World Hemophilia Day: एक्सपर्ट से जानें हीमोफीलिया के कारण, लक्षण, बचाव एवं उपचार

यह आनुवंशिकता से जुड़ी ऐसी समस्या है जिसके लक्षणों की पहचान मुश्किल होती है। लोगों को इसके प्रति जागरूक बनाने के उद्देश्य से 17 अप्रैल को वर्ल्ड हीमोफीलिया डे घोषित किया गया है। इसके बारे में पूरी जानकारी के लिए पढ़ें यह लेख।

By Priyanka SinghEdited By: Publish:Sat, 17 Apr 2021 07:31 AM (IST) Updated:Sat, 17 Apr 2021 12:23 PM (IST)
World Hemophilia Day: एक्सपर्ट से जानें हीमोफीलिया के कारण, लक्षण, बचाव एवं उपचार
world hemophilia day की एक खूबसूरत तस्वीर

अपने आसपास आपने कुछ लोगों को जरूर देखा होगा, जो अक्सर यह शिकायत करते हैं कि अगर कभी चोट लग जाए तो उन्हें इतनी ज्यादा ब्लीडिंग होती है कि उसे रोकने में बहुत परेशानी होती है। सभी को चोट लगती है, पर उसके साथ ही खून जमने की स्वाभाविक प्रक्रिया भी शुरू हो जाती है, जिससे कुछ देर के बाद ब्लीडिंग बंद हो जाती है।

क्या है मर्ज

दरअसल, हमारे ब्लड में क्लॉटिंग फैक्टर नामक प्रोटीन मौजूद होता है और चोट जैसी आकस्मिक स्थिति में वह सक्रिय हो जाता है, जिससे खून का बहना थम जाता है। इसके अलावा थ्रम्बोप्लास्टिन नामक प्लेटलेट की कमी होने पर भी, काटने, चोट लगने, कोई अंदरूनी हैमरेज या सर्जरी होने पर शरीरके प्रभावित हिस्से से खून का बहना जारी रहता है और ऐसी ही मेडिकल कंडीशन को हीमोफीलिया कहा जाता है। कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि यह बच्चों की सेहत से जुड़ी समस्या है, पर वास्तव में ऐसा नहीं है। यह आनुवंशिक समस्या किसी को भी हो सकती है। इसका कोई विशेष लक्षण नहीं होता, किसी चोट या सर्जरी के दौरान जब ब्लीडिंग रुकने में दिक्कत आती है, तभी इसकी पहचान हो पाती है। चूंकि खेलकूद के दौरान बच्चों को अक्सर चोट लगती रहती है, ऐसी स्थिति में जब किसी बच्चे की ब्लीडिंग नहीं रूकती तो जांच के बाद बचपन में ही हीमोफीलिया की पहचान हो जाती है। इसी वजह से लोगों को ऐसा लगता है कि यह बच्चों से जुड़ा मर्ज है। किसी सर्जरी से पहले डॉक्टर इसकी जांच अवश्य करते हैं और जिन्हें ऐसी समस्या होती है, पहले दवाएं देकर उनके ब्लड में क्लॉटिंग फैक्टर की मात्रा बढ़ाने की कोशिश की जाती है।

प्रमुख लक्षण

- चोट लगने पर ब्लीडिंग न रुकना

- जोड़ों में अक्सर दर्द

- शरीर के किसी भी हिस्से में अचानक सूजन होना

- यूरिन या स्टूल के साथ ब्लड आना

- शरीर पर नीले रंग के चकत्ते

- नाक से ब्लीडिंग

- दांतों या मसूड़ों से ब्लड आना

- थकान और कमजोरी महसूस होना

बचाव एवं उपचार 

यह आनुवंशिकता से जुड़ी जन्मजात समस्या है, इसलिए जन्म के तुरंत बाद शिशु के गर्भनाल से निकलने वाले ब्लड की जांच करके यह मालूम किया जा सकता है कि नवजात शिशु को यह समस्या है या नहीं? अगर किसी परिवार में इस बीमारी की फैमिली हिस्ट्री रही हो तो प्रेग्नेंसी की प्लैनिंग से पहले पति-पत्नी दोनों को इसकी जांच अवश्य करानी चाहिए, अगर रिपोर्ट पॉजिटिव हो तो उपचार के बाद ही पारिवारिक जीवन की शुरुआत करनी चाहिए। स्त्री-रोग विशेषज्ञ को भी समस्या से जुड़ी फैमिली हिस्ट्री के बारे में जानकारी जरूर देनी चाहिए, जिससे नॉर्मल डिलिवरी के समय इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखा जाए कि शिशु को चोट न लगे, वरना उसके शरीर से अनियंत्रित ब्लीडिंग हो सकती है। इसके उपचार के लिए खास तरह का इंजेक्शन लगाया जाता है। अगर सही समय पर पहचान हो जाए तो इस समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है।

(डॉ. राहुल भार्गव, डायरेक्टर डिपार्टमेंट ऑफ क्लीनिकल हेमेटोलॉजी एंड बोनमैरो ट्रांसप्लांट, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम) 

Pic credit- freepik

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