महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने विट्ठल मंदिर में कार्तिक एकादशी पर की महापूजा, आज फिर निभायी जाएगी 800 साल पुरानी परंपरा
Ekadashi 2021 आज कार्तिक एकादशी के अवसर पर महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने र पंढरपुर के विट्ठल मंदिर में महापूजा की। इस खास दिन के लिए मंदिर को 15 तरह के खास फूलों से सजाया गया है।
मुंबई, एजेंसी। कार्तिकी एकादशी के खास अवसर पर महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार और उनकी पत्नी सुनेत्रा पवार ने आज (सोमवार) सुबह 2:30 बजे पंढरपुर में विट्ठल रुक्मिणी की महा पूजा की। कार्तिक एकादशी होने के कारण श्री विट्ठल रुक्मिणी माता के गर्भगृह को पन्द्रह प्रकार के फूलों जैसे गेंदा, शेवंती, कार्नेशन, गुलाब आदि से सजाया गया है। इस सजावट के लिए पांच टन अलग-अलग फूलों का इस्तेमाल किया गया है और यह सजावट पुणे के विट्ठल भक्त राम जम्भुलकर ने की है। यह तैयारी पिछले तीन दिनों से की जा रही है। इसके लिए करीब 30 से 35 कारीगरों ने कड़ी मेहनत की है। एकादशी के मौके पर एक बार फिर पंढरपुर गुलजार है।
निभायी जाएगी 800 साल पुरानी परंपरा
देवउठनी एकादशी के अवसर पर आज इस मंदिर में भगवान विट्ठल की यात्रा निकाली जाएगी। बता दें कि इस खास दिन पर भगवान विट्ठल और देवी रुक्मणि की महापूजा के दर्शन करने के लिए लाखों की संख्या में लोग एकत्रित होते हैं। पिछले 800 साल से इस यात्रा का आयोजन किया जा रहा है। इस दिन वारकारी संप्रदाय के लोग यहां यात्रा में शामिल होने के लिए आते हैं। इस यात्रा को 'वारी देना' भी कहा जाता है।
कैसे पड़ा भगवान श्रीकृष्ण का विट्ठल नाम, क्यों निकाली जाती है यात्रा
6वीं सदी में एक प्रसिद्ध संत पुंडलिक हुए जो अपने माता-पिता के परम भक्त थे। भगवान श्रीकृष्ण उनके इष्टदेव थे। संत पुंडलिक की भक्ति से प्रसन्न हो एक दिन भगवान श्रीकृष्ण देवी रुकमणी के साथ प्रकट हुए थे और उन्हें स्नेह से पुकारते हुए कहा था पुंडलिक, हम तुम्हारा आतिथ्य ग्रहण करने यहां आए हैं। पुंडलिक ने जब उनकी ओर देखा तो कहने लगे मेरे पिताजी अभी सो रहे हैं आप कुछ देर इंतजार कीजिये और दोबारा पिता के चरण दबाने में लीन हो गए। भगवान ने भी भक्त की आज्ञा को मान लिया और वहीं कमर पर अपने दोनों हाथ रखकर खड़े रहे इंतजार करने लगे। श्रीकृष्ण भगवान का यही रूप विट्ठल कहलाया। इसके बाद इस स्थान को पुंडलिकपुर या पंढरपुर कहकर पुकारा गया। ये सथान का महाराष्ट्र का सबसे बड़ा तीर्थ कहलाता है। वारकारी संप्रदाय का ऐतिहासिक संस्थापक भी संत पुंडलिक को ही माना जाता है। पुंडलिक भगवान विट्ठल की पूजा करते थे। यहां भक्तराज पुंडलिक का एक स्मारक भी बना हुआ है। इसके बाद से ही यहां प्रतिवर्ष मेला लगता है और यात्रा भी निकाली जाती है।
विट्ठल मंदिर का इतिहास
इस मंदिर को विठोबा भी कहा जाता है। पंढरपुर में स्थित यह मंदिर भगवान श्री श्रीकृष्ण को समर्पित है। यहां भगवान श्रीकृष्ण को विठोबा भी कहा जाता है। मंदिर के किनारे पर भीमा नदी बहती है ऐसी मान्यता है कि इस पवित्र नदी में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं। मंदिर के प्रवेशद्वार पर भक्त चोखामेला की समाधि बनी हुई है। मंदिर के घेरे में रुक्मणिजी, बलरामजी, सत्यभामा, जांबवती तथा श्रीराधा के मंदिर बने हुए हैं।