100 करोड़ टीकाकरण : वैक्सीन आत्मनिर्भरता से खुले अन्य कई बीमारियों की वैक्सीन बनाने के रास्ते: डॉ. रेणु स्वरूप

जागरण ने बात की डॉ. रेणु स्वरूप से जो भारत सरकार के बायोतकनीकि विभाग की सचिव हैं। उन्होंने बातचीत में बताया कि भारत के लिए 100 करोड़ का आंकड़ा हासिल करने का क्या मतलब है और देश को वैक्सीन बनाने के लिए किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

By Ruhee ParvezEdited By: Publish:Thu, 21 Oct 2021 07:08 PM (IST) Updated:Thu, 21 Oct 2021 08:02 PM (IST)
100 करोड़ टीकाकरण : वैक्सीन आत्मनिर्भरता से खुले अन्य कई बीमारियों की वैक्सीन बनाने के रास्ते: डॉ. रेणु स्वरूप
वैक्सीन आत्मनिर्भरता से खुले अन्य कई बीमारियों की वैक्सीन बनाने के रास्ते'

नई दिल्ली, Pratyush Ranjan। भारत ने 100 करोड़ लोगों का टीकाकरण करके एक ऐतिहासिक सफलता हासिल की है। विज्ञान के इतिहास में ऐसा पहली हुआ जब इतने कम समय में बड़ी संख्या में नई वैक्सीन न सिर्फ विकसित की गई, बल्कि उनका परीक्षण किया गया, जांच की गई और लाखों की संख्या में लोगों को लगाई भी गईं। जागरण ने बात की डॉ. रेणु स्वरूप से जो भारत सरकार के बायोतकनीकि विभाग की सचिव हैं। डॉ. स्वरूप ने बातचीत में बताया कि भारत के लिए 100 करोड़ का आंकड़ा हासिल करने का क्या मतलब है और देश को वैक्सीन बनाने के लिए किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

सवाल- देश के लिए 100 करोड़ टीकाकरण का क्या मतलब है?

जवाब- यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जिसे न सिर्फ देश में बल्कि विश्व स्तर पर भी मान्यता हासिल हुई है। इससे हमें इस बात का आत्मविश्वास मिला है कि हम पब्लिक स्वास्थ्य में आने वाली किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार हैं। हम रोजाना लगभग एक करोड़ लोगों का टीकाकरण कर रहे हैं, जो कि आसान नहीं है, देश की आबादी को देखते हुए, मैं आपूर्ति चेन, संसाधन और मानवीय श्रम को बधाई देना चाहती हूं, जिन्होंने इसे संभव बनाया। महामारी को नियंत्रित करने के लिए टीकाकरण एक अहम उपाय है, लेकिन इसके साथ ही कोविड अनुरूप व्यवहार का पालन करना भी जरूरी है, और मुझे लगता है कि सभी नागरिकों को इसके लिए अपना योगदान देना चाहिए कि वह इस तरह का वातावरण न बनाएं जो वायरस को दोबारा पनपने या बढ़ने का अवसर दे।

सवाल- भारत हमेशा से ही टीकों के संदर्भ में बड़े उत्पादक के रूप में जाना जाता रहा है, वैक्सीन को विकसित करने के लिए भारत को क्या करना पड़ा?

जवाब- वैक्सीन विकसित करने का सफर काफी महत्वपूर्ण रहा, जिसके लिए सभी शोधकर्ता, शैक्षणिक संस्थाान, उद्योग और स्टार्ट अप एक मंच पर आए। हमने शिक्षा और उद्योग के बीच की सीमाओं को तोड़ते हुए ज्ञान और विचारों की बुनियादी जानकारियों को एक साथ साझा किया, और इसका परिणाम आज सबके सामने है। हमने स्वदेशी कोवैक्सिन को विकसित किया, इसके साथ ही कोविशील्ड का उत्पादन शुरू किया गया, जिसके कारण कोविड टीकाकरण अभियान शुरू हो सका। हमें देश की पहली डीएनए आधारिक वैक्सीन के इमरजेंसी प्रयोग की अनुमति हासिल हुई, जल्द ही हमें बायोलॉजिकल ई-वैक्सीन उपलब्ध हो जाएगी। इसके साथ ही एक अन्य एमआरएनए वैक्सीन का भी दूसरे चरण का परीक्षण शुरू कर दिया गया है, हमें विश्वास है कि वैज्ञानिक कौशल और उपलब्ध बुनियादी ढांचे के साथ हम कोविड-19 के अलावा भी कई नए टीके विकसित कर सकते हैं।

सवाल- जैसा कि हम सभी जानते हैं कि कोविड-19 वैक्सीन को बहुत ही कम समय में विकसित किया गया और उन्हें इमरजेंसी यूज आर्थराइजेशन दिया गया है, ऐसे में वैक्सीन की गुणवत्ता और सुरक्षा को लेकर किस तरह आश्वस्त किया गया?

जवाब- वैक्सीन को भले ही कम समय में जारी किया गया है, लेकिन इसकी गुणवत्ता और सुरक्षा को लेकर किसी तरह का समझौता नहीं किया गया है। इसके लिए हमारे पास दूसरे और तीसरे चरण के परीक्षण की सुरक्षा और गुणवत्ता डाटा हैं। इस संदर्भ में टीकाकरण के बाद वैक्सीन की प्रभावकारिता और नए वेरिएंट पर इनका प्रभाव जानने के लिए कई अध्ययन किए जा रहे हैं। हमें संक्रमण के प्रकार, दोबारा संक्रमण होने आदि का पता लगाने के लिए भी डाटा प्राप्त हो रहे हैं, और यह हमें विश्वास दिलाता है कि वैक्सीन प्रभावी है और सुरक्षित भी। डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट सहित देशभर के विभिन्न संस्थान वैक्सीन के दीर्घकालीन प्रभावों को जानने के लिए अध्ययन कर रहे हैं।

सवाल- वैक्सीन विकास के विभिन्न चरणों के दौरान देश को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा और उन्हें कैसे दूर किया गया?

जवाब- वैक्सीन बनाना एक चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है। हमें वैक्सीन बनाने के लिए वैज्ञानिक और तकनीकि क्षेत्र में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसका सामना हर वैज्ञानिक शोधकर्ता को करना पड़ता है। हम एक साथ पांच से छह वैक्सीन को विकसित करने के बारे में विचार कर रहे थे, हमारी चुनौती मांग के अनुसार पर्याप्त शोध को पूरा करने की थी।

वास्तव में भारत उन प्रमुख देशों में से एक था जिसने फरवरी 2020 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की हुई बैठक में यूएस और यूके जैसे विकसित देशों की तरह ही बीमारी से लड़ने का रोडमैप तैयार कर लिया था। हमने वैक्सीन को ताकत के रूप में पहचान लिया था। भारत सरकार ने नई वैक्सीन को विकसित करने के लिए आर्थिक सहायता की, जिसकी वजह से उद्योगों को भी एनआरएन और डीएनए वैक्सीन पर काम करने के लिए आत्मविश्वास मिला।

इसके साथ ही हमने वैक्सीन निर्माण की कमियों की भी पहचान की, हमें अतिरिक्त पशु सुविधाओं, इम्यून एस्से लैबोरेटरी और क्लीनिकल ट्रायल सुविधाओं की जरूरत थी। इन सभी कमियों को हमने शीघ्र ही पूरा कर लिया।

आज हमारे पास 54 क्लीनिकल परीक्षण साइट्स, चार एनिमल या पशु परीक्षण सुविधा हैं, हमारे शोधकर्ताओं को अब संसाधन जुटाने के लिए विदेशों पर आश्रित होने की जरूरत नहीं है। हमारे पास देश में ही शोध संबंधी सभी संसाधन उपलब्ध हैं इसलिए यह कहा जा सकता है कि यह रणनीति के तहत किया गया सोचा समझा प्रयास रहा।

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