Maharashtra: कांग्रेस के बिना तीसरा मोर्चा बनने पर भाजपा को लाभ होगा: नाना पटोले

Maharashtra महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले ने कहा कि ऐसे किसी भी मोर्चे का लाभ भाजपा को ही होगा। नाना पटोले ने कुछ दिन पहले कांग्रेस द्वारा अगला चुनाव अकेले लड़ने की बात कहकर महाराष्ट्र की सत्तारूढ़ महाविकास अघाड़ी में हलचल पैदा कर दी थी।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Publish:Wed, 23 Jun 2021 11:09 PM (IST) Updated:Wed, 23 Jun 2021 11:09 PM (IST)
Maharashtra: कांग्रेस के बिना तीसरा मोर्चा बनने पर भाजपा को लाभ होगा: नाना पटोले
कांग्रेस के बिना तीसरा मोर्चा बनने पर भाजपा को लाभ होगा: नाना पटोले। फाइल फोटो

राज्य ब्यूरो, मुंबई। कांग्रेस को छोड़कर तीसरा मोर्चा बनाने की शरद पवार की कोशिश कांग्रेस को रास नहीं आ रही है। बुधवार को महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले ने कहा कि ऐसे किसी भी मोर्चे का लाभ भाजपा को ही होगा। नाना पटोले ने कुछ दिन पहले कांग्रेस द्वारा अगला चुनाव अकेले लड़ने की बात कहकर महाराष्ट्र की सत्तारूढ़ महाविकास अघाड़ी में हलचल पैदा कर दी थी। उनके इस बयान का उनके दोनों सहयोगी दलों शिवसेना और राकांपा ने अपने-अपने तरीके से उत्तर दिया था। लेकिन इसी बीच शरद पवार के नेतृत्व में तीसरा मोर्चा बनाने की चर्चा शुरू हो चुकी है। इस मोर्चे के संबंध में दिल्ली में बैठकें हो रही हैं। इस संबंध में बुधवार को जलगांव में जब पत्रकारों ने नाना पटोले से प्रश्न किया तो उन्होंने कहा कि ऐसा कोई भी मोर्चा कांग्रेस के बिना संभव ही नहीं है। ऐसी कोई भी कोशिश परोक्ष रूप से भाजपा को ही मदद करेगी। पटोले के इस बयान से लग रहा है कि शरद पवार के नेतृत्व में तीसरे मोर्चे की कवायद कांग्रेस को रास नहीं आ रही है।

महाराष्ट्र में कांग्रेस से अलग होने के बावजूद शरद पवार ने 1999 में कांग्रेस के साथ ही गठबंधन सरकार बनाई थी, जो 15 साल चली थी। 2019 का विधानसभा चुनाव भी राकांपा-कांग्रेस मिलकर ही लड़ी थीं। अब हालांकि अकेले लड़ने का राग नाना पटोले ने ही छेड़ा है। लेकिन उन्हें यह भी अहसास है कि यदि महाराष्ट्र में राकांपा का गठबंधन शिवसेना के साथ भी हो गया तो इसका सबसे बड़ा नुकसान कांग्रेस को ही उठाना पड़ेगा। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सिर्फ एक सीट चंद्रपुर की जीत सकी थी। वह भी शिवसेना छोड़कर कांग्रेस में आए अपने उम्मीदवार के कारण। इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस 44 सीटें पाकर चौथे नंबर पर ही रही थी। जबकि उसके सहयोगी दल राकांपा को उससे 10 ज्यादा यानी 54 सीटें मिली थीं। बाद में शिवसेना के भाजपा का साथ छोड़ देने के कारण कांग्रेस को भी सत्ता में भागीदारी का अवसर मिल गया। 

chat bot
आपका साथी