Diwali 2019: चीन में रसोइए की गलती से हुआ था पटाखों का आविष्कार, जानें ऐसी ही कुछ और दिलचस्प बातें

Diwali 2019 पटाखों से पर्यावरण को होने वाले नुकसान के कारण इको-फ्रेंडली दीपावली मनाने पर जोर दिया जा रहा है। तो आखिर कैसे हुआ पटाखे का आविष्कार जानें इससे जुड़ी दिलचस्प बातें।

By Priyanka SinghEdited By: Publish:Fri, 25 Oct 2019 09:10 AM (IST) Updated:Sun, 27 Oct 2019 08:00 AM (IST)
Diwali 2019: चीन में रसोइए की गलती से हुआ था पटाखों का आविष्कार, जानें ऐसी ही कुछ और दिलचस्प बातें
Diwali 2019: चीन में रसोइए की गलती से हुआ था पटाखों का आविष्कार, जानें ऐसी ही कुछ और दिलचस्प बातें

दिवाली मतलब पटाखें और बच्चों की दीवाली तो बिन पटाखों के पूरी ही नहीं हो सकती। हालांकि अगर पौराणिक कथाओं की मानें, तो पहले दीवाली पर पटाखे जलाने की परंपरा नहीं थी। बताते हैं कि पटाखों का आविष्कार चीन में हुआ था। वह भी दुर्घटनावश। कहा जाता है कि चीन के एक शहर में एक रसोइए ने गलती से सॉल्टपीटर (पोटैशियम नाइट्रेट) आग पर डाल दिया था, जिसके कारण आग के कलर में परिवर्तन हुआ और उसे देखकर लोगों के अंदर उत्सुकता पैदा हुई। उसके बाद उस रसोइए ने आग में कोयले और सल्फर का मिश्रण डाला, जिससे काफी तेज आवाज के साथ रंगीन लपटें उठने लगीं। यहीं से आतिशबाजी यानी पटाखों की शुरुआत हुई।

दिवाली में पटाखे जलाने की शुरुआत

हालांकि भारत में दीवाली पर पटाखे जलाने की शुरुआत कब से हुई, इसकी स्पष्ट जानकारी नहीं है। देश में 20वीं शताब्दी की शुरुआत में पटाखों का कारोबार पहली बार शुरू हुआ था। यह कारोबार शुरू करने वाले थे पी अय्या नादर और उनके भाई शनमुगा नादर। दरअसल,1923 में इन दोनों भाइयों ने कोलकाता से माचिस बनाने की ट्रेनिंग ली और फिर अपने शहर शिवकाशी (तमिलनाडु) में माचिस बनाने की फैक्ट्री खोली। देखते ही देखते माचिस की यह छोटी-सी कंपनी पटाखों की बड़ी फैक्ट्री में तब्दील हो गई। देश 90 फीसदी पटाखों का कारोबार शिवकाशी से ही होता रहा है, जिसके चलते इस शहर को पटाखों का शहर भी कहा जाने लगा। हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश से केवल ग्रीन पटाखे ही जलाए जा सकते हैं। कोर्ट ने पिछले साल दीवाली के मौके पर इसका जिक्र किया था।

ग्रीन पटाखे

दोस्तो, इन ग्रीन पटाखों की खोज राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) ने की है। दुनियाभर में इन्हें प्रदूषण से निपटने के एक बेहतर तरीके की तरह देखा जा रहा है। ये पटाखे पारंपरिक पटाखों जैसे ही होते हैं, लेकिन इनके जलने से 50 फीसदी तक कम प्रदूषण होता है। नीरी के मुताबिक ग्रीन पटाखे मुख्य तौर पर तीन तरह के होते हैं। एक जलने के साथ पानी पैदा करते हैं, जिससे सल्फर और नाइट्रोजन जैसी हानिकारक गैसें इन्हीं में घुल जाती हैं। इन्हें सेफ वॉटर रिलीजर भी कहा जाता है। दूसरी तरह के पटाखे, स्टार क्रैकर के नाम से जाने जाते हैं और ये सामान्य से कम सल्फौर नाइट्रोजन पैदा करते हैं। इनमें एल्युमिनियम का इस्तेमाल कम से कम किया जाता है। तीसरी तरह के अरोमा क्रैकर्स हैं जो कम प्रदूषण के साथ-साथ खुशबू भी पैदा करते हैं। 

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