विश्व तंबाकू निषेध दिवस आज, जागरूकता की मुंह दिखाई

दो माह से जारी लॉकडाउन ने न सिर्फ कोविड-19 से सुरक्षित रहने में मदद की बल्कि यह भी सिखा दिया कि आखिर हमें जीवन किस तरह बिताना होगा।

By Ruhee ParvezEdited By: Publish:Sun, 31 May 2020 09:28 AM (IST) Updated:Sun, 31 May 2020 09:28 AM (IST)
विश्व तंबाकू निषेध दिवस आज, जागरूकता की मुंह दिखाई
विश्व तंबाकू निषेध दिवस आज, जागरूकता की मुंह दिखाई

लॉकडाउन का यह समय उनके लिए बहुत लाभदायक सिद्ध हुआ, जो तंबाकू का सेवन करना छोड़ना चाहते थे। बेहतर होगा कि हम इस दौर से मिली सीखों को समझें और इससे मिली अच्छी आदतों को यूं ही बनाए रखें...

कई बार मुश्किलें भी हमें संभलकर जीने की नसीहत दे जाती हैं। दो माह से जारी लॉकडाउन ने न सिर्फ कोविड-19 से सुरक्षित रहने में मदद की बल्कि यह भी सिखा दिया कि आखिर हमें जीवन किस तरह बिताना होगा। 

दो दिन पहले अमेरिका से मेरे एक काफी पुराने मरीज का फोन आया। उसने मेरा हाल-खबर लेने के साथ ही अपने भले-चंगे होने के बारे में बताया। यह फोन कॉल एक बार फिर मुझे सुखद क्षणों की अनुभूति दे गई। जब आप किसी अच्छे काम को पूरा करने में सफल हो जाते हैं तो वह आपकी खुशियों के खजाने में ताउम्र सुरक्षित हो जाता है।

हर वर्ष मई माह के अंतिम सप्ताह में किसी भी दिन फोन, ग्रीटिंग या मैसेज के माध्यम से मुझे याद करने वाले ये वे भारतीय छात्र हैं, जो आज विदेश में वैज्ञानिक और इंजीनियर हैं। मुझे याद है कि आइआइटी और एचबीटीआई में पढ़ाई के दौरान ये कभी मेरे पास धूमपान और तंबाकू से तौबा करने के लिए आए थे। इनकी परेशानी यह थी कि हॉस्टल में दोस्तों के साथ रहते हुए ये निकोटीन के सेवन के इतने आदी हो चुके थे कि इन्हें लगने लगा था कि अब इसके चंगुल से निकल पाना मुश्किल है लेकिन सुखद रहा कि वे इससे मुक्ति पाने में सफल रहे। 

तंबाकू निषेध दिवस की शुरुआत 1987 में हुई थी। उन दिनों मैं जे. के. कैंसर संस्थान, कानपुर में असिस्टेंट प्रोफेसर था। यह वह दौर था, जब लोगों को तंबाकू के दुष्परिणाम के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं थी। हमारे संस्थान ने रोटरी क्लब के साथ मिलकर तंबाकू निषेध दिवस का आयोजन किया था। तंबाकू निषेध दिवस मनाए जाने का आशातीत लाभ भी मिला और मेरा मानना है कि भारत में कैंसर की लड़ाई में यह मुहिम कारगर हथियार साबित हुई। हालांकि अभी भारत में तंबाकू व धूमपान से होने वाले कैंसर रोगियों का आंकड़ा 275 लाख के करीब है लेकिन अच्छी बात यह भी है कि आज निकोटीन का किसी भी माध्यम से सेवन करने वाला व्यक्ति यह जान चुका है कि यह कैंसर होने का बड़ा कारण है। बाद में संस्थान में बतौर निदेशक कार्य करते हुए मैंने पाया कि इसका सबसे बड़ा उपचार जागरूकता ही है इसीलिए सेवानिवृत्त होने के बाद मैंने मळ्ख कैंसर के खिलाफ ‘मुंह दिखाई’ कार्यक्रम की शुरुआत की जो आज भी जारी है। 

मैंने निकोटीन के मनोवैज्ञानिक पहलू पर लंबे समय तक रिसर्च की तो नतीजा आया कि तंबाकू हमें शारीरिक ही नहीं, मानसिक तौर पर भी कमजोर बनाता है। लॉकडाउन का यह समय उनके लिए बहुत लाभदायक सिद्ध हुआ, जो तंबाकू का सेवन करना छोड़ना चाहते थे। घर में रहते हुए वे धूमपान और तंबाकू के सेवन को अलविदा कह चुके हैं। आज कोविड-19 से संक्रमण की लड़ाई में पहला हथियार इम्युनिटी है और इस बात को पूरा स्वास्थ्य जगत स्वीकार कर चुका है कि कोरोना ही नहीं हर बीमारी से बचने के लिए हमें अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को कायम रखना है। तंबाकू के सेवन का सबसे बड़ा नकारात्मक पहलू यह है कि कैंसर के खतरे के साथ ही यह इम्युनिटी को बुरी तरह प्रभावित करती है। ऐसे में इस लत को दूर करने में यह वक्त रामबाण साबित हुआ। 

तंबाकू की लत से पीछा छुड़ाने के लिए हमें सबसे पहले अपनी इच्छाशक्ति मजबूत करनी होगी। दरअसल हम अधिसंख्य बीमारियों को दावत खुद ही देते हैं। कुदरत ने हमारे लिए क्या उपयुक्त है और क्या अनुपयुक्त है, यह सब सुनिश्चित कर रखा है लेकिन हम इसे मानते कहां हैं। 

हमें यह स्वीकारना होगा कि प्रकृति के प्रतिकूल चलेंगे तो इस तरह की महामारियों से दो-चार होना ही पडे़गा, इसीलिए निवेदन है कि तंबाकू छोड़ें और कैंसर के साथ ही कोरोना संक्रमण से भी बचाव सुनिश्चित करें!

-डॉ. अवधेश दीक्षित

(लेखक मुख कैंसर तथा तंबाकू निषेध जागरूकता मुहिम से जुड़े हुए हैं।)

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