fighters 85 साल के बुजुर्ग ने कहा कि मैं तो अपना जीवन जी चुका हूं। बिस्तर की मुझसे ज्यादा जरूरत उस युवक को है। जिसके बच्चे अभी छोटे-छोटे होंगे। फिर से एंबुलेंस बुलाई गई और वह घर लौट आए। कुछ दिन बाद घर पर ही उनकी मौत हो गई।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Publish:Wed, 28 Apr 2021 09:48 PM (IST) Updated:Wed, 28 Apr 2021 09:48 PM (IST)
Maharashtra: बुजुर्ग ने नौजवान के लिए छोड़ दिया अस्पताल का बेड, कहा-मैंने अपनी जिंदगी जी ली
बुजुर्ग ने नौजवान के लिए छोड़ दिया अस्पताल का बेड, कहा-मैंने अपनी जिंदगी जी ली। फाइल फोटो

मुंबई, राज्य ब्यूरो। Corona Fighters: देश में चारों ओर अस्पतालों में बेड, ऑक्सीजन व रेमडेसिविर इंजेक्शन मिलना मुश्किल हो रहा है। लोग अपने परिजनों के लिए दर-दर भटकते दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में एक 85 वर्षीय बुजुर्ग का 40 वर्षीय व्यक्ति के लिए खुद को मिला अस्पताल का बिस्तर छोड़ देना एक मिसाल प्रस्तुत करता है। घटना नागपुर महानगरपालिका द्वारा संचालित इंदिरा गांधी अस्पताल की है। बीते 21 अप्रैल को कोरोना पीड़ित 85 वर्षीय नारायण दाभाडकर शरीर में ऑक्सीजन का घटता स्तर देख अपने दामाद के साथ अस्पताल पहुंचे थे। डॉक्टरों ने उनकी जांच की और एक्स-रे रिपोर्ट देखकर तय किया कि उन्हें अस्पताल में भर्ती करना जरूरी है। अस्पताल में बिस्तरों की कमी थी। फिर भी अपनों के बीच दाभाडकर काका के नाम से मशहूर इस बुजुर्ग की उम्र को देखते हुए उन्हें अस्पताल में बिस्तर मिल गया। तभी अस्पताल के गलियारे में कुछ शोर-शराबा सुनाई दिया।

स्वयं ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहे दाभाडकर काका के कानों ने सुना कि किसी 40 वर्षीय व्यक्ति को बिस्तर नहीं मिल पा रहा है। इतना सुनना था कि उन्होंने क्षण भर में निर्णय कर लिया कि उन्हें अपना बिस्तर उस युवक को दे देना है। उन्होंने तुरंत अपनी बेटी आशावरी को फोन लगवाया और उसे अपने निर्णय से अवगत करा दिया। उन्हें उनके दामाद ने बहुत समझाया। डॉक्टरों ने भी बताया कि ऐसा करना उनके जीवन के लिए खतरनाक हो सकता है, लेकिन उन्होंने साफ कह दिया कि मैं तो अपना जीवन जी चुका हूं। बिस्तर की मुझसे ज्यादा जरूरत उस युवक को है। जिसके बच्चे अभी छोटे-छोटे होंगे। फिर से एंबुलेंस बुलाई गई और दाभाडकर काका अपने घर लौट आए। कुछ दिन बाद घर पर ही उनकी मौत हो गई।

संयोग से वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय कार्यकर्ता थे, लेकिन कुछ स्थानीय अखबारों में यह खबर प्रकाशित होने के बाद देश का एक राजनीतिक वर्ग इस प्रेरक घटना को भी झुठलाने में लग गया। सोशल मीडिया से लेकर यू-ट्यूब चैनल तक दाभाडकर काका के त्याग को झुठलाने की कोशिश की जाने लगी। इस पर उनकी बेटी आशावरी कोठीवान का कहना है कि उन्हें नहीं पता कि उनके पिता द्वारा छोड़ा गया बिस्तर किसे मिला, लेकिन ये सही है कि वह अस्पताल में खुद को मिला बिस्तर किसी और जरूरतमंद के लिए छोड़कर घर वापस आ गए थे। 

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