प्राचीन इतिहास से रूबरू होने के लिए देश की इन जगहों की जरूर करें सैर

कर्नाटक राज्य के हासन जिले में श्रवणबेलगोला है। यह जगह अति पावन है। जैन धर्म के अनुयायियों के लिए श्रवणबेलगोला मक्का-मदीना के समतुल्य है। इस स्थान पर चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने जीवन की अंतिम सांस ली। इसका जिक्र जैन धर्मग्रंथों में है।

By Pravin KumarEdited By: Publish:Fri, 27 Aug 2021 03:53 PM (IST) Updated:Fri, 27 Aug 2021 10:19 PM (IST)
प्राचीन इतिहास से रूबरू होने के लिए देश की इन जगहों की जरूर करें सैर
जैन धर्म के अनुयायियों के लिए श्रवणबेलगोला मक्का-मदीना के समतुल्य है।

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। भारत के इतिहास को तीन भागों में बांटा गया है। इनमें पहले भाग को प्राचीन भारत कहा जाता है। प्राचीन भारत की शौर्यगाथा इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों से लिखा है। इतिहासकारों की मानें तो चन्द्रगुप्त मौर्य के शौर्य की चर्चा आज भी पूरी दुनिया में है। तत्कालीन समय में जैन और बौद्ध धर्म का उद्भव हुआ था। मौर्य साम्राज्य जैन और बौद्ध दोनों धर्म के अनुयायी थे। जहां, चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में जैन धर्म को अपना लिया था। वहीं, सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था। बौद्ध धर्म को देश से बाहर पहुंचाने का श्रेय सम्राट अशोक को जाता है। उन्होंने अपने बेटे और बेटी को बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए श्रीलंका समेत कई अन्य देशों में भेजा था कई इतिहासकार मौर्य शासकों की तुलना योद्धा मैक्सिमस से करते हैं। वर्तमान समय में प्राचीन भारत का वर्णन केवल पुस्तकों में निहित है। अगर आप सजीव रूप में प्राचीन इतिहास से रूबरू होना चाहते हैं, तो देश की इन जगहों की सैर जरूर करें। आइए जानते हैं-

सुदर्शन झील

यह झील गुजरात राज्य के गिरनार में स्थित है। इस झील का निर्माण चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन काल में हुआ है। इतिहासकारों की मानें तो मौर्य सम्राज्य उत्तर-पश्चिम तक फैला हुआ था। उस समय मौर्य सम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त के कहने पर उनके राज्यपाल पुष्यगुप्त ने सुदर्शन झील का निर्माण करवाया था। हालांकि, सम्राट अशोक के शासन काल में झील का पुर्ननिर्माण करवाया गया था। इस झील का निर्माण प्रजा की भलाई के लिए किया गया था। 'गिरनार अभिलेख' में इसका उल्लेख है। आप प्राचीन इतिहास को देखने के लिए गिरनार जरूर जाएं।

श्रवणबेलगोला

कर्नाटक राज्य के हासन जिले में श्रवणबेलगोला है। यह जगह अति पावन है। जैन धर्म के अनुयायियों के लिए श्रवणबेलगोला मक्का-मदीना के समतुल्य है। इस स्थान पर चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने जीवन की अंतिम सांस ली। इसका जिक्र जैन धर्मग्रंथों में है। तमिल ग्रंथ मुरनानूर और अहनानूर में भी चन्द्रगुप्त मौर्य के शौर्य की चर्चा है। काफी संख्या में पर्यटक श्रवणबेलगोला आते हैं। खासकर जैन धर्म को मानने वाले लोग अधिक जाते हैं। जब कभी मौका मिले, तो एक बार श्रवणबेलगोला जरूर जाएं।

कलिंग, धौली

ओड़िशा की राजधानी भुवनेश्वर से महज 8 किलोमीटर दूरी पर धौली स्थित है। इतिहासकारों की मानें तो संभवत दया नदी के तट पर कलिंग का युद्ध हुआ था। इस युद्ध में सम्राट अशोक की विजय हुई थी, लेकिन उनके हृदय परिवर्तन के चलते मौर्य शासन का आगे चलकर पतन हुआ था। इस युद्ध में तकरीबन 1 लाख लोगों की मौत हुई थी। कलिंग युद्ध सम्राट अशोक के जीवनकाल की अंतिम लड़ाई थी। इस युद्ध के बाद सम्राट अशोक ने शस्त्र न उठाने की कसम खाई। साथ ही बौद्ध धर्म भी अपना लिया। हर साल धौली शांति स्तूप में कलिंग महोत्सव मनाया जाता है। इस महोत्सव का मकसद शांति स्थापित करना है। प्राचीन इतिहास से रूबरू होने के लिए एक बार कलिंग जरूर जाएं।

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