‘स्वयं से स्वयं की यात्रा’ कराता है मध्यप्रदेश

कोई अपने दैनिक जीवन से कुछ पलों के विश्राम के लिए यात्रा कर रहा है तो कोई अपने व्यवसाय को नए आयाम देने के लिए। कोई अपनों से मिलने के लिए यात्रा करता है तो कोई आत्मिक शान्ति के लिए यात्रा करता है।

By Ruhee ParvezEdited By: Publish:Thu, 02 Dec 2021 02:09 PM (IST) Updated:Thu, 02 Dec 2021 03:15 PM (IST)
‘स्वयं से स्वयं की यात्रा’ कराता है मध्यप्रदेश
‘स्वयं से स्वयं की यात्रा’ कराता है मध्यप्रदेश

अनादि काल से ही मनुष्य की प्रवृत्ति यात्रा करने की रही है। भले ही इसके कारण भिन्न रहे हों, लेकिन उन सभी यात्राओं का उद्देश्य हमेशा से एक ही रहा है, और वह है 'बदलाव'। कोई अपने दैनिक जीवन से कुछ पलों के विश्राम के लिए यात्रा कर रहा है, तो कोई अपने व्यवसाय को नए आयाम देने के लिए। कोई अपनों से मिलने के लिए यात्रा करता है तो, कोई आत्मिक शान्ति के लिए यात्रा करता है। लेकिन इन सभी यात्राओं का मूल एक ही है - 'बदलाव'।

आज के इस आधुनिक युग में इन यात्राओं को अलग-अलग श्रेणियों में बाट दिया गया है, जैसे स्वास्थ्य पर्यटन, खेल पर्यटन, वन्य-जीव पर्यटन, आध्यात्मिक पर्यटन, इत्यादि। लेकिन वास्तव में पर्यटन को विभाजित नहीं किया जा सकता है, इसे किसी दायरे में बांधना ठीक उसी तरह से होगा जैसे किसी नदी की अविरल धारा को एक कांच की बोतल में बंद कर दिया जाए। लेकिन मनुष्य अपने आस-पास हो रहे इन आधुनिक बदलावों को सहज ही अपना लेता है।

वास्तव में देखा जाए तो आध्यात्मिक पर्यटन सिर्फ एक सैर-सपाटा और मनोरंजन मात्र ही नहीं है, बल्कि यह स्वयं के द्वारा, स्वयं की खोज की एक अद्भुत यात्रा है। इस यात्रा के तमाम पड़ाव हो सकते हैं, तमाम बाधाएं भी आती हैं, लेकिन इन सभी पड़ावों और बाधाओं को पार करने के बाद जिस आध्यात्मिक शांति और वैचारिक ठहराव के दर्शन होते हैं, वही स्वयं के दर्शन हैं।

'स्वयं कि खोज' का आधार है मानसिक शांति, वैचारिक शांति, जिसकी प्राप्ति के लिए सबसे बेहतर और सरल तरीका है कि अपने आप को उस परम पिता परमात्मा के श्री चरणों में समर्पित कर देना। बौद्ध धर्म में जिस प्रकार से कहा गया है कि 'बुद्धम शरणम् गच्छामि', जिसका अर्थ है कि भगवान बुद्ध की शरण में अपने को समर्पित कर दो, अर्थात भगवान बुद्ध की शिक्षा और उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग को अपने जीवन में उतार कर 'स्वयं के दर्शन' के पथ पर अग्रसर हो। मध्यप्रदेश स्थित साँची में भगवान बुद्ध की शिक्षाओं के आज भी साक्षात दर्शन होते हैं, सम्राट अशोक द्वारा निर्मित स्तूप में शांति का अनुभव ही जीवन दर्शन की यात्रा का सार है। भगवान महावीर की वाणी से गुंजायमान वातावरण आध्यात्मिक यात्रा को विश्राम देने वाला है। साँची में आकर उस परम शांति का अनुभव होता है जिसकी खोज में हम ना जाने कितने जन्मों से भटक रहे हैं।

आध्यात्मिक यात्रा एक सतत चलने वाली यात्रा है, जीवन पर्यन्त चलने वाली वह प्रक्रिया है जो कि मनुष्य के जीवन के हर पड़ाव पर 'स्वयं को स्वयं के’ दर्शन कराते हुए मानव जीवन के भविष्य के मार्ग को निरंतर उज्ज्वलता की ओर प्रशस्त करती रहेगी। पवित्र क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित उज्जैन, जहाँ वायु के कण-कण में 'ॐ नमः शिवाय' का अलौकिक मन्त्र विद्यमान है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर आध्यात्मिक शांति का निस्संदेह एक मुख्य केंद्र है। सूर्य की पहली किरण के साथ महाकाल का श्रृंगार कराती भस्मारती से लेकर उनकी शयन आरती तक, सब कुछ इतना मनमोहक और रोम-रोम को प्रफुल्लित कर देने वाला होता है, मानो साक्षात शिव- पार्वती अपना आशीर्वाद देने पृथ्वी पर उतर आये हों।

असीम शांति की खोज, मध्यप्रदेश में यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल सूची में शामिल, मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो के अद्वितीय हिंदू और जैन मंदिरों के स्मारकों के दर्शन के बिना अधूरी है। यहाँ आयोजित नृत्य महोत्सव में ओडिसी, कथक, भरतनाट्यम, मणिपुरी, कुचिपुड़ी, कथकली सहित भारतीय शास्त्रीय एवं आधुनिक भारतीय नृत्य शैलियों की समृद्धि दिखाई देती है, जो कि आपके हृदय को एक अद्भुत अमृत से सराबोर कर देगी।

जिस तरह से मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम अपनी जीवन यात्रा के माध्यम से सम्पूर्ण मानव जाति को संयम और सौहार्द का ज्ञान देते हैं, ठीक उसी प्रकार से मध्यप्रदेश भी ऐसी अनेकों धार्मिक विरासतों का केंद्र है जो पर्यटकों को उनकी 'आध्यात्मिक यात्रा' की एक दिशा देता है। भगवान श्री राम की 14 वर्ष की वनवास यात्रा के दर्शन कराता है मध्यप्रदेश के चित्रकूट का 'श्री राम वन गमन पथ'। यहाँ आने वाला हर एक मनुष्य अपने जीवन को मर्यादा, धैर्य और सौहार्द के साथ जीने के मूल-मन्त्र को सहज ही समझ जाता है।

'स्वयं से स्वयं की यात्रा' का उद्देश्य अपने भीतर बैठे उस परमपिता परमात्मा के दर्शन करना है, जो उसका हर कदम पर मार्गदर्शन अनंतकाल से करता चला आ रहा है, और आने वाले अनंतकाल तक करता रहेगा। जब हम स्वयं की खोज को प्राप्त कर लेंगे तभी हम हमारे भीतर बैठे दुर्भावना रुपी असुर का संहार कर सकते हैं। मध्यप्रदेश के सीहोर जिले के सलकनपुर में विंध्य की मनोहारी पहाड़ी पर महिषासुरमर्दिनी के रूप में माँ दुर्गा ने रक्तबीज नाम के राक्षस का वध करके यहां विजयी मुद्रा में तपस्या की। यहाँ के दर्शन मात्र से ही हम अपने भीतर के उस रक्तबीज रुपी राक्षस का वध कर देते हैं जोकि हमारे इस जीवन के विकास पथ और स्वयं की यात्रा में एक बाधा बनकर अनेकों बार हमारे सामने आ जाता है।

भारत के प्रागैतिहासिक काल से लेकर मध्यकाल तक के जीवन के दर्शन कराती भीमबेटका की गुफाएं हमको यह याद दिलाती हैं कि हम कहा से आये हैं और हमारी मंज़िल कहा है। आज इस संसार की भाग-दौड़ में हम अपने आप को ही भूल बैठे हैं, जिसको एक बार फिर से याद करना, और उसे समझाना आवश्यक है, तभी हमारी 'स्वयं से स्वयं तक की यात्रा' असली मायनों में पूर्ण हो पायेगी। बौद्ध प्रभावों के संकेतों से लेकर सुंग, कुषाण और गुप्तकालीन शिलालेख हमारे अंतःकरण को हमारे समृद्ध इतिहास के बारे में सोचने को मजबूर कर देते हैं और इन्हीं शिलालेखों के दर्शन के बाद मस्तिष्क में उठने वाला हर एक सवाल का हर एक जवाब ही स्वयं की असली खोज है।

जिस स्वयं की खोज की यात्रा पर हम निकले हैं उसका ना ही कोई स्वरुप है और ना ही कोई अकार। मानो तो वह सर्वस्व व्याप्त है और ना मनो तो उसका कोई अस्तित्व भी नहीं है। मानो तो वह शांति मैहर स्थित त्रिकुट पर्वत की ऊंची पहाड़ियों पर विराजमान माँ शारदा देवी जी के जयकारे में भी बसती है, और एशिया की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक, झीलों के शहर भोपाल में स्थित ताज-उल-मस्जिद से हर रोज़ उठ रही अज़ान में भी शामिल है। 250 वर्ष पुराने ग्वालियर के ऐतिहासिक क्राइस्ट चर्च की प्रार्थनाओं के बीच बजती पवित्र घंटियों की सरगम में भी उसी शांति की अनुभूति होती है, तो विंध्य और सतपुड़ा पर्वतमालाओं के बीच स्थित नर्मदा नदी के उद्गम स्थल अमरकंटक में भी इस शांति के दिव्य दर्शन होते हैं।

अध्यात्म की यह यात्रा अनंत है, सतत है, अद्भुत है। भारत को ऋषि-मुनियों की जन्म भूमि और कर्म भूमि कहा जाता है। हमारे पूर्वजों के द्वारा कही गयीं कुछ रचनात्मक पंक्तिया हैं, जिनका महत्त्व हर युग में उतना ही है, जीता उस समय था जब इनकी रचना की गयी। उन्होंने कहा था - "कोस-कोस पर बदले पानी, ढ़ाई कोस पर वाणी", और यही हमारे देश का सम्पूर्ण दर्शन भी है, विविधिता में एकता का दर्शन भी है। विश्व के लिए ऐतिहासिक, आध्यात्मिक और प्राकृतिक धरोहरों का एक समग्र भण्डारण है हमारा देश। भारत के मध्य, मतलब ह्रदय स्थल पर स्थित मध्यप्रदेश को हिंदुस्तान का दिल कहा जाता है। हिंदुस्तान की यह ह्रदय-स्थली अपने आँचल में अनेकों आध्यात्मिक धरोहरों को समेटे हुए है। आत्मदर्शन और जीवन के उज्जवल पथ के निर्माण के लिए आध्यात्मिक विरासतों का केंद्र है मध्यप्रदेश। यहां के रमणीय प्राकृतिक वन, जहाँ ना जाने कितने ही महान साधु-संत आज भी जन-कल्याण और आत्मदर्शन के उद्देश्य से हज़ारों-सैकड़ों वर्षों से तपस्या कर रहे हैं, ऐसे अनमोल स्थलों का समागम है मध्यप्रदेश। स्वयं को स्वयं तक की यात्रा का आध्यात्मिक प्रदेश है मध्यप्रदेश।

मध्यप्रदेश आध्यात्मिक पर्यटन का प्रदेश है,

मानसिक एवं आत्मिक शांति का परिवेश है।

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