Jagran Dialogues: कोरोना के दौर में कैसे रहें मानसिक रूप से मज़बूत, और क्यों मेन्टल हेल्थकेयर है जरूरी? जानें डॉ पद्मा श्रीवास्तव से

Jagran Dialogues के लेटेस्ट एपिसोड में जागरण न्यू मीडिया के Executive Editor Pratyush Ranjan ने कोरोना के दौर में डिप्रेशन और पैनिक अटैक के लक्षणों को कैसे पहचानें? कैसे रहें मानसिक रूप से मज़बूत? इसी मुद्दे पर AIIMS दिल्ली के प्रोफेसर Dr. Padma Srivastava से बातचीत की।

By Pravin KumarEdited By: Publish:Mon, 30 Aug 2021 08:43 PM (IST) Updated:Mon, 30 Aug 2021 09:04 PM (IST)
Jagran Dialogues: कोरोना के दौर में कैसे रहें मानसिक रूप से मज़बूत, और क्यों मेन्टल हेल्थकेयर है जरूरी? जानें डॉ पद्मा श्रीवास्तव से
डॉ. पद्मा श्रीवास्तव इंडियन मेडिकल साइंस का एक जाना माना नाम है।

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Jagran Dialogues: कोरोना महामारी ने हम सब की ज़िंदगी पर एक कभी ना मिटने वाली छाप छोड़ी है और हम में से कई लोग कहीं ना कहीं या तो कोरोना वायरस के, इसके साइड इफेक्ट्स या लॉकडाउन के कारण दूसरी गंभीर बीमारियों के शिकार हुए हैं, जिसका सीधा असर हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ा है। कई शोधों में दावा किया गया है कि कोरोना महामारी के चलते तनाव और अवसाद के मरीजों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है। विशेषज्ञों की मानें तो लॉकडाउन के शुरुआत से अब तक मेंटल हेल्थ के मामलों में 80% की वृद्धि हुई है। ज्यादातर मरीज 19 से 40 साल की उम्र के हैं। उनमें यह समस्या कोरोना संक्रमित होने, नौकरी जाने और पास में कोविड केस मिलने से हुई है। अनलॉक के बावजूद भी मानसिक समस्या से परेशान लोगों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है। इसके लिए लोगों के मन में तनाव और अवसाद समेत मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कई प्रकार के सवाल हैं।

Jagran Dialogues के लेटेस्ट एपिसोड में जागरण न्यू मीडिया के Executive Editor Pratyush Ranjan ने "कोरोना के दौर में डिप्रेशन और पैनिक अटैक के लक्षणों को कैसे पहचानें? कैसे रहें मानसिक रूप से मज़बूत? " इसी मुद्दे पर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) दिल्ली के न्यूरोसाइंस सेंटर और न्यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख और प्रोफेसर Dr. Padma Srivastava से बातचीत की। डॉ. पद्मा श्रीवास्तव इंडियन मेडिकल साइंस का एक जाना माना नाम है। बता दें कि Jagran Dialogues की Covid-19 से जुड़ी सीरीज का आयोजन स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के साथ मिलकर किया जा रहा है। आइए, इस वर्चुअल वार्ता को विस्तार से जानते हैं-

1. सवाल:--क्या कोरोनावायरस महामारी हमारे मानसिक सेहत को प्रभावित कर रही है और अगर कर रही है, तो इस महामारी का असर कितने समय तक रहेगा और क्या भारत कोरोना महामारी से होने वाली मानसिक स्वास्थ्य की समस्या को लेकर पहले से तैयार था?

जवाब:--Dr. Padma Srivastava ने कहा- सबसे पहले मैं आप सबका आभार प्रकट करती हूं। आपने सही सवाल किया है। कोरोना वायरस से रोजाना हमें कुछ न कुछ सीखने को मिल रहा है। इससे पहले ऐसा कहा जाता था कि कोरोना केवल फेफड़े पर असर करता है। वहीं, कई शोधों में साबित हो चुका है कि इस वायरस से मस्तिष्क पर भी असर पड़ता है। साथ ही मनोवैज्ञानिक डिसऑर्डर भी होती है। ये दो चीजें कोरोना वायरस के चलते होती है। मस्तिष्क पर असर पड़ने के कारण मानसिक समस्या होती है। इससे एंजायटी, पैनिक, स्मरण शक्ति कमजोर होना, तनाव, डिप्रेशन में चले जाना, दैनिक जीवनयापन में परेशानी और रुकावटें आई हैं। इस समस्या को मेंटल फॉग कहा जाता है। दूसरी चीज मानसिक शक्ति का कमजोर होना है। हममें कई लोग ऐसे हैं, जो मानसिक रूप से मजबूत नहीं होते हैं। आपके सवाल "क्या भारत तैयार था" का जवाब यह है कि इस समस्या का सामना करने के लिए कोई भी देश तैयार नहीं था। हालांकि, अब पूरी तरह से तैयार है। कोरोना वायरस का असर सेहत समेत सभी क्षेत्रों पर व्यापक रूप से पड़ा है।

2.सवाल:--साल 2020 से अब तक कई लोगों ने अपने प्रियजन को खोया है। लोग सदमे से अब तक उबर नहीं पाए हैं। मृत्यु अपरिहार्य और संभावी है, लेकिन इसे स्वीकार करना आसान नहीं है। कोरोना महामारी के बीच मानसिक समस्या का सामना करने के लिए सामान्य लोगों को किन चीजों को फॉलो करने की जरूरत है-

जवाब:--किसी भी चीज का खोना किसी के लिए स्वीकार्य नहीं होता है। खासकर जब कोई कुछ खो देता है या अपने प्रियजन को खोता है, तो कितना बड़ा हादसा होता है और इसका कितना असर पड़ता है। यह हादसा बीतने वाले व्यक्ति को पता होता है। इन परिस्थितियों से गुजरना आसान नहीं होता है। कुछ लोग बड़ी जल्दी बाहर आ जाते हैं, तो कुछ लोग लंबे समय तक प्रभावित रहते हैं। इससे डील करने के लिए सबसे अहम चीज है-जागरुकता। जागरुकता का तात्पर्य हमें मेंटली और फिजकली तौर पर मजबूत रहना है। अगर हम शारीरिक रूप से सेहतमंद रहते हैं, तो मानसिक रूप से भी सबल रहते हैं। मानसिक रूप से सेहतमंद रहने के लिए हमारे पास सबसे बड़ा अस्त्र योगा है। इसके लिए रोजाना योग करें और शारीरिक रूप से मजबूत रहने के लिए डाइट में प्रोटीन युक्त चीजों को अधिक से अधिक शामिल करें। साथ ही कोरोना वायरस से बचाव के लिए सभी आवश्यक सावधानियां जरूर बरतें। अगर संक्रमित हो जाते हैं, तो भी दोनों चीजों को फॉलो करें। इनसे कोरोना संक्रमण का खतरा कम हो जाता है।

3. सवाल:-- अगर कोई व्यक्ति कोरोना काल में मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं है, तो वह अपनी सेहत की देखभाल कैसे करें और कोरोना महामारी में मानसिक रूप से अस्वस्थ होने के क्या लक्षण हैं और इसे कैसे पहचानें-

इस सवाल के जवाब में डॉक्टर श्रीवास्तव ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति सही तौर पर अपने दिनचर्या का पालन कर रहा है। इसमें टीवी देखना, हंसना, एक दूसरे से बातचीत करना, खाना पीना आदि चीजें शामिल हैं। इन चीजों को नियमित रूप से करता है, तो वह स्वस्थ है। वहीं, इसके विपरीत अगर वह किसी कोने में अकेले बैठता है, टीवी नहीं देखता है, लॉस ऑफ़ कॉन्फिडेंस है (मैं नहीं कर सकता) रोते रहता है, छोटी-छोटी चीजों में आंसू बहाते रहता है, चिड़चिड़ा स्वभाव, छोटी-छोटी बातों पर माता-पिता से लड़ने लगता है। इस स्थिति में व्यक्ति को मानसिक उपचार की जरूरत है। ऐसे लोगों को मदद की जरूरत पड़ती है। इनसे बात करें, उनकी बातों की सुनें। इन लक्षणों को इग्नोर नहीं करना चाहिए।

4. सवाल:-- कई लोग ऐसे हैं, जो कई अन्य और पुरानी बीमारियों से जूझ रहे हैं। साथ ही कोरोना महामारी के चलते मानसिक रूप से भी अस्वस्थ हैं। ऐसे लोगों को आप क्या सलाह देना चाहेंगी कि वे पहली पुरानी बीमारी पर ध्यान दें या तनाव पर ध्यान दें या दोनों पर एक साथ काम करें-

जवाब:--डॉक्टर श्रीवास्तव ने कहा-दोनों एक साथ होगा। आपने देखा होगा कि लॉन्ग कोविड यानी लंबे समय तक कोरोना होने पर फेफड़ें, मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र प्रभावित होते हैं। वहीं, एक अन्य चीज मेंटल फॉग है। इसमें लोगों को कन्फ्यूजन होती है। लोग पहले मल्टी टास्कर थे। वर्तमान समय में लोग एक साथ कई काम करने में कुछ पल तक सोचते हैं। उसके बाद काम को अंजाम देते हैं। इसका अर्थ यह है कि कंफ्यूजन है, जिसे मेंटल फॉग कहा जाता है। इस विषय पर कई शोध किए जा रहे हैं कि क्या डिप्रेशन से पीड़ित लोग एक या दो साल बाद पार्किसन या डिमेंशिया के शिकार हो जाएंगे। इसके लिए MRI स्कैन की स्टडी की जा रही है। इसमें देखा जाता है कि व्यक्ति सामान्य था, फिर कोरोना संक्रमित हुआ और कोरोना से रिकवरी के बाद उनकी सेहत पर क्या प्रभाव पड़ा है। खासकर मानसिक सेहत पर कैसा असर रहा है। ऐसी संभावना है कि जल्द इसके निष्कर्ष भी सामने आएंगे। इसके लिए दोनों ही काम सामानांतर करने की जरूरत है। आसान शब्दों में कहें तो दोनों बीमारियों पर एक साथ काम करना होगा।

5. सवाल:--कोरोना वायरस महामारी के दौरान आइसोलेशन और अपने प्रियजन को खोने के चलते युवा वर्ग और बच्चे अधिक प्रभावित हुए हैं। साथ ही ऑनलाइन क्लास के दबाव से मानसिक तनाव को बढ़ावा मिला है। ऐसे बच्चे और माता पिता इन समस्याओं से कैसे डील करें और किन बातों को फॉलो करें-

जवाब:- इस सवाल के जवाब में डॉक्टर ने कहा कि बच्चे तो नन्हें हैं। उन्होंने कभी ये सब देखा नहीं है। उन पर इसका असर ज्यादा पड़ा है। बच्चों की शारीरिक  सेहत की तुलना में मानसिक सेहत पर ज्यादा असर पड़ा है। बच्चे कोरोना से थोड़े सुरक्षित हैं। हालांकि, अब स्कूल खुल गए हैं और कोरोना टीके (बच्चों की टीका) को भी अनुमति मिल गई है। इससे बच्चे सेफ जोन में हैं। बच्चों की टुगेदर स्टडी खत्म हो गई। इसके चलते बच्चे आइसोलेट हो गए। कई बच्चे छोटे से घर में रह रहे हैं। उनका घर बड़ा नहीं है, तो हमेशा परेंट्स के अटेंशन में रहते हैं। इस दौरान बच्चे को प्राइवेसी नहीं मिल रही है। इसके लिए माता-पिता को अपने बच्चे को स्पेस देने की जरूरत है। कई लोगों की नौकरी चली गई, तो पेरेंट्स भी तनाव में हैं। ऐसे माता-पिता अपने बच्चे पर तनाव न दिखाएं। अगर बच्चा गुमशुदा हो गया है, सामान्य व्यवहार नहीं कर रहा है, तो उन संकेतों को जानकर बच्चों के साथ डील करें। बच्चों की इम्युनिटी बढ़ाकर रखें। इसके लिए संतुलित आहार दें। बच्चों को टाइम भी दें। कभी अकेला न छोड़ें। माता पिता और घर के बड़े सदस्यों के ऊपर बड़ी जिम्मेदारी है कि बच्चों को हाथ देकर सही रास्ता दिखाएं। मेंटल हेल्थ के पारस्परिक संवाद जरूरी है। खासकर सोशल पारस्परिक संवाद अनिवार्य है।

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