रिश्ते को बिखरने से बचाने के लिए यहां दिए जा रहे सुझाव आ सकते हैं आपके काम
पति-पत्नी के बीच अहं का भाव दांपत्य संबंधों को नुकसान पहुंचाता है। रिश्ते की लंबी उम्र के लिए इस पर नियंत्रण और परिपक्व व्यवहार बेहद ज़रूरी है। यहां हम आपको ऐसे ही कुछ टिप्स बताने जा रहे हैं।
लव मैरिज हो या अरेंज़, जब पति-पत्नी बात-बात पर खुद को श्रेष्ठ और दूसरे को कमतर दिखाने की कोशिश करते है, खुद को सही साबित करने के लिए दूसरे को ब्लेम करने से नहीं चूकते तो बात बिगड़ने लगती है। रिश्ते की लंबी उम्र के लिए पति-पत्नी के बीच आपसी विश्वास और परिपक्व व्यवहार बेहद ज़रूरी है। रिश्ते को बिखरने से बचाने के लिए यहां दिए जा रहे सुझाव मददगार हो सकते हैं:
नकारात्मक शब्दों से परहेज
कभी-कभी छोटी-सी बात सामने वाले को अंदर तक हिला देती है और गुस्से में वहां ऐसे शब्द बोल बैठता है, जो रिश्ते को नुकसान पहुंचाते है। जैसे एक दिन गुस्से में बड़बड़ाते हुए अनंत ने अनीता को तलाक की धमकी दे डाली। इससे दोनों के बीच तनाव तो बढ़ा ही है, अनीता असुरक्षित भी महसूस करने लगी। उसे लगा कि अनंत की नज़रों में उसकी कोई अहमियत नहीं है। बस, समाज को दिखाने के लिए वह इस रिश्ते को निभा रही है। उस दिन के बाद से दोनों के बीच संवाद बंद हो गया और मतभेद धीरे-धीरे मनभेद का रूप ले बैठा। इसलिए बातचीत के दौरान अपने शब्दों पर गौर करें। अगर किसी संवेदनशील मसले पर बात हो रही हो, तो मुद्दे पर आने से पहले सावधानी से शुरुआती शब्द चुनें।
उपेक्षाभाव से बचें
परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों, पार्टनर से बातचीत बंद न करें। चूंकि एक पार्टनर अगर चुप्पी साध लेगा, कई दिनों तक दूसरे से बात नहीं करेगा या उसे नजरअंदाज करता रहेगा तो दूसरा पार्टनर कुंठित होगा ही। इससे समस्या और उलझ जाएगी। इसलिए तमाम दिक्कत-परेशानियों के बावज़ूद पार्टनर के लिए समय निकालें और उस दौरान समस्त नाराज़गियां साझा करें। इससे नाजुक मोड़ पर खड़े रिश्ते को संभालने में मदद मिलेगी।
कुछ ज़रूरी बातें
- दांपत्य में पति-पत्नी दोनों का अपना-अपना महत्व है, लेकिन जब दोनों में से कोई दूसरे पर हावी होने की कोशिश करता है तो दिक्कत आती है। इससे बचने के लिए एक-दूसरे के विचारों और इच्छाओं का सम्मान ज़रूरी है।
- वाद-विवाद के दौरान कभी भी पार्टनर को अपने से कमतर दिखाने की कोशिश न करें। न ही उनकी कमज़ोरियों और नाकामियों पर तंज करें। इस तरहï की बातें मन को विचलित करती है।
(डॉ. ज्योति कपूर, सीनियर साइकिएट्रिस्ट एंड फाउंडर, मन:स्थली, नई दिल्ली और काउंसलर प्रांजलि मल्होत्रा के इनपुट्स पर आधारित)
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