कैलेंडर से पुराना है खीर का इतिहास, कहीं पायसम तो कहीं फिरनी नाम है मशहूर

भारतीय जायके में शामिल खीर स्वाद में जितनी अलग होती है उतना ही अलग है इसका इतिहास भी। चावल और चीनी से बनने वाली डिश का नाम शहर और देश बदलते ही बदलता जाता है। जानेंगे ऐसी ही रोचक बातें।

By Priyanka SinghEdited By: Publish:Fri, 16 Nov 2018 12:10 PM (IST) Updated:Fri, 16 Nov 2018 12:10 PM (IST)
कैलेंडर से पुराना है खीर का इतिहास, कहीं पायसम तो कहीं फिरनी नाम है मशहूर
कैलेंडर से पुराना है खीर का इतिहास, कहीं पायसम तो कहीं फिरनी नाम है मशहूर

भारतीय खानपान में खीर का इतिहास काफी पुराना है। त्योहारों, पूजा-पाठ में जहां इसे भोग के रूप में भगवान को चढ़ाया जाता है वहीं खाने के बाद मीठे के तौर पर खीर ही सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली डिश है। सबसे खास बात है कि आज भी इसे बनाने का तरीके में कोई बदलाव नहीं आया है। हां एक्सपेरिमेंट जरूरी ज़ारी है।

हजारों साल पुराना है खीर का इतिहास

खीरे के बारे में जानना हो तो 400 ईसा पूर्व के बौद्ध और जैन ग्रंथों को पढ़ें। इसके अलावा आयुर्वेद ग्रंथों में भी खीर का ज़िक्र है। और महज स्वाद के लिए ही नहीं सेहत के लिए भी बहुत ही फायदेमंद है खीर। कहा जाता है कि खीर का इतिहास कैलेंडर से भी पुराना है। संस्कृत के क्षीर शब्द से खीर बना है जिसका मतलब होता है दूध। उत्तर भारत की खीर दक्षिण भारत में जाते-जाते पायसम में बदल जाती है। बस फर्क इतना होता है कि यहां इसमें चीनी की जगह गुड़ डाला जाता है।

हर किसी को लुभाता है खीर का स्वाद

खीर की लोकप्रियता रोम और फारस तक में फैली है। कहते हैं रोमवासी तो पेट को ठंडक पहुंचाने के लिए खीर खाते थे। अलग-अलग जगहों पर इसे हल्के-फुल्के बदलावों के साथ बनाया जाता है। पर्शिया में खीर को फिरनी नाम से जाना जाता है। जिसमें गुलाबजल से लेकर सूखे मेवे का इस्तेमाल होता है वहीं चीन में इस डिश को शहद में डुबोए हुए फलों के साथ सजाकर सर्व किया जाता है।

केरल में प्रसाद के रूप में बंटती है खीर

केरल में खीर पायसम नाम से मशहूर है। जो मंदिरों में प्रसाद के रूप में बांटी जाती है खासतौर से केरल के अम्बालप्पुझा मंदिर में। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एक बार भगवान कृष्ण साधु का रूप धारण कर आए और यहां के राजा को शतरंज में चुनौती दी। उनकी शर्त थी कि जीतने पर राजा को उन्हें शतरंज के पहले वर्ग पर एक चावल का दाना, दूसरे पर दो, तीसरे पर चार इसी तरह गुणनफल में चावल देने होंगे। राजा ने शर्त मान ली। राजा हारे और शर्तानुसार साधु को चावल देने लगे। लेकिन कुछ ही देर में उन्हें समझ आ गया कि इतने चावल देना उनके बस की बात नहीं। तब भगवान कृष्ण ने अपना असली रूप धारण किया और कहा कि आप ऋण चुकाने के जगह यहां आने वाले हर भक्त को पायसम का प्रसाद बांटे। बस तभी से यहां खीर (पायसम) को रूप में प्रसाद के रूप में बांटा जा रहा है।  

chat bot
आपका साथी