जान जोखिम में डाल लोहे की कड़ाही में बैठ नदी पार करते हैं ये ग्रामीण, कहा- अब करेंगे चुनाव का बहिष्‍कार

नरसिंह खेड़ा के छह गांव के लोग लोहे की कड़ाही में बैठ कई वर्षो से नदी पार करते आ रहे हैं। इसके लिए प्रति वर्ष दस हजार रुपये की लोहे की कड़ाही खरीदी जाती है। गांव के लोग अधिकारियों को भी इस समस्‍या के बारे में बता चुके हैं।

By Babita KashyapEdited By: Publish:Tue, 07 Dec 2021 10:59 AM (IST) Updated:Tue, 07 Dec 2021 10:59 AM (IST)
जान जोखिम में डाल लोहे की कड़ाही में बैठ नदी पार करते हैं ये ग्रामीण, कहा- अब करेंगे चुनाव का बहिष्‍कार
20 से 25 मीटर चौड़ी लोहे की कड़ाही में बैठ नदी पार करते है ग्रामीण

इछावर, जेएनएन। मध्‍य प्रदेश के सीहोर के इछावर में स्थित नरसिंह खेड़ा के छह गांव के लोग यहां पुल न होने के कारण 20 से 25 मीटर चौड़ी लोहे की कड़ाही में बैठ नदी पार करते हैं। ये लोग अपनी जान जोखिम में डालकर ऐसे ही बीते कई वर्षो से नदी पार करते आ रहे हैं। गांव वालों का कहना है कि जब से हमने होश संभाला है इस लोहे की कड़ाही में बैठकर ही नदी पार करते आ रहे हैं। दुर्गापुरा, बिशन खेड़ी, मोलगा, सांगली में रहने वाले ग्रामीणों का जीवन इस समस्‍या से प्रभावित है।

ये नदी साल के 12 महीनों में से 8 महीने ऐसे ही पानी से भरी रहती है। ऐसे में एक गांव से दूसरे गांव जाने में असुविधा होती है और कई बार तो पानी का बहाव इतना तेज हो जाता हे कि एक गांव से दूसरे गांव का संपर्क टूट जाता है। गांव के लोग अधिकारियों को भी इस समस्‍या के बारे में बता चुके हैं। लेकिन अधिकारी इसे लेकर कुछ बोलने को ही तैयार नहीं है। महिलाओं व बच्‍चों को सुरक्षित नदी पार करवाने के लिए एक व्‍यक्ति को हमेशा यहां रहना ही पड़ता है।

इसके लिए हर साल खरीदी जाती है दस हजार रुपये की नई कड़ाही

ग्रामीणों ने बताया कि नदी में साल भर में लगभग आठ महीने पानी भरा रहता है। ऐसे में इसे पार करने के लिए दस हजार रुपये की हर साल एक नई कड़ाही खरीदनी पड़ती है। एक कड़ाही एक साल ही चल पाती है, दरअसल हमेशा पानी में पड़े रहने की वजह से ये जंग खाकर खराब हो जाती है। इसलिए नदी के रास्ते में पड़ने वाले हर खेत के लोग को अपने लिए अलग ही एक कड़ाही खरीदते हैं।

ग्रामीणों का कहना करेंगे चुनाव का बहिष्कार

इस समस्‍या से परेशान हो चुके ग्रामीणों ने चुनाव का बहिष्‍कार करने की फैसला किया है। उनका कहना है कि नेता सिर्फ वोट मांगने आते हैं और फिर जीत कर इस समस्या से मुंह फेर लेते हैं। यहां कोई हमारी नहीं सुनता। जब तक इस नदी पर पुल नहीं बन जाता है तब तक हम हर चुनाव का बहिष्कार करेंगे।

chat bot
आपका साथी