...तो यह थी महाविकास आघाडी में लगातार बढ़ रही रार की वजह, झलकने लगी शिवसेना के भीतर की बेचैनी

Maharashtra Politics वर्ष 2019 के लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों में शिवसेना की सफलता में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि का कितना योगदान रहा है और भविष्य के चुनावों में कांग्रेस और राकांपा का साथ क्या नुकसान पहुंचा सकता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Tue, 22 Jun 2021 11:10 AM (IST) Updated:Tue, 22 Jun 2021 01:32 PM (IST)
...तो यह थी महाविकास आघाडी में लगातार बढ़ रही रार की वजह, झलकने लगी शिवसेना के भीतर की बेचैनी
शिवसेना विधायक प्रताप सरनाईक ने उद्धव को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपनी करीबी और बढ़ाने की सलाह दी है। फाइल

मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। शिवसेना विधायक प्रताप सरनाईक की अपने पार्टी अध्यक्ष एवं राज्य के मुख्यमंत्री को लिखी चिट्ठी अनायास नहीं है। यह महाराष्ट्र के उन तमाम शिवसैनिकों की बेचैनी का प्रतीक है, जो पिछले डेढ़ वर्ष से पतीले में खदबदा रही थी और अब छलकने लगी है। सरनाईक ने अपनी चिट्ठी में उद्धव को सलाह दी है कि उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपनी करीबी और बढ़ानी चाहिए। उनका मानना है कि इससे शिवसैनिकों एवं उनके परिवारों की दिक्कतें कम होंगी। उन्होंने अपने पत्र में कांग्रेस एवं राकांपा से शिवसेना को हो रहे नुकसान का भी हवाला दिया है। वह साफ लिखते हैं कि कांग्रेस-राकांपा (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) राज्य में अपना मुख्यमंत्री बनाना चाहती हैं। कांग्रेस अकेले लड़ने की बात कर रही है तो राकांपा ने शिवसेना को ही तोड़ने का प्रयास शुरू कर दिया है।

सत्तारूढ़ महाविकास आघाड़ी में शामिल कांग्रेस-राकांपा के विरुद्ध मुंह खोलने की पहल भले आज प्रताप सरनाईक ने की हो, पर आम शिवसैनिकों में यह बेचैनी उद्धव सरकार बनने के पहले दिन से ही देखी जा रही है। महाराष्ट्र के मंत्रालय पर भगवा लहराने की जो खुशी राज्य भर के शिवसैनिकों में होनी चाहिए थी, वह ठाकरे परिवार के किसी व्यक्ति के मुख्यमंत्री बनने के बावजूद नजर नहीं आई। राज्यसभा या विधान परिषद में मनोनीत कुछ नेताओं को छोड़ दिया जाए तो आम शिवसैनिक के लिए यह एक बड़ा झटका था। जिन दलों के विरुद्ध चंद दिनों पहले तक शिवसैनिक मोर्चा खोले रहे, अब उन्हीं दलों के साथ बैठकर सरकार बनने की मिठाई कैसे खाई जा सकती थी।

महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा का गठबंधन किसी न किसी रूप में 1985 से चला आ रहा है। वैचारिक दृष्टिकोण से शिवसैनिक भी इसे एक प्राकृतिक गठबंधन मानने लगे हैं। महाराष्ट्र में कुछ इलाके ऐसे हैं जहां भाजपा मजबूत है तो कुछ जगह शिवसेना। स्थानीय निकाय चुनावों में कहीं-कहीं दोनों में आपसी टकराव भी होता रहा है। फिर भी राज्य स्तर पर दोनों दलों का गठबंधन दोनों दलों के कार्यकर्ताओं की स्वीकृति पा चुका था। कांग्रेस-राकांपा जैसे धुर विरोधी दलों से शिवसेना-भाजपा के कार्यकर्ता मिलकर ही मुकाबला करते थे। महाविकास आघाड़ी की सरकार बनने के बाद रातोंरात महाराष्ट्र के गांव-गिरावं का समीकरण कैसे बदल सकता है? खासतौर से तब, जब स्थानीय निकायों के चुनाव फिर सिर पर खड़े हों। नासिक, कोल्हापुर, सोलापुर या औरंगाबाद के किसी शिवसेना विधायक को यह कैसे मंजूर हो सकता है कि उसी के जिले में किसी कांग्रेसी या राकांपाई मंत्री के दरवाजे पर भीड़ लग रही हो और उसे कोई पूछ भी न रहा हो!

इसलिए जो बात सरनाईक ने अपने पत्र में खुलकर लिख दी है, वही बात पूरे महाराष्ट्र में शिवसैनिक महसूस तो कर रहे हैं, लेकिन कह नहीं पा रहे हैं। सरनाईक ने अपने पत्र में लिखा है कि कांग्रेस-राकांपा के कारण शिवसेना को नुकसान हो रहा है। यह बात हर शिवसैनिक महसूस कर रहा है। सचिन वाजे और अनिल देशमुख प्रकरण से उछले गंदगी के छींटे महाराष्ट्र भर के शिवसैनिकों पर पड़े हैं। चुनाव के समय गली-मुहल्लों में जवाब तो उन्हें ही देना होगा। कोविड-19 की महामारी के दौरान सर्वाधिक दुर्गति तो महाराष्ट्रवासियों की ही हुई है। जिले-जिले में इस महामारी के दौरान दिखी र्दुव्‍यवस्था की जवाबदेही तो शिवसेना के स्थानीय नेताओं को ही उठानी पड़ेगी, क्योंकि मुख्यमंत्री शिवसेना का है। भले ही स्वास्थ्यमंत्री राकांपा का रहा हो।

सरनाईक ने अपनी चिट्ठी में केंद्रीय एजेंसियों से डर का भी जिक्र किया है। एंटीलिया प्रकरण एवं मनसुख हिरेन हत्याकांड के बाद जिस प्रकार केंद्रीय एजेंसियां सक्रिय हुई हैं, उससे उनका डरना स्वाभाविक भी है। इन मामलों में गिरफ्तार किए जा चुके सचिन वाजे एवं प्रदीप शर्मा, दोनों शिवसैनिक हैं। प्रदीप शर्मा तो नालासोपारा से शिवसेना के टिकट पर विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं। इसके बावजूद ‘मातोश्री की शक्ति’ उन्हें गिरफ्तारी से बचा नहीं सकी। कुछ मामलों में प्रताप सरनाईक सहित कई और शिवसेना नेता प्रवर्तन निदेशालय के निशाने पर हैं। इन सभी के मन में असुरक्षा है। जब राज्य के गृहमंत्री रहे राकांपा नेता अनिल देशमुख को शरद पवार एवं उद्धव ठाकरे नहीं बचा सके। उन्हें पद से इस्तीफा देकर तीन-तीन केंद्रीय एजेंसियों की जांच का सामना करना पड़ रहा है तो किसी आम विधायक की क्या हैसियत!

लोगों को यह भी लग रहा है कि शरद पवार की कृपा से उद्धव ठाकरे की कुर्सी भले बच जाए, लेकिन शिवसेना की गिरती साख तो नहीं बचनेवाली। जबकि स्थानीय निकायों से लेकर विधानसभा एवं लोकसभा तक इस साख के भरोसे ही शिवसैनिक चुनावी जंग में जूझता रहा है। एक बात और महत्वपूर्ण है। आम जनता से सीधे संपर्क के बिना मनोनीत होकर उच्च सदनों में पहुंचनेवाले कुछ नेता भले इस बात से इन्कार करते रहें, लेकिन जमीन से जुड़ा शिवसैनिक भलीभांति समझता है कि वर्ष 2019 के लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों में शिवसेना की सफलता में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि का कितना योगदान रहा है और भविष्य के चुनावों में कांग्रेस-राकांपा का साथ क्या नुकसान पहुंचा सकता है।

[ब्यूरो प्रमुख, मुंबई]

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