COVID - 19 Vaccine: जानें, वैक्सीन का ट्रायल इंसानों पर कैसे और कितने दिनों में किया जाता है

Coronavirus Vaccine अगर इतिहास के पन्नों को पलटें तो पता चलता है कि mumps के लिए सबसे तेज़ी से वैक्सीन तैयार की गई थी। इस वैक्सीन को तैयार करने में चार साल लगे थे।

By Umanath SinghEdited By: Publish:Mon, 06 Jul 2020 03:11 PM (IST) Updated:Mon, 06 Jul 2020 03:11 PM (IST)
COVID - 19 Vaccine: जानें, वैक्सीन का ट्रायल इंसानों पर कैसे और कितने दिनों में किया जाता है
COVID - 19 Vaccine: जानें, वैक्सीन का ट्रायल इंसानों पर कैसे और कितने दिनों में किया जाता है

दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Coronavirus Vaccine:कोरोना महामारी के बीच विज्ञान एवं तकनीक मंत्रालय से एक सुखद समाचार मिल रहा है। खबरों की मानें तो भारतीय दवा महानियंत्रक (डीजीसीआइ) ने कोरोना वायरस वैक्सीन कोवाक्सिन और जायकोव-डी के ह्यूमन ट्रायल को मंजूरी दे दी है। इससे लोगों में उम्मीद की किरण जाग गई है। इस बारे में विज्ञान एवं तकनीक मंत्रालय पर छपी लेख में दावा किया गया है कि इस वैक्सीन से कोरोना वायरस को जड़ से मिटाया जा सकता है। आइए, जानते हैं कि वैक्सीन का इंसानों पर कैसे ट्रायल किया जाता है और इसमें कितना वक्त लग जाता है-

 Mumps वैक्सीन तैयार करने में चार साल लगे थे

वैक्सीन ट्रायल में लंबा वक्त लगता है, लेकिन अगर आपातकालीन दिशा-निर्देश जारी किए जाते हैं तो शोध में तेज़ी आ जाती है। अगर इतिहास के पन्नों को पलटें तो पता चलता है कि mumps के लिए सबसे तेज़ी से वैक्सीन तैयार की गई थी। इस वैक्सीन को तैयार करने में चार साल लगे थे। किसी वैक्सीन के बनने और ह्यूमन ट्रायल के लिए पहले आर एंड डी (रिसर्च एंड डेवपलमेंट) की जाती है।

जब आर एंड डी प्रक्रिया पूरी हो जाती है, तो बनाए गए वैक्सीन की जांच जानवरों और पौधों पर की जाती है। इसमें यह जानने की कोशिश की जाती है कि वैक्सीन किस तरह काम करता है और इसके परिणाम कैसे आ सकते हैं। अगर वैक्सीन की प्रतिक्रिया नकारात्मक रहती है तो फिर यह लंबे वक्त के लिए शोध का विषय बन जाता है।

जबकि सकारात्मक रहने पर वैक्सीन को क्लीनिकल ट्रायल के लिए भेजा जाता है। अगले स्टेज में वैक्सीन का ट्रायल इंसानों पर किया जाता है। इसमें पांच से सात वर्ष लग जाते हैं। जबकि ट्रायल की प्रक्रिया तीव्र होने पर भी कम से कम एक से डेढ़ साल का वक्त लग जाता है।

ह्यूमन ट्रायल के तीन स्टेज होते हैं- 

पहले चरण में वैक्सीन का इस्तेमाल चयनित समूह के गिने चुने लोगों पर किया जाता है। वैक्सीन के जरिए व्यक्ति के शरीर में एंटीबॉडी तैयार किया जाता है। इस प्रक्रिया में 90 दिन लग जाते हैं।

जबकि दूसरे चरण में अधिक लोगों पर वैक्सीन का इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रक्रिया में 180-240 दिन लग जाते हैं। इस चरण में यह देखा जाता है कि दवा का असर बीमारी पर कितना प्रभावशाली है। इसमें सावधानियां भी बरती जाती हैं कि कहीं कोई विपरीत प्रतिक्रिया न हो। हालांकि, कोरोना वायरस महामारी में परीक्षण समय को कम किया गया है।

अंतिम चरण में वैक्सीन को एक साथ हजारों लोगों पर इस्तेमाल किया जाता है। इस समय यह टेस्ट किया जाता है कि इम्यून सिस्टम कमजोर अथवा अधिक होने पर वैक्सीन किस तरह काम करता है। इस प्रक्रिया में भी तकरीबन 200-240 दिन लग जाते हैं। जब वैक्सीन अंतिम चरण में भी सफल हो जाता है। तब इसे रेगुलेटरी रिव्यू के लिए भेजा जाता है। इस प्रक्रिया में सफल होने के बाद वैक्सीन मैन्युफैक्चरिंग के लिए जाता है।

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