Jagran Dialogues: कोरोना के दौर में Diabetes, Blood Pressure जैसे रोगों में पहले डॉक्टर की सलाह क्यों है ज़रूरी, जानिए एक्सपर्ट से

जागरण न्यू मीडिया के सीनियर एडिटर Pratyush Ranjan ने ICMR-NIIRNCD के निदेशक डॉ. अरुण शर्मा के साथ बातचीत की। इस दौरान कोरोना के बाद स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों डायबिटीज व बीपी से पीड़ित लोगों के सामने पेश आ रही अलग-अलग समस्याओं और वैक्सीनेशन के साइड इफेक्ट्स पर बात हुई।

By Ruhee ParvezEdited By: Publish:Tue, 18 May 2021 03:34 PM (IST) Updated:Tue, 18 May 2021 03:34 PM (IST)
Jagran Dialogues: कोरोना के दौर में Diabetes, Blood Pressure जैसे रोगों में पहले डॉक्टर की सलाह क्यों है ज़रूरी, जानिए एक्सपर्ट से
कोरोना के दौर में Diabetes, Blood Pressure जैसे रोगों में पहले डॉक्टर की सलाह क्यों है ज़रूरी, जानिए एक्सपर्ट से

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। कोरोना वायरस महामारी के इस संकट के बीच दैनिक जागरण लगातार 'Jagran Dialogues' के माध्यम से स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों के साथ बातचीत कर अपने पाठकों को जागरूक कर रहा है। इसी कड़ी में जागरण न्यू मीडिया के सीनियर एडिटर Pratyush Ranjan ने ICMR-NIIRNCD के निदेशक डॉ. अरुण शर्मा के साथ बातचीत की। इस दौरान कोरोना के बाद स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों, डायबिटीज व बीपी से पीड़ित लोगों के सामने पेश आ रही अलग-अलग समस्याओं और वैक्सीनेशन के साइड इफेक्ट्स पर बात हुई। पेश हैं इस बातचीत के अंश-

सवाल: कोरोना वायरस का हमला जब शरीर पर होता है, तो यह क्या करता है?

डॉ. अरुण: कोरोना वायरस सांस की नली के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है। इसका सबसे पहला असर नाक में और गले में होता है। इसलिए खांसी होती है, गले में खुजली होती है और नाक से पानी आने लगता है। ये प्राथमिक लक्षण हैं। इसके बाद यह वायरस फेफड़ों के माध्यम से रक्त संचार में पहुंच जाता है, तब इसकी वजह से बुखार होता है, जो बढ़ता जाता है। इसके बाद इसके लक्षण किसी विशेष अंग में होते हैं। हालांकि, यह बहुत कम देखा गया है। शरीर के किसी अंग के काम नहीं करने की घटनाएं वायरस की वजह से नहीं होती, बल्कि साइड इफेक्ट्स के चलते होती हैं।

सवाल: अगर कोई व्यक्ति उच्च बीपी या उच्च डायबिटीज से पीड़ित है, या किसी की इम्युनिटी कम है, तो ऐसे मामलों में वायरस कितना नुकसान पहुंचाता है?

डॉ. अरुण: किसी भी वायरल बीमारी से लड़ने के लिए शरीर में दो तरह की इम्युनिटी होती हैं। पहली-एंटीबॉडीज़, दूसरी-सेल मीडिएटेड इम्युनिटी। ये दोनों किसी भी जीवाणु या विषाणु से लड़ने में मदद करती हैं। जब इम्युनिटी कम होती है, तो यह वायरस अपनी संख्या को लगातार बढ़ाता रहता है और अलग-अलग अंग में जाकर उनको प्रभावित करता है। ऐसे लोगों में निमोनिया हो जाता है। सांस लेने में तकलीफ होती है, ऑक्सीजन कम होने लगता है। इससे महत्वपूर्ण अंगों तक ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती और वे काम करना बंद करने लगते हैं। ऐसी स्थिति में व्यक्ति पहले आईसीयू तक पहुंचता है और फिर स्थिति अत्यधिक बुरी हो जाती है।

सवाल: ऐसे लोग जो डायबिटीज़ टाइप-1 से पीड़ित हैं और कोरोना से भी जूझ रहे हैं या नेगेटिव भी आ चुके हैं, लेकिन डायबिटीज का स्तर उच्च बना हुआ है, तो ऐसे मरीजों को किन चीजों का खास ध्यान रखना चाहिए?

डॉ. अरुण: डायबिटीज, चाहे टाइप-1 हो या टाइप-2, वो हमारे शरीर की इम्युनिटी को बहुत कम कर देता है। ऐसे मरीजों में ट्यूबरक्लोसिस की संभावना अधिक होती है। वे टीबी के शिकार हो जाते हैं। हमारे देश में 40 फीसद लोगों के शरीर में ट्यूबरक्लोसिस का बैक्टीरिया पहले से होता है। ऐसे लोगों में कोविड वायरस आ जाता है, तो वह बहुत जल्दी अपनी संख्या बढ़ाता है। यह वायरस जब फेफड़ों को प्रभावित करता है, तो ऐसे मरीजों को स्टेरॉयड दी जाती है। डायबिटीज के मरीजों में स्टेरॉयड से ब्लड शुगर लेवल बहुत ज्यादा बढ़ने लगता है। कम इम्युनिटी और हाई ब्लड शुगर वायरस को शरीर में फैलने में बहुत मदद करता है। ऐसे में शुगर भी बढ़ जाती है और कोविड-19 की बीमारी भी बढ़ जाती है।

आज हमारे देश में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर दवाइयों के कई नाम सुझाए जा रहे हैं, इनमें स्टेरॉयड भी शामिल हैं। स्टेरॉयड का इस्तेमाल बिना डॉक्टर की सलाह के नहीं करना चाहिए। स्टेरॉयड का इस्तेमाल हर किसी परिस्थिति में नहीं किया जा सकता है, यह स्थिति को अधिक बिगाड़ सकता है। जो लोग कोविड बीमारी के शुरुआती दिनों में हैं यानी जिनके फेफड़ों में अभी वायरस नहीं पहुंचा है, अगर वे लोग स्टेरॉयड लेने लगते हैं, तो इससे उनकी इम्युनिटी कम होती है और कोविड के ख़त्म होने के बजाए इसके बढ़ने में मदद मिलती है।

सवाल: कोई व्यक्ति कोरोना पॉजिटिव है और शुगर लेवल हाई है, तो डॉक्टर बोलते हैं कि अभी शुगर की चिंता ना करें, पहले कोविड ठीक करें। कोविड ठीक होगा तो शुगर अपने आप ठीक हो जाएगी। क्या यह बात सही है?

डॉ. अरुण: डॉक्टर की उस मरीज के बारे में ऐसा बोलने की क्या वजह रही होगी, उसके बारे में, मैं कुछ कह नहीं सकता, लेकिन आमतौर पर डायबिटीज के मरीज को स्टेरॉयड देते हैं, जिससे शुगर लेवल बढ़ता है, फिर शुगर कंट्रोल की दवाई इंसुलिन दी जाती है। क्योंकि शुगर बढ़ने से भी कोविड संक्रमण भी बढ़ेगा, इसलिए इसे कंट्रोल करना ज़रूरी है।

सवाल: स्टेरॉयड लेना क्यों जरूरी है। किस परिस्थिति में इसकी जरूरत होती है?

डॉ. अरुण: सच्चाई यह है कि कोविड-19 वायरस से लड़ने के लिए हम जिन दवाइयों का इस्तेमाल लेते हैं, चाहे वह रेमडेसिवीर हो या कुछ और हो, इनकी उपयोगिता अभी प्रमाणित नहीं हुई है। ऐसी स्थिति में वायरस से लड़ने के लिए स्टेरॉयड का सहारा लिया जाता है। वायरस से लड़ते हुए शरीर बहुत सारी एंटीबॉडीज बनाता है और जब वायरस की संख्या बढ़ जाती है, तो शरीर और अधिक एंटीबॉडीज बनाता है। ये एंटीबॉडीज कई सारे केमिकल्स छोड़ती हैं। इन केमिकल्स की संख्या जब ख़ून में बहुत ज्यादा बढ़ जाती है, तो यह वायरस से लड़ने की बजाय हमारे फेफड़ों और इम्यून सिस्टम को प्रभावित करता है। शरीर द्वारा बनाई जा रही भारी मात्रा में एंटीबॉडीज को रोकने के लिए स्टेरॉयड दिया जाता है। स्टेरॉयड मरीज की स्थिति देखकर ही दिया जाना चाहिए।

सवाल: देश का बड़ा तबका कार्डियो वैस्कुलर बीमारी से जूझ रहा है। ऐसे व्यक्ति कोविड पॉजिटिव हो गए हैं, तो उन्हें क्या करना चाहिए?

डॉ. अरुण: जिन्हें हाई बीपी है और उसके कारण हार्ट अटैक होने की संभावना है, ऐसे मरीज को कार्डियो वैस्कुलर डीजीज का मरीज कहते हैं। इनको अगर कोविड होता है, तो हार्ट अटैक के कारण मौत होने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसा ब्लड में क्लॉटिंग की टेंडेंसी बढ़ जाने के कारण होता है। ऐसा देखा गया है कि ऐसे मरीज कोविड से मुक्त हो जाते हैं और दो दिन बाद हार्ट अटैक के कारण उनकी मौत हो जाती है। ऐसे मरीजों को सलाह दी जाती है कि वे लिक्विड खूब पिएं, जिससे क्लॉटिंग न हो। ऐसे मरीजों के लिए विशेष दवा भी दी जाती है।

सवाल: डायबिटीज, बीपी वाले लोगों का ट्रीटमेंट लॉकडाउन की वजह से रुक गया है और वे कोविड के मरीज नहीं हैं, तो क्या करें?

डॉ. अरुण: आज हर क्षेत्र में टेलीकम्युनिकेशन की सुविधा उपलब्ध है। ऐसे मरीजों को डॉक्टर से संपर्क करने का प्रयास करना चाहिए और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से परामर्श लेना चाहिए और दवा चालू रखनी चाहिए। ऐसे लोगों को अपनी बीमारियों की दवाइयां जारी रखनी चाहिए।

सवाल: कोरोना वायरस के बाद ब्लैक फंगस के बहुत मामले आ रहे हैं। यह ब्लैक फंगस क्या हैं?

डॉ. अरुण: इसके बारे में अभी लोगों के बीच सबसे कम जानकारी है। हमें आधी-अधूरी और सोशल मीडिया पर मौजूद भ्रामक जानकारियों से बचना चाहिए। फंगस एक ऐसा बैक्टीरिया की तरह ही है। आमतौर पर बाथरूम में जो नीले रंग की काई जम जाती है, वही फंगस होता है। फंगस के छोटे-छोटे पार्टिकल हवा में भी होते हैं, लेकिन इनमें हमारे शरीर में प्रवेश कर बीमार करने की क्षमता बहुत कम होता है। हमारी सामान्य रोग-प्रतिरोधक क्षमता इसे आसानी से हरा देती है। आमतौर पर एक स्वस्थ व्यक्ति में यह फंगस कभी बीमारी नहीं करता है, लेकिन जो व्यक्ति लगातार स्टेरॉयड लेते हैं, तो उनकी इम्युनिटी काफी कमजोर होती है। ऐसे में यह फंगस हवा के साथ नाक में घुस जाता है, तो वहां यह घर बना लेता है। इम्युनिटी कमजोर होने से यह बढ़ता रहता है। जो लोग स्टेरॉयड इनहेलर लेते हैं, उनमें यह अधिक हो सकता है।

ऑक्सीजन को थोड़ा सा गीला करके अर्थात नमी के साथ मिक्स करके दिया जाता है। सूखा नहीं दिया जा सकता। इसके लिए पहले ऑक्सीजन को पानी की बॉटल में से गुजारा जाता है, फिर शरीर में दिया जाता है। घरों में जो लोग ऑक्सीजन सिलेंडर का उपयोग करते हैं, तो उनके ऑक्सीजन मास्क में अच्छी-तरह सफाई ना होने के चलते नमी होती है, यह भी फंगस को बढ़ने में मदद करता है। यह फंगस नाक से होते हुए फेफड़ों में भी जा सकता है। यह फंगस नाक से निकलकर जबड़ों में जा सकता है और कभी-कभी यह साइनस के माध्यम से आंख में चला जाता है, तो अंधापन कर देता है। इससे भी ऊपर जाकर यह दिमाग में चला जाता है और फंगल इंफेक्शन कर देता है। 

इससे बचने के लिए जरूरी है कि स्टेरॉयड हमेशा डॉक्टर की सलाह से लें। स्टेरॉयड की संख्या और लेने की अवधि केवल डॉक्टर को ही तय करनी चाहिए। जब आप घर में ऑक्सीजन का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो ध्यान रखें कि मास्क साफ-सुथरा हो, अच्छी तरह सैनिटाइज्ड हो। साथ ही इसे समय-समय पर साफ करते रहना चाहिए।

सवाल: कई बार कोरोना नेगेटिव होने के बाद भी सिम्टम्स आ जाते हैं या व्यक्ति पॉजिटिव हो जाता है। इसका क्या कारण है?

डॉ. अरुण: इसमें तीन पहलू हैं। पहली बात तो यह कि पहली बार कोविड पॉजिटिव होने के कितने दिन बाद फिर से लक्षण आए। मान लीजिए आज पॉजिटिव हुए, लक्षण आए। 15-16 दिन बाद लक्षण चले गए, तो व्यक्ति ने दोबारा जांच कराई और वह फिर पॉजिटिव आया। ऐसा होता है कि लक्षण खत्म हो जाते हैं, बीमारी ठीक हो जाती है, लेकिन वायरस नैजल कैविटी में मौजूद होता है और इस कारण व्यक्ति पॉजिटिव आ सकता है। कभी-कभी ऐसा होता है कि वायरस मर जाता है, लेकिन उसके आरएनए अगर मौजूद हैं, तो वे भी आरटीपीसीआर में पकड़ में आ सकता है। ये देखा गया है कि ठीक होने के 15-20 दिन बाद भी लोग आरटीपीसीआर में पॉजिटिव हो सकते हैं, तो घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि वे लक्षण के आधार पर ठीक हो चुके हैं, उनमें बीमारी नहीं बची है, सिर्फ वायरस है। कई बार ऐसा होता है, टेस्ट कराते समय किसी कारण से स्वैब अंदर नहीं पहुंच पाता है। यानी जहां वायरस बैठा है, वहां तक स्वैब नहीं पहुंचता, तो रिपॉर्ट नेगेटिव आ सकती है।

तीसरी बात यह है कि बहुत कम लोगों में ठीक होने के 3 से 6 महीने बाद वे दोबारा कोरोना से पीड़ित हो जाते हैं। ऐसा इसलिए हो सकता है कि इन लोगों में पहले के कोविड से जो इम्युनिटी बनी, वह तीन महीने में खत्म हो गई। वहीं, बहुत कम मामलों में ऐसा भी हो सकता है कि पिछले वाले वैरिएंट से पैदा हुई इम्युनिटी नए वैरिएंट पर काम नहीं कर पाती। ऐसे में आप आरटीपीसीआर में पॉजिटिव आ सकते हैं।

सवाल: नया स्ट्रैन बी1617 अचानक से इतना तेज कैसे फैला। इसका क्या कारण है?

डॉ. अरुण: अभी हमारे पास ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि इतनी तेजी से जो संक्रमण फैला, वह इस वैरिएंट के कारण फैला। अभी जो संक्रमण का पैटर्न है, वह यह है कि एक परिवार में पहले एक व्यक्ति संक्रमित होता है और कुछ ही दिन में पूरा परिवार संक्रमित हो जाता है। इससे यह पता चलता है कि वायरस जब नाक में प्रवेश करता है, तो 2 से 5 दिन तक हमारे अंदर कोई लक्षण नहीं आते, लेकिन यह नाक में बढ़ता रहता है। इस दौरान व्यक्ति सावधानी नहीं बरतता है और वायरस घर के अन्य सदस्यों तक पहुंच जाता है। यह किसी भी वैरिएंट के साथ हो सकता है। अत्यधिक आबादी वाले शहरों में घरों में फिजिकल दूरी रख पाना मुमकिन नहीं है। कुछ घरों में वेंटिलेशन की भी कमी होती है। ऐसे में भी संक्रमण तेजी से फैलता है। ऐसी जगह पर वायरस काफी देर तक जिंदा रह सकता है।

सवाल: एक मरीज ने बताया कि वे कोराना से ठीक तो हो चुके हैं, लेकिन उन्हें भूलने की बीमारी हो गई है। ऐसा क्यों होते हैं?

डॉ. अरुण: ऐसा देखा गया है एक परिस्थिति होती है, जिसे कहते हैं लॉन्ग कोविड। इसमें कोविड के कुछ मरीज क्लीनिकली तो ठीक हो गए लेकिन कुछ लक्षण लंबे समय तक पाए गए। जैसे- जोड़ों में दर्द, एंजाइटी या भूलने वाले लक्षण। इस पर अनुसंधान की जरूरत है कि ये लक्षण कोविड से जुड़े हैं या कोविड के दौरान होने वाले मानसिक तनाव का परिणाम हैं।

सवाल: हमें कोविड जैसी बीमारियों के लिए किस तरह से तैयार रहना चाहिए?

डॉ अरुण:  मैं आपको थोड़ा पीछे ले जाना चाहूंगा। साल 2017-18 और 19 में कोविड आने से पहले हम वायु प्रदूषण के बारे में बहुत बात करते थे। हमारे 30 शहर दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में गिने जाते है। आंकड़े आए कि 5.5 लाख लोग वायु प्रदूषण के कारण अपनी जान समय से पहले गंवाते हैं। अर्थात वायु प्रदूषण और वायु से होने वाले संक्रमण आपस में जुड़े हैं। यह एक खतरे की घंटी थी। तब हम समय पर कदम उठा लेते, अर्थात वेंटिलेशन करते, घरों की हवा को ज्यादा स्वच्छ रखने का प्रयास करते, तो संक्रमण थोड़ा कम होता। आप व्यक्तिगत, समाज, शहर और देश के स्तर पर प्रदूषण कम कीजिए, तो निश्चित रूप से अधिकांश बैक्टीरियल, वायरल और फंगल बीमारियों से हम बचे रह सकते हैं। बता दें कि यह प्रमाणित हो चुका है कि कोविड-19 का संक्रमण प्रदूषित हवा वाली जगहों पर ज्यादा होता है।

सवाल: कोविशील्ड वैक्सीनेशन के अंतर में बदलाव हुए हैं। अब गेप को 8 या 12 सप्ताह करने की बात हो रही है। इसके बारे में थोड़ा बताएं?

डॉ अरुण: इस बात को लेकर लोगों में बहुत संदेह है। जब हम वैक्सीन की पहली डोज लेते हैं, तो एंटीबॉडी बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। वह एंटीबॉडी 40 या 50 फीसद तक पहुंचती है। जब हम दूसरी डोज लेते हैं, तो वह बूस्टर का काम करता है और एंटीबॉडी का स्तर 70, 80, 90 और 95 फीसद तक आगे बढ़ता है। अगर हम 4 हफ्ते का गेप रखते हैं या 6 अथवा 12 हफ्ते का गेप रखते हैं, तो भी दूसरी डोज के 15 दिन बाद एंटीबॉडी आवश्यक स्तर के 80 से 95 फीसद तक पहुंच जाती है। यह भी शोध सामने आया है कि 16 या 20 हफ्ते तक भी दूसरी डोज लेते हो, तो पहली डोज खराब नहीं होती है। आज हमें 18 साल की उम्र से ऊपर के सभी लोगों को टीका लगा रहे हैं। यानी हमें 110 करोड़ लोगों को टीका लगाना है। इसके लिए वैक्सीन की संख्या और वैक्सीन को लोगों तक पहुंचाने की लॉजिस्टिक्स को इतने कम समय में पा जाना मुमकिन नहीं है। इसे हमें समझना होगा। इतने सारे लोगों को वैक्सीन देने के लिए समय चाहिए। हमारे पास गेप बढ़ाने की सहूलियत है, तो हमें इसका उपयोग करना चाहिए। इसमें लोगों के स्वास्थ्य से कोई समझौता नहीं किया जा रहा है।

सवाल: हर्ड इम्युनिटी क्या होती है? देश में कोविड की हर्ड इम्युनिटी कब तक हाने की संभावना है?

डॉ अरुण: हर्ड का मतलब होता है झुंड। इसका मतलब है कि जब हमारे देश में काफी सारे लोगों में इम्युनिटी आ जाएगी, तो उसे हर्ड इम्युनिटी कहेंगे। यह दो तरह से आएगी। पहला- जब प्राकृतिक रूप से लोग वायरस से संक्रमित होंगे और ठीक हो जाएंगे तो उनमें इम्युनिटी आ जाएगी और दूसरी- वैक्सीन के कारण। अगर किसी समाज में 70 से 80 फीसद लोग इम्यून हो जाएं, तो शेष लोगों तक वायरस नहीं पहुंच पाएगा। 70 से 80 फीसद लोगों का मतलब है कि देश में 91-92 फीसद लोगों को इम्युनिटी मिले तो वह हर्ड इम्युनिटी होगी। इन दो तरीकों के अलावा भी हम ठीक तरह से मास्क पहनकर, सामाजिक दूरी अपनाकर, हाथों को धो-कर बिना वैक्सीन के भी संक्रमण की चेन तोड़ सकते हैं। देश में कोरोना की पहली लहर से हम इन्हीं उपायों से बाहर आए।

सवाल: काफी लोग अनजाने में फेक न्यूज को फैला रहे हैं। ऐसे लोगों को आप क्या कहेंगे?

डॉ अरुण: सोशल मीडिया पर बहुत सारी खबरें फेक होती हैं। अलग-अलग दवाइयां और उपचार बताए जाते हैं। मेरी अपील है कि उन पर विश्वास न करें और एक्सपर्ट की सलाह लें।

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