स्कूल और कॉलेज बंद होने से बच्चे भी झेल रहे हैं कई तरह की शारीरिक और मानसिक परेशानियां

कोरोना की वजह बंद हुए स्कूल कॉलेजों से बच्चों के मानसिक सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ा है। वो पहले से ज्यादा गुस्सैल आक्रामक और चिड़चिड़े हो गए हैं। किस तरह की अन्य परेशानियों को सामना कर रहे हैं बच्चे आइए जानते है इसके बारे में।

By Priyanka SinghEdited By: Publish:Tue, 27 Jul 2021 07:00 AM (IST) Updated:Tue, 27 Jul 2021 08:11 AM (IST)
स्कूल और कॉलेज बंद होने से बच्चे भी झेल रहे हैं कई तरह की शारीरिक और मानसिक परेशानियां
अंधेरे में बैठकर किताब पढ़ता छोटा बच्चा

स्कूल या काॅलेज बंद होने से लगभग सभी समुदायों के लोगों को सामाजिक और आर्थिक नुकसान से जूझना पड़ रहा है। हालांकि इसका प्रभाव खासकर स्कूली बच्चों पर ज्यादा पड़ रहा है, क्योंकि उन्हें न सिर्फ अपनी पढ़ाई से वंचित होना पड़ रहा है बल्कि कई अन्य नकारात्मक बदलाव भी दिखे हैं जो उनके स्कूलों से परोक्ष अपरोक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। जिनके बारे में आज हम बात करेंगे।

ईटिंग और स्लीपिंग पैटर्न में बदलावः कई बच्चों और युवाओं को अपनी खान-पान और सोने से संबंधित आदतों में बदलाव का सामना करना पड़ रहा है। लाॅकडाउन शुरू होने के बाद से, बच्चों और उनके परिवारों, दोनों के लिए लाइफस्टाइल पैटर्न में बड़ा बदलाव आया है। स्कूल नहीं जाने की वजह से बच्चे देर से खाते हैं और देर से सोते हैं जिससे उनकी दिनचर्या काफी बदल जाती है। इससे बच्चे के स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।

तनावः लंबे समय तक घर में रहने, समाचार सुनने, दोस्तों से नहीं मिल पाने या साल भर पारिवारिक तनाव से जूझने से बच्चों में तनाव और अवसाद का स्तर काफी बढ़ गया है।

अनुशासन: विकल्पों के अभाव में कामकाजी माता-पिता को अक्सर अपने बच्चे अकेले छोड़ने पड़ रहे हैं, क्योंकि कई कार्यालयों में अब काम फिर से शुरु हो गया है और इससे व्यवहार में बदलाव को बढ़ावा मिला है। अकेले रहने पर वो अपनी मर्जी की चीज़ें करते हैं जो पूरी तरह से सही हों, ये जरूरी नहीं।

शारीरिक गतिविधि का अभावः कोविड-19 के प्रसार के बाद से बच्चे घरों में रहने को मजबूर हैं। महामारी ने उन्हें विवश कर दिया है जिससे उनकी खेल और अन्य गतिविधियों पर विराम लग गया है। ऐसी स्थिति में, कई बच्चों में वजन बढ़ने और सुस्ती जैसी समस्याएं बढ़ी हैं।

स्वास्थ्य पर प्रभावः लैपटाॅप और स्मार्टफोन बच्चों के दैनिक इस्तेमाल वाले गैजेट बन गए हैं। वे आजकल इनके बगैर नहीं रह सकते। उन्हें इन गैजेट की मदद से अपने स्कूल और काॅलेज कार्य पूरे करने और सौंपने की जरूरत होती है। लेकिन समस्या यह है कि इन इलेक्ट्राॅनिक गैजेट से उनकी आंखों पर प्रभाव पड़ रहा है।

टेक्नोलाॅजी का अभावः कोई भी कार्य अब स्मार्टफोन और अच्छे इंटरनेट कनेक्शन के बगैर संभव नहीं है। हालांकि कई युवाओं को टेक्नोलाॅजी को लेकर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि न तो वे और न ही उनके माता-पिता टेक्नोलाॅजी से पूरी तरह अवगत हैं। यह समस्या गरीब परिवारों के बच्चों में ज्यादा देखी गई है।

पढ़ने का दबाव: कई कमजोर छात्र ऑनलाइन असेस्मेंट का लाभ लेते हैं, क्योंकि वे परीक्षा के दौरान आसानी से चीटिंग करते हैं या अपने माता-पिता से मदद लेते हैं। इससे उन छात्रों पर दबाव पैदा होता है जो अध्ययन में अच्छे हैं। ऐसे छात्र अक्सर बुरा और स्वयं में कम आत्मविश्वास महसूस करते हैं।

समाज से दूरीः स्कूल सामाजिक गतिविधि और मानव वार्तालाप का हब हैं। स्कूल बंद होने के दिन से ही कई बच्चे और युवा सामाजिक संपर्क से कट गए हैं, यह संपर्क उनके सीखने और विकास के लिए बेहद जरूरी है।

सीखने की चुनौतियांः समयबद्ध आकलन, सख्त परीक्षाएं नए शिक्षा स्तरों और संस्थानों में प्रवेश सुनिश्चित करती हैं और स्कूल बंद होने के बाद से ही इनमें अव्यवस्था का माहौल है। परीक्षाएं टालने, रद्द करने की रणनीतियों से, खासकर लर्निंग तक पहुंच में बदलाव की स्थिति में निश्पक्षता को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा हुई हैं। आकलन में समस्याओं से छात्रों और उनके परिवारों में तनाव को बढ़ावा मिला है और इससे अलगाव की समस्या बढ़ सकती है।

(राजेश कुमार सिंह,  संस्थापक एवं प्रबंध निदेशक, कुंवर ग्लोबल स्कूल से बातचीत पर आधारित)

Pic credit- unsplash

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