Maharashtra: नए आइटी रूल्स बेरहम, इन पर लगाई जाए रोकः बाम्बे हाईकोर्ट

Maharashtra बाम्बे हाईकोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि नए आइटी रूल्स प्रेस की स्वतंत्रता और नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आघात करने वाले हैं। जबकि दोनों तरह की स्वतंत्रता की गारंटी देश का संविधान देता है।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Publish:Mon, 09 Aug 2021 07:33 PM (IST) Updated:Mon, 09 Aug 2021 07:33 PM (IST)
Maharashtra: नए आइटी रूल्स बेरहम, इन पर लगाई जाए रोकः बाम्बे हाईकोर्ट
नए आइटी रूल्स बेरहम, इन पर लगाई जाए रोकः बाम्बे हाईकोर्ट। फाइल फोटो

मुंबई, प्रेट्र। बाम्बे हाईकोर्ट में दायर याचिका में इन्फार्मेशन टेक्नोलाजी (आइटी) रूल्स, 2021 को अस्पष्ट और बेरहम बताते हुए उन्हें रद करने की मांग की गई है। यह याचिका लीफलेट नाम के डिजिटल न्यूज पोर्टल और पत्रकार निखिल वागले ने दायर की है। याचिका में कहा गया है कि नए आइटी रूल्स प्रेस की स्वतंत्रता और नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आघात करने वाले हैं। जबकि दोनों तरह की स्वतंत्रता की गारंटी देश का संविधान देता है। लीफलेट की ओर से हाईकोर्ट में पेश वरिष्ठ अधिवक्ता डेरियस खंबाटा ने मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और जस्टिस जीएस कुलकर्णी की पीठ से आग्रह किया कि नए आइटी रूल्स के क्रियान्वयन को तत्काल प्रभाव से स्थगित किया जाए। याचिका में कहा गया है कि नए रूल्स नागरिकों, पत्रकारों, डिजिटल न्यूज पोर्टल आनलाइन, इंटरनेट मीडिया और अन्य की प्रकाशन सामग्री पर कई तरह की रुकावट पैदा करने वाले हैं। ये सामग्री को लेकर कई तरह की अनावश्यक जवाबदेही और अपेक्षाएं व्यक्त करने वाले हैं। इनसे संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत नागरिकों को मिली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में बाधा पहुंचती है।

इस तरह के बेरहम नियम पहली बार देश में लागू हुए हैं। इसलिए उन पर तत्काल रोक लगाई जाए। अगर इसमें देरी की गई तो लेखकों, प्रकाशकों और नागरिकों की अभिव्यक्ति पर नकारात्मक असर होगा। याचिका में नए नियमों को गैरजरूरी भी बताया गया है। याचिका में कहा गया है कि नए नियम मीडिया संस्थानों पर बिना सुबूत के स्टिंग आपरेशन करने पर रोक लगाते हैं। ये नियम किसी भी जनप्रतिनिधि या सार्वजनिक जीवन में सक्रिय व्यक्ति के खिलाफ सामग्री को सार्वजनिक करने पर रोक लगाते हैं। नए नियमों में अपमानजनक सामग्री को लेकर कोई परिभाषा नहीं है और न ही सुबूतों को सही तरह से परिभाषित किया गया है। याचिका में मंत्रियों की समिति को मानीटरिंग का अधिकार दिए जाने पर भी सवाल उठाया गया है। इन नियमों को हाल के दशकों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए सबसे ज्यादा कठोर करार दिया गया है।

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